उत्तराखंड

उत्तराखंड सरकार सेब मिशन योजना के अन्तर्गत सेब के बगीचे लगाने पर 80%  तक का अनुदान कृषकों को देगी।

एपल मिशन योजना।
डा०राजेन्द्र कुकसाल।
सेब उत्पादन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से उत्तराखंड सरकार , सेब मिशन योजना के अन्तर्गत सेब के बगीचे लगाने पर 80%  तक का अनुदान कृषकों को देगी। अनुदान राशि अधिक तम 9.60 लाख तक होगी।
सेब के बगीचे के लिए सरकार ने तीन माडल तय किए हैं।
1. एम -9, एम – 7 एवं अन्य सिरीज़ क्लोनल रूट स्टाक आधारित स्पर प्रजाति के सेब बगीचे की स्थापना।
2. एम एम -106, एम एम -111या अन्य सिरीज़ रूट स्टाक आधारित स्पर प्रजातियों के सेब बगीचे।
3. सीडलिंग रूट स्टाक आधारित बग़ीचे।
उत्तराखंड में सेब उत्पादन –
शीतोष्ण फलों में सेब पौष्टिक होने के साथ साथ विशिष्ट स्वाद, सुगंध, रंग व अच्छी भंडारण क्षमता के कारण प्रमुख स्थान रखता है।
 उत्तराखंड के अधिकांश पहाड़ी क्षेत्रों में सेब  उत्पादन की अपार संभावनाएं हैं कुछ क्षेत्रों में ब्रिटिश काल से सेब का उत्पादन होता आ रहा है।
 उत्तराखंड में मुख्य रूप से सेव की अर्लीशनवरी, फैनी डिलीशियस रैड गोल्ड तथा राइमर, बकिंघम प्रजातियां प्रचलित रही है। इन परम्परागत किस्मों के अतिरिक्त बाद के बर्षो में सेब की स्पर टाइप किस्मै जैसे आरगन स्पर,रैड चीफ,समर रेड स्टार क्रिमसन,  रैड स्पर गोल्ड स्पर , फ्यूजी,गाला,इडा रैड, पैसिफिक रोज किस्में प्रचलन में है।
सेब की सघन बागवानी –
हिमाचल प्रदेश में सेब का औसत उत्पादकता  7 मीट्रक टन प्रति हेक्टेयर है जबकि उत्तराखंड में 4 मैट्रिक टन प्रति हेक्टेयर है। प्रति इकाई क्षेत्र फल में सेब की उत्पादकता बढ़ाने हेतु आवश्यक है सेब की सघन बागवानी।
पारम्परिक सीडलिंग पर आधारित सेब के बागीचे को लगाने में सेब के पेड़ों को काफी दूरी में लगाया जाता है। यह इसलिए किया जाता है क्योंकि पेड़ जैसे- जैसे बड़े होते हैं, वह काफी फैलाव लेने लगते हैं। इसके साथ ही पेड़ों की जड़ें भी इसी अनुपात में फैलती हैं। पेड़ का फैलाव अधिक भूमि में होता है।  एक हैक्टेयर क्षेत्र फल में सीड लिंग पर ग्राफ्ट किये 250-300 ही लग पाते हैं।
वही ‘‘सेब की सघन बागवानी’’ में पेड़ से पेड़ की दूरी बमुश्किल कुछ फीट होती है। इस तकनीक में रूट स्टॉक वाले पौंधों का प्रयोग किया जाता है। जिसके कारण जड़ों का फैलाव कम होता है और इसमें मूसला जड़ तो होती ही नहीं।
पारम्परिक बगीचे में जितनी भूमि में 1 सेब का पेड़ लगाया जाता है वही सघन बागवानी में 10 पेड़ लगते हैं। यहाँ यह जानना भी जरूरी है कि पारम्परिक बागीचों में लगने वाली सेब की प्रजातियों के बजाय ‘‘सेब की सघन बागवानी’’ में लगाई जाने वाली प्रजातियाँ विल्कुल भिन्न होती हैं। इसी कारण ‘‘सेब की सघन बागवानी’’ में उत्पादन कई गुना अधिक होता है।
 सेब की सघन बागवानी के फायदे-
कम क्षेत्रफल में अधिक पेड़ लगाये जाते हैं, जिससे अधिक उत्पादन प्राप्त होता है।
सेब की सघन बागवानी में लगाये जाने वाले पेड़ पारम्परिक प्रजातियों के मुकाबले बहुत कम समय में उत्पादन देती है।
उत्पादन लागत में व्यय होने वाला खर्च कम लगता है।
सघन बागवानी में बगीचे का प्रबंधन करना आसान होता है।
बौनी (ड्वार्फ)तथा अर्ध बौनी (सेमी ड्वार्फ) प्रजातियां लगभग 3 वर्ष में पैदावार देने लगती है।
बौनी तथा अर्ध बौनी प्रजातियां होने के कारण रख रखाव तथा फल तुड़ाई में आसान।
समान आकार का फल एवं समान रंग के कारण बाजार के अनुकूल।
सेब की सघन बागवानी में रूट स्टॉक –
सेब के पौधों का आकार/ ग्रोथ (बड़वार) रूट स्टाक पौधे की बढत के अनुसार ही होती है अर्थात यदि रूट स्टाक कम ग्रोथ वाला है तो सेब का पौधा भी छोटा ही होगा।
रूट स्टाक पौधे को मिट्टी में बांधे रहता है तथा मिट्टी से पानी और खनिज पोषक तत्वों को अवशोषित करता है।
रूट स्टाक को दो समूहों में बांटा जा सकता है।
1. सीड लिंग रूट स्टाक।
 सेब के अधिकांश बाग अभी भी क्रैब ऐपिल ( मालस बकाटा) और महाराजी के  सीड लिंग रूट स्टाक पर ही उगाये जाते हैं।
2.क्लोनल रुट स्टाक
बौना पौधा, शीघ्र और फलों की गुणवत्ता कुछ कीट व रोगों के प्रति रोध  एक रूपता के कारण उपयोगी है।
विभिन्न विशेषताओं के आधार पर रूट स्टाक का वर्गीकरण।
सेब का गुणवत्तापूर्ण फल उत्पादन करने हेतु सर्व प्रथम यूनाईटेट किंगडम के ईस्ट मालिंग रिसर्च सेंटर में एम.एम. और एमला सिरीज के रूट स्टॉक बनाये गये थे। आज पूरी दुनियाँ में लगने वाले सेब की सघन बागीचों की स्थापना में इन्हीं सिरीज के रूट स्टॉक का प्रयोग किया जाता है।
यूनाईटेट किंगडम के ईस्ट मालिंग रिसर्च सेंटर के  वैज्ञानिक मार्टिन को रूट स्टॉक के जनक के रूप में जाना जाता है।
रूट स्टॉक दो प्रकार के होते हैं। जिन्हें टिश्यू कल्चर आधारित रूट स्टॉक एवं क्लोनल रूट स्टॉक कहा जाता है। इसके उलट पारम्परिक तकनीक में सीडलिंग या बीजू पौधा सामान्य रूप से बीज से तैयार किये जाते हैं।
क्लोनल रूट स्टॉक जड़ों द्वारा तैयार किया जाता है। जिससे तीन प्रकार के पौधे तैयार किये जाते हैं- 1. डवार्फ Dwarf (बौने), 2. सेमी डवार्फ Semi Dwarf (अर्ध बौना) तथा 3. बिगरस या बड़े।
क्लोनल रूट स्टॉक मुख्यतः बेजीटेटिव रूप से तैयार किये जाते हैं। जिसमें माउँट लेयरिंग एवं ट्रेन्ट लेयरिंग विधि का प्रयोग किया जाता है।
टिश्यू कल्चर से सेब के पांधे बनाने के लिए प्रयोगशालाओं में मादा पौधे के एक छोटे से भाग से हजारों पौंधे बनायें जाते हैं। इन पौंधों को एक प्रकार के मिट्टी रहित मीडिया में तैयार किया जाता है, जिसमें सभी प्रकार के जरूरी पोषक तत्वों को मिलाया जाता है। यही पोषक तत्व पौंधे को तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
सेब के क्लोनल रूट स्टॉक की मुख्य किस्में / प्रजातियां –
M 9 – क्लोनल रूट स्टॉक दुनियाँ की सबसे अधिक प्रचलित एवं सबसे अधिक उत्पादन देने वाली प्रजाति है। इस रूट स्टॉक से तैयार पौधे की अधिकतम ऊँचाई 12 से 13 फीट तक होती है। यह प्रजाति उच्च घनत्व तथा हाई डेनसिटी बागवानी के लिए सबसे ज्यादा उपयुक्त मानी जाती है।
यह प्रजाति सेब में लगने वाले फाइटोपथेरा बीमारी के प्रति प्रतिरोधक है। इस रूट स्टॉक पर सेब की गाला फूजी व रेड डिलिसियस की सेमी विगरस किस्में तैयार की जा सकती हैं।
M 26- यह रूट स्टॉक M 9 की अपेक्षा थोड़ा बड़ा होता है। आकार की दृष्टि से यह सीडलिंग का लगभग 40 से 45 प्रतिशत होता है। इस किस्म के रूट स्टॉक पर सेब की किस्म के अनुसार डवार्फ Dwarf (बौने) या सेमी डवार्फ Semi Dwarf (अर्ध बौना) पौधा तैयार किया जाता है।
इसे कम नमी वाले स्थानों में लगाया जाना चाहिए और इसे सहारे की आवश्कता भी कम होती है।
M 27- सेब की यह रूट स्टॉक सबसे बौनी प्रजाति है। इस रूट स्टॉक से तैयार पौधे की अधिकतम ऊँचाई 5 से 6 फीट तक होती है। पौधे को खड़ा रहने के लिए सहारे की आवश्कता होती है। इस प्रजाति के पौधे को गमलों में भी लगाया जा सकता है।
M 106-  इस किस्म की रूट स्टॉक M 26 की अपेक्षा थोड़ा बड़ा होता है। यह आकार की दृष्टि से सीडलिंग का लगभग 50 से 60 प्रतिशत होता है। इसमें सेब की सेमी डवार्फ Semi Dwarf (अर्ध बौना) किस्म का पौधा तैयार किया जाता है। इसे पौधे को सहारे की आवश्कता नहीं होती है। यह सबसे व्यापक रूप से उपयोग में किया जाने वाला रूट स्टाक है।
M 111- इस किस्म की रूट स्टॉक M- 106 की अपेक्षा और थोड़ा बड़ा होता है। आकार की दृष्टि से यह सीडलिंग का लगभग 80 से 85 प्रतिशत होता है। यह रूट रूटॉक सेब की रेंड डिलिसियस किस्म के पौध बनाने के लिए सबसे अधिक उपयोग की जाती है। यह सूखा प्रतिरोधी है।
इस किस्म की रूट स्टॉक से तैयार पौधे को हर प्रकार की मिट्टी में लगाया जा सकता है।
मर्टन सिरीज़-
मर्टन – 778 मर्टन -779, मर्टन -793 बहुत उपयोगी है यह वूली एफिड और कालर रौट के लिए प्रतिरोधी है।
सेब के जिनेवा रूट स्टॉक की मुख्य किस्में –
जिनेवा 16- इस किस्म की रूट स्टॉक M 9 से मिलता जुलता होता है। इस किस्म की रूट स्टॉक से तैयार पौधा अधिक पौदावार देता है और सेब में लगने वाले फायर ब्लाइट से लड़ने की क्षमता रखता है।
जिनेवा 41- इस किस्म की रूट स्टॉक M 9 से मिलता जुलता होता है। इस किस्म की रूट स्टॉक से तैयार पौधा अच्छी पौदावार देता है और सेब में लगने वाले फायर ब्लाइट से लड़ने की क्षमता रखता है।
जिनेवा 202- इस किस्म की रूट स्टॉक से तैयार पौधा छोटे आकार का होता है। इस किस्म की रूट स्टॉक M 26 से थोड़ा बड़ा होता है। इस किस्म की रूट स्टॉक से तैयार पौधा वूलि एफिड, कालर राट, क्राउनगाला, रूटराट जैसे रोगों के लिए प्रतिरोधी होता है।
जिनेवा 210- इस किस्म की रूट स्टॉक का आकार M 7 और M 106 की तरह होता है। इस किस्म की रूट स्टॉक से तैयार पौधा अधिक पौदावार देता है और सेब में लगने वाले अधिकतर रोगों से लड़ने की क्षमता रखता है।
उद्यान विभाग द्वारा राष्ट्रीय बागवानी वोर्ड एवं कृषि विविधीकरण परियोजना के सहयोग से अमेरिका एवं न्यूजिलैन्ड से बर्ष 2002-03 एवं 2003-04 में सेब की विभिन्न मूल वृन्तों पर रोपित 20 प्रजातियां और 5 क्लोनल मूल वृन्तों किस्में आयतीत की गई जिनका रोपण औद्यानिक शोध केंद्र चौबटिया रानीखेत तथा गोविंद बल्लभ पंत कृषि विश्वविद्यालय, पर्वतीय परिसर रानीचौरी में अध्ययन हेतु किया गया था परिणाम अपेक्षित है।
सेब के बाग लगाने में सावधानियां।
उत्तराखंण्ड का पर्वतीय क्षेत्र भौगौलिक रूप से Temperate zone नहीं है।यहां पर हम ऊचाई एवं वर्फीले पहाडों का लाभ लेते हैं।सेव के पेडों को जितनी ठड चिहिये यहां के पहाडों मै नही मिल पाती इसी का परिणाम है कि आज सेव के पुराने बाग समाप्त हो रहे हैं तथा नये बाग भी लाभकारी सिद्ध नहीं हो रहे हैं।
सेब में री प्लांनटेशन की बहुत बड़ी समस्या है पुराने सेब के बागों में यदि नये सेव के बाग लगाने के प्रयास किये जाते हैं तो सफलता नही मिलती है। अतः नई भूमि में ही सेब के बाग लगायें।
सेब को अधिक ठंड व धूप की आवश्यकता होती है, अधिक ऊंचाई वाले (16 00 मीटर से अधिक) क्षेत्र जो हिमांचल को छूते है तथा हिमालय के समीप उत्तरीय या उत्तर पश्चिम ढाल के क्षेत्रों में सेब उत्पादन की सम्भावनायै है अन्य क्षेत्र सेव उत्पादन के लिए कम उपयुक्त है।
दक्षिण व दक्षिण पश्चिम ढाल पर सेब के बाग न लगाएं।
टिशू कल्चर से तैयार रूट स्टाक वाले पौधे न लगायें। क्लोनल रूट स्टाक वाले पौधे ही लगायें।
MM- 106 एवं मर्टन- 793 क्लोनल रूट स्टाक वाले पौधों को बरीयता दें।
 M-9 क्लोनल रूट स्टाक के पौधों में वूली एफिड कीट का प्रकोप अधिक होता है मूसला जड़ न होने व जड़ें जमीन की सतह पर ही होने के कारण हवा से पौधे उखड़ जाने का डर रहता है इनको सहारे की आवश्यकता होती है।
निमेटोड का रूट स्टाक वाले पौधों पर अधिक प्रकोप होता है। अतः नैमैटोड फ्री स्थानों का चयन करें।
सिंचाई की व्यवस्था सुनिश्चित करें। क्लोनल रूट स्टाक के पौधों में मुसला जड़ नहीं होती साथ ही जड़ें जमीन में गहरी नहीं जाती जिस कारण इन पौधों को लगातार सिंचाई करनी पड़ती है।
अच्छी उपज हेतु 25 से 30% तक परागण कर्ता किस्मों का रोपण करें।
उद्यान पंडित श्री कुन्दन सिंह पंवार जी  बर्ष 2004-05 से क्लोनल रूट स्टाक पर कार्य कर रहे हैं, पंवार जी ने कृषकों से MM- 106, मर्टन -793 क्लोनल रूट स्टाक के पौधों को लगाने की संस्तुति की है।
रुट स्टाक की जानकारी हेतु संपर्क कर सकते हैं –
श्री कुन्दन सिंह पंवार मो० -9411313306
श्री बीरवान रावत – मो० 9412961331
श्री देवेन्द्र सिंह  मो० 9411538285
श्री मंगल सिंह – 8868091887
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