पौडी- पहाड़ों में अभी भी शादी-ब्याह में विरासत और संस्कृति का प्रचलन चल रहा है।

रिपोर्ट प्रभुपाल सिंह रावत
रिखणीखाल के गाँव नावेतल्ली में शादी-ब्याह, पुजाई, चूडाकर्म संस्कार आदि में अभी भी पौराणिक विरासत, संस्कृति की परम्परा की झलक दिखाई दे रही है।अभी बानगी का एक उदाहरण गाँव में देखा गया।इसी गाँव के प्रभुपाल सिंह रावत का कहना है कि गाँव में इस प्रकार का भोजन का पौष्टिक व रसीला स्वाद काफी अच्छा लगा।गाँव के युवा लड़कों ने खासकर जो होटल व्यवसाय से जुड़े हुए हैं, उनका सहयोग काफी प्रशंसनीय रहा।यहाँ सभी प्रकार के भोजन व्यंजन चूल्हे की आग में पकाये जाते हैं। जिसका स्वाद का मजा कुछ अलग ही है।
यहाँ का भोजन आमतौर पर दाल,भात,सब्जी, रोटी,सलाद आदि ही होता है।चूल्हे की आग से पकाया भोजन,पानी के स्वाद आदि पर और भी रोचक होता है।यहाँ के भोजन का स्वाद शहर के भोजन से अलग पाया जाता है।खाने के लिए लोग जमीन में पंक्ति में बैठकर ग्रहण करते हैं। एकादुका लोग ही कुर्सी में बैठकर भोजन करते हैं। जो कि किसी कारणवश जमीन में बैठने में असमर्थ रहते हैं। मौसम भी काफी अनुकूल होता है।काफी सालों से तो अब शादी-ब्याह दिन में ही आयोजित किये जाते हैं। लोगों की इच्छा पर मांसाहारी भोजन व मद्यपान का भी प्रबन्ध रहता है।इस गाँव के युवकों की एक ऐसी टीम है जो ये सब व्यवस्था बनाने में तत्पर रहते हैं। आज देखा गया है कि जो बाराती हल्दूखाल के लुइंठा से आये थे,उन्होने सबने भोजन व्यवस्था व यहां के युवकों की एकता व टीम की कार्यशैली की खूब प्रशंसा की है।गाँव के लोगों का भोजन पकाने के लिए बर्तन, भांडे टेन्ट आदि अपना रखा है।ये लड़के ऐसे मौके पर जहाँ भी सेवा कर रहे हैं, तुरन्त गाँव में पहुँच जाते हैं। इनका काम पानी की व्यवस्था, चाय,भोजन, व लोगों का आदर सत्कार करना होता है।ये विपरीत परिस्थिति में भी तैयार रहते हैं। सामुहिक भोजन का जमीन में बैठकर और ही मजा है।
यहाँ किराये का हलवाई आदि रखने की आवश्यकता नहीं होती है।पहले समय से थोड़ा अन्तर तो आया है लेकिन फिर भी ये अपनी विरासत व संस्कृति को संजोये हुए हैं।
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