उत्तराखंड

गढ़वाली और कुमाऊंनी समुदायों की पर्वतीय क्षेत्रों में मूल रूप से निवास कर रही समस्त जातियों को भारत के संविधान की पांचवीं अनुसूची में शामिल किया जाय: उत्तराखंड एकता मंच

बागेश्वर: उत्तराखंड एकता मंच ने केंद्र सरकार से मांग की है कि गढ़वाली और कुमाऊंनी समुदायों की पर्वतीय क्षेत्रों में मूल रूप से निवास कर रही समस्त जातियों को देश के संविधान की पांचवीं अनुसूची में शामिल किया जाय.

उत्तराखंड की समस्त पर्वतीय जनता के साथ-साथ भारत सरकार और उत्तराखंड सरकार तक आवाज पहुंचाने के लिए इस आंदोलन के पक्ष में मकर संक्रांति पर्व के अवसर पर 15 जनवरी 2024 को बागेश्वर में सरयू बगड़ तीरे विभिन्न संगठनों की ओर से यह संगठन मंच भी लगाएगा.

गढ़वाली और कुमाऊंनी समुदायों की समस्त जातियों को भारत के संविधान की पांचवीं अनुसूची में सम्मिलित करने की मांग के पक्ष में इस मंच से सरयू बागेश्वर उत्तरायणी संकल्प भी लिया जायेगा और देशभर में अहिंसात्मक संघर्ष भी किया जायेगा.

हमें अपने प्राकृतिक और मानव-निर्मित संसाधनों की लूट भी बंद करनी है. यदि हम इन्हें नहीं बचा पाए तो आने वाली पीढ़ियां हमें कोसेंगी। हमें कमजोर पीढ़ी के रूप में पहचानेंगी. इसलिए हमें लोकतांत्रिक एवं हिंसारहित आंदोलन के माध्यम से भारत सरकार के सम्मुख अपनी मांग रखनी होगी.

अपेक्षा है कि हमारी उत्तराखंड सरकार हमारे इस सामूहिक प्रयास में हमारा साथ देगी.

हम स्वतंत्र भारत में एक संवैधानिक व्यवस्था में गढ़वाल और कुमाऊं में परंपरागत सरोकारों के साथ सदियों से मूल रूप में रह रही समस्त गढ़वाली और कुमाऊंनी जातियों को देश के संविधान की पांचवीं अनुसूची में सम्मिलित किये जाने की मांग कर रहे हैं. उत्तराखंड में जौनसारी, भोटिया, थारू, बोक्सा और कुछ अन्य समुदायों की जातियों को किसी न किसी रूप में संविधान-सम्मत आरक्षण प्राप्त है. हम स्वागत करते हैं की इन समुदायों को आरक्षण मिल चुका है.

अब उत्तराखंड राज्य के सबसे अधिक जनसंख्या वाले गढ़वाली और कुमाऊंनी समुदायों की समस्त जातियों को आरक्षण की परिधि में लाये जाने की संविधान-सम्मत मांग है.

हमारी मांग है कि अनुसूचित दर्जे के लिए उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में संविधान की पांचवीं अनुसूची इस प्रकार से लागू हो कि परंपरागत सरोकारों के साथ मूल रूप सदियों से रह रही समस्त गढ़वाली और कुमाऊनी जातियां इसकी परिधि में आ जाएं। हमें यह अधिकार मिलाने के बाद हम अपने पर्वतों, हिमनदों, नदियों, वनों, खेतों, पर्यावरण इत्यादि की सुरक्षा, संरक्षण और संवर्द्धन बेहतर ढंग से कर पाएंगे.

बताते चलें कि भारत के सभी पहाड़ी इलाकों में श्येड्यूल्ड डिस्ट्रिक्स एक्ट, 1874 (Scheduled Districts Act, 1874) लागू था। यह एक्ट यानी अधिनियम उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में भी लागू था. बाद में देश के सभी पहाड़ी इलाकों में इस अधिनियम को बदलकर कहीं पांचवीं अनुसूची (5th Schedule) और कहीं छठी अनुसूची (6th Schedule) के रूप में बदल दिया गया l लेकिन, 1970 के दशक के आरंभ में उत्तराखंड क्षेत्र में श्येड्यूल्ड डिस्ट्रिक्स एक्ट, 1874 को पांचवीं अनुसूची में बदलने की जगह हटा दिया गया l इस अधिनियम के हटने के बाद से सरकारों, माफिआ और ठेकेदारों ने हमारे जंगल,पहाड़, नदी सब बेचने शुरू कर दिए l लेकिन अब हमें अपना हक वापस चाहिए l

देश के सभी पहाड़ी इलाकों में पांचवीं अनुसूची (5th Schedule), छठी अनुसूची (6th Schedule) या श्येड्यूल्ड ट्राइब स्टेटस (Scheduled Tribe Status) लागू है l लेकिन, उत्तराखंड इससे बाहर है. सवाल है कि हमें ही की क्यों इससे बाहर रखा गया है?

भारत सरकार की लोकुर समिति (1965) ने Tribal Status के जो मानक बनाए, उनमें उत्तराखंड का पर्वतीय क्षेत्र खरा उतरता हैl यहां भी सवाल है कि यह सब होने के बाद भी हमें ट्राइब (Tribe) का दर्जा क्यों नहीं दिया गया?

सरकार हमारी लोकतांत्रिक एवं संविधान-सम्मत इस मांग को पूरी कर उपरोक्त दो समुदायों को हक़ के साथ जीने का अधिकार प्रदान करे.

इस सार्वजनिक मंच से हम पांचवीं अनुसूची के लाभ के लाभ भी गिनाना चाहेंगे. ये हैं:

* ट्राइबल स्टेटस (Tribal Status) के परिणामस्वरूप युवाओं को शिक्षा, सरकारी नौकरियों जैसे क्षेत्रों में आरक्षण मिलेगाl

* हमारी नदियों, जंगलों, और पहाड़ों पर हमारा अधिकार होगा और अपने पर्यावरण और पारिस्थितिकी का संरक्षण और संवर्द्धन कर सकेंगे।

* उत्तराखंड के पर्वतीय इलाकों के विकास के लिए राज्य सरकार और केंद्र सरकार की विभिन्न योजनाओं के अंतर्गत अलग से फंड मिलेगाl

* अनुसूचित जनजाति अधिनियम (ST Act) जैसे प्रभावी कानून हमारी बहन-बेटियों को सुरक्षा प्रदान करेंगेl

* मूल निवास 1950, भू -कानून, परिसीमन जैसे मुद्दे पांचवीं अनुसूची की व्यवस्थाओं की मांग का कोई अर्थ और औचित्य नहीं रह जायेगा क्योंकि पांचवीं अनुसूची के अंतर्गत हमें ये सब अधिकार मिल जायेंगे.

* भाषा एवं संस्कृति का संरक्षण सुनिश्चित हो पायेगाl

उत्तराखंड एकता मंच के एक प्रमुख कार्यकर्ता अनूप बिष्ट के कहा कि प्रकृति ने अपनी अर्थात पर्वतों, हिमनदों, नदियों, वनों, खेतों इत्यादि की सुरक्षा और संरक्षण की जिम्मेदारी हमारे पूर्वजों को सौंपी और उन्होंने इसे बखूबी निभाया। अब यह जिम्मेदारी हम पर है. इसे निभाने के लिए हमें मिलकर संघर्ष करना है. उत्तराखंड में पहाड़ों, नदियों, जंगलों, जमीनों इत्यादि को बचाना होगा. इनकी लूट बंद करनी होगी. यदि हम इन्हें नहीं बचा पाए तो उस प्रकृति को कैसे मुंह दिखाएंगे जिसने अपनी सुरक्षा की जिम्मेदारी हमें दी है? आने वाली पीढ़ियां भी हमें कोसेंगी। हमें कमजोर पीढ़ी के रूप में पहचानेंगी.

श्री बिष्ट ने कहा कि भारत के सभी पहाड़ी इलाकों में श्येड्यूल्ड डिस्ट्रिक्स एक्ट, 1874 (Scheduled Districts Act, 1874) लगा हुआ था। यह एक्ट यानी अधिनियम उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में भी लागू था. बाद में देश के सभी पहाड़ी इलाकों में इस अधिनियम को बदलकर कहीं पांचवीं अनुसूची (5th Schedule) और कहीं छठी अनुसूची (6th Schedule) के रूप में बदल दिया गया l लेकिन, 1972 में उत्तराखंड क्षेत्र में श्येड्यूल्ड डिस्ट्रिक्स एक्ट, 1874 को पांचवीं अनुसूची में बदलने की जगह हटा दिया गया l इस अधिनियम के हटने के बाद से सरकारों ने हमारे जंगल,पहाड़, नदी सब बेचने शुरू कर दिए l लेकिन अब हमें अपना हक वापस चाहिए l

उन्होंने कहा कि पांचवीं अनुसूची के अनेक लाभ हैं यथा — (1) ट्राइबल स्टेटस (Tribal Status) के परिणामस्वरूप युवाओं को शिक्षा, सरकारी नौकरियों जैसे क्षेत्रों में आरक्षण मिलेगा, (2) हमारी नदियों, जंगलों, और पहाड़ों पर हमारा अधिकार होगा, (3) उत्तराखंड के पर्वतीय इलाकों के विकास के लिए राज्य सरकार और केंद्र सरकार अलग से फंड देंगी, (4) अनुसूचित जनजाति अधिनियम (ST Act) जैसे प्रभावी कानून हमारी बहन-बेटियों को सुरक्षा प्रदान करेंगे, (5) मूल निवास 1950, भू – कानून, परिसीमन जैसे मुद्दे पांचवीं अनुसूची की व्यवस्थाओं के अंतर्गत स्वत: हल हो जाएंगे, और (6) भाषा एवं संस्कृति का संरक्षण सुनिश्चित हो पायेगाl

उत्तराखंड एकता मंच के एक अन्य वरिष्ठ कार्यकर्ता महेंद्र सिंह रावत ने कहा कि देश के सभी पहाड़ी इलाकों में पांचवीं अनुसूची (5th Schedule), छठी अनुसूची (6th Schedule) या श्येड्यूल्ड ट्राइब स्टेटस (Scheduled Tribe Status) लागू है l लेकिन, उत्तराखंड इससे बाहर है. सवाल है कि हमें ही की क्यों इससे बाहर रखा गया है? उन्होंने कहा कि भारत सरकार द्वारा गठित लोकुर समिति (1965) ने अनुसूचित जनजाति (Tribal Status) के जो मानक बनाए, उनमें उत्तराखंड का पर्वतीय क्षेत्र खरा उतरता हैl यहां भी सवाल है कि यह सब होने के बाद भी हमें ट्राइब (Tribe) का दर्जा क्यों नहीं दिया गया?

श्री रावत ने कहा कि जब उत्तराखंड का विकास होगा तो उत्तराखंडी पलायन से बचेंगे और हिमालय क्षेत्र में जनसंख्या वृद्धि में योगदान करेंगे. तिब्बत से लगी सीमा के निकट स्थानीय लोगों की रिहायश बढ़ने से चीन की सेना भारतीय सीमाओं का अतिक्रमण करने से पहले अनेक बार सोचेगी. भारतीय सेना में जसवंत सिंह जैसे उत्तराखंडी वीरों का इतिहास चीनी सेना बखूबी जानती है और यह भी कि उत्तराखंडी लोग मार्शल कौम से आते हैं. तिब्बत से लगी सीमा पर भारतीय सेना का खर्च भी कम होगाl शिखरों, पहाड़ों, नदियों, जंगलों और कुल मिलकर पर्यावरण का संरक्षण सुनिश्चित होगा l हिमालयी नदियां सदानीरा बनी रहेंगी तब देश की खेती के एक बड़े भाग को सूखे के हालात से नहीं गुजरना पड़ेगाl लोगों को पीने के लिए भी स्वच्छ जल मिलेगाl संक्षेप में, पांचवीं सूची के लिए संघर्ष केवल उत्तराखंड के पर्वतीय भूभाग को बचाने के लिए नहीं है। यह संघर्ष हिमालय को बचाने का भी हैl

उत्तराखंड एकता मंच का यह सरयू बागेश्वर अभियान राज्य आंदोलनकारी और वरिष्ठ पत्रकार सुरेश नौटियाल के नेतृत्व में चल रहा है. यह अभियान निकट भविष्य में एक बड़े आंदोलन का रूप लेगा. (अनूप बिष्ट)  संगठनकर्ता, उत्तराखंड एकता मंच

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