उत्तराखण्ड राज्य बनने के बाद “मांगे”आज भी काफी पर अलग अलग क्यों बटे हम?
उत्तराखंड राज्य बनने के बाद भी कुछ मांगों को निरंतर उठाया जा रहा है, लेकिन सरकार के द्वारा उन मांगों पर कुछ भी साकारात्मक कदम नहीं उठाया जा रहा है, कारण सपष्ट है की हर मांग अलग अलग दलों के द्वारा उठाई जा रही है , जिस दिन सभी दल और सामाजिक संगठन मिल कर एक एक मुद्दे पर सरकार से भिड़ेंगे तो परिणाम भी अवश्य आएंगे, जैसे सभी लोगों ने एकजुट होकर “उत्तराखंड राज्य” की मांग की थी और प्राप्त भी किया। अब मांगे भी ज्यादा है और दल भी अलग अलग हो रहे है। सरकार इन्ही का फायदा उठा रही है।
01. स्थाई राजधानी का मुद्दा
02. भू कानून का मुद्दा
03. मूल निवास का मुद्दा
04. चक बंदी का मुद्दा
05. भाषा अकादमी का मुद्दा
06. पलायन आयोग का मुद्दा
07. भाषा को संविधान की 8वीं सूची में लाना
08. नए परिसीमन पर चर्चा
09. उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी को चिन्हित करना।
और आजकल प्रदेश को संविधान की पांचवी सूची पर लाने के लिए भी प्रयास किए जा रहे हैं।
परंतु विगत 24 वर्षों में इन उपरोक्त मांगो पर कोई भी सरकार साकारात्मक नहीं रही, कारण इन सब मांगो की आवाज उठाने वाले कभी भी एक मंच पर नही आए।
ऐसा मेरे को लगता हैं।
“दगड़या”
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