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दिल्‍ली -उतरैणी का महात्म्य व कहां कैसी मनाते हैं बताया विद्वानों ने

रिपोर्ट  विनोद मनकोटी नई दिल्‍ली

दिल्ली में उत्तरैणी मकरैणी के महात्म्य और उसे कहां किस तरह मनाया जाता है के बारे में विद्वानों ने अपनी-अपनी बातें रखी। यह कार्यक्रम उत्तराखंडी भाषा न्यास (उभान्) और गढ़वाली कुमाऊनी जौनसारी अकादमी के संयुक्त तत्वाधान में दिल्ली के गढ़वाल भवन के अलकनंदा सभागार में आयोजित किया गया ।
इस कार्यक्रम में विशेष रूप से आमंत्रित भूगोलवेत्ता प्रोफेसर सुरेश बंदूणी, ज्योतिषाचार्य डॉ मधुकर द्विवेदी, कुमाऊं गढ़वाल व जौनसार से सर्वश्री चारुचंद्र तिवारी, पृथ्वी सिंह केदारखंडी व सुल्तान सिंह तोमर ने इस त्यौहार के महात्म्य और अपने अपने क्षेत्रों में मनाने के ढ़ंग की जानकारी दी। प्रथम सत्र की अध्यक्षता प्रो. सुरेश बंदूणी ने की।


इस कार्यक्रम में न्यास से आयोजक डॉ. बिहारीलाल जलन्धरी और अकादमी से श्री एस. के. दास ने वक्ताओं व कवियों को फूल, माला, अंगवस्त्र तथा स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया।
अकादमी के प्रतिनिधि श्री एस.के. दास ने अकादमी के उद्देश्यों के बारे में कहा कि अकादमी उत्तराखंड की बोली, भाषा, संस्कृति, साहित्य व संस्कृति से संबंधित सभी विधाओं पर पुरजोर तरीके से कार्य कर रही है। उत्तराखंड समाज से पूरा सहयोग अकादमी को मिल रहा है।
श्री चारु चंद्र तिवारी ने कुमाऊं क्षेत्र में मनाए जाने वाली मकरैणी के बारे में कई उदाहरण देकर कहा कि इस दिन तत्वणी और सत्वणी पानी से नहान के बाद जागर, गीत, झौड़े गाने के बाद भिन्न पकवान बनाकर प्रसाद रूप में दिए जाते हैं ।
श्री पृथ्वी सिंह केदारखंडी ने गढ़वाल में मनाने के संबंध में कहा यहां इसे खिचड़ी का त्योहार कहते हैं खिचड़ी सूखी या बनाई हुई दोनों तरह से दान की जाती है। इस दिन गोधूलि पर जल श्रोत में नाहन के बाद सूर्य की पहली किरण को जल अर्पित कर पूजा की जाती। बेटियां माइके आकर सबसे भेंट करती हैं।


श्री सुल्तान सिंह तोमर ने जौनसार में मनाने की रीति के संबंध में कहा- सभी क्षेत्रों में सुबह स्नान के बाद सूर्य अर्घ्य देकर व महासू देवता की पूजा से यह कार्यक्रम आरंभ होता है जो दिनभर चलता है।
प्रो. सुरेश बंदूणी ने कहा कि आज हम विकास की ओर जितनी तीव्र गति से आगे बढ़ रहे हैं संकट भी उतना ही हमारे साथ आगे बढ़ रहा है। उन्होंने ग्लेशियरों के लगातार पिघलने पर चिंता व्यक्त की और कहा नदियों में पानी अधिक होने से आज हम खुश हो रहे हैं, हमारे महानगरों में पानी की कमी यही हिमनदियां पूरी करती है, जब यह हिम नदियां जब पानी देना बंद कर देंगे तब यह महानगरी संस्कृति बिना पानी की कैसे जीवित रहेगी । जहां पांच हजार वर्षों में पर्यावरण परिवर्तन होना था वहां अधिक उत्सर्जन से यह प्रक्रिया दो सौ वर्षों में ही पूरी हो जाएगी। ऐसे में हिम नदियां सूख कर हर जगह पानी का अकाल हो जाएगा । उन्होंने पर्यावरणीय दुष्प्रभाव पर चिंता व्यक्त की।
डॉ मधुकर शास्त्री ने कहा-ग्रहों का राजा सूर्य जब दक्षिणायन से उत्तरायण की ओर आते हैं तब इसका असर सभी ग्रहों होता है उन्होंने कई उदाहरण देकर कहा-सूर्य देव को उनके उदय होने पर हाथ जोड़कर प्रणाम कर जल चढ़ा दें तो सूर्य देव उसी से खुश हो जाते हैं ऐसे में उस व्यक्ति का जीवन खुशियों से भर जाता है। हमारी दिनचर्या का आधार स्थिर पिंड सूर्य ही है। जबकि पृथ्वी दो तरह से गतिमान है अपनी धुरी पर घूमते हुए समय और सूर्य के चक्कर काट कर ऋतुएं बदलती हैं। उत्तरायण से दिन का समय भी बढ़ने लगता है।


पहले सत्र समाप्ति पर सभी को चाय और घुघते परोसे गए। दूसरे सत्र में कवि सम्मेलन का आयोजन हुआ । उपस्थित कवियों में डॉ. पुष्पलता भट्ट, डॉ. सुशील सेमवाल, श्री गिरीश बिष्ट ‘हंसमुख’, श्री चंद्रमणि शर्मा चंदन, श्री तिलक राम शर्मा, श्री सुरेंद्र सिंह रावत, श्री सागर पहाड़ी, श्रीमती पूनम तोमर, श्री संदीप गढ़वाली, श्री प्रतिबिंब बड़थ्वाल ने उत्तरैणी-मकरैणी के उपलक्ष में कविता पाठ किया।
सभा के अंत में डा. बिहारीलाल जलन्धरी ने सभी को धन्यवाद देते हुए कहा-न्यास बोली भाषा को बचाने के साथ अन्य समाज हित के काम भी करेगा। न्यास निकट भविष्य में दिल्ली में एक बड़ा परिचय सम्मेलन करेगा । उन्होंने कहा कि हमें इस तरह के कार्यक्रम करने चाहिए जिससे पूरे समाज का हित हो सके।
कार्यक्रम में सर्वश्री गिरीश बंदूणी, भगवती प्रसाद जुयाल गढ़देशी, ओम ध्यानी, संगीता सुयाल, सुरेन्द्र सिंह चौहान आदि कई लोग उपस्थित हुए।
इस अवसर पर उत्तरैणी-मकरैणी पर्व पर बनने वाले पकवानों में घुघते और घी खिचड़ी सभी उपस्थित लोगों को परोसे गए।

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