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दिल्ली में उत्तराखंड राज्य स्थापना दिवस के पूर्व दिवस पर उत्तराखंडी भाषा संगोष्ठी व कवि सम्मेलन हुआ सम्पन्न

रिपोर्ट  विनोद मनकोटी  दिल्‍ली

दिल्ली में उत्तराखंड राज्य स्थापना दिवस के पूर्व दिवस पर गढ़वाली, कुमाउँनी एवं जौनसारी अकादमी, दिल्ली सरकार एवं उत्तराखण्डी भाषा न्यास (उभान्) के संयुक्त तत्वावधान में उत्तराखण्डी भाषा पर एक संगोष्ठी * व *कवि सम्मेलन का आयोजन राजेन्द्र भवन, दीन दयाल उपाध्याय मार्ग, नई दिल्ली के सभागार में किया गया। प्रथम सत्र में संगोष्ठी की अध्यक्षता न्यास के अध्यक्ष श्री नीलाम्बर पाण्डे द्वारा की गई। मुख्य वक्ताओं में प्रसिद्ध साहित्यकार प्रदीप पंत, पार्थसारथी थपलियाल, डॉ. राजेश्वर शाह और कार्यक्रम संयोजक डॉ. बिहारीलाल जलन्धरी थे। सभी वक्ताओं ने गढ़वाली, कुमाउँनी एवं जौनसारी भाषाओं के विकास के लिए महत्वपूर्ण सुझाव दिए। कार्यक्रम का प्रारंभ डॉ. बिहारीलाल जलन्धरी की दो पुस्तकों उतराखंडी भाषा में काव्य संग्रह कौथग्यारी और छुयांल के विमोचन के साथ आरंभ हुआ। मंच संचालन डॉ जलन्धरी डॉ पृथ्वी सिंह केदारखंडी व श्री सुल्तान तोमर ने संयुक्त रूप से किया । डॉ जलन्धरी ने कहा कि उत्तराखंड का साहित्यकार भाषा के पक्ष में कई धड़ों में बंटे हुए हैं। जिनमें मुख्य झगड़ा, मैं गढ़वाली तू कुमाऊनी वह जौनसारी की तरह अन्य भाषाओं का है। हम न्यास के माध्यम से इन भाषाओं के समान शब्दों के समायोजन करने पर काम करेंगे। उन्होंने कहा -यही कारण है कि राज्य गठन के बाईस वर्षों बाद भी उतराखंड सरकार वहां की सभी भाषाओं को पोषित करने एक अकादमी का गठन नहीं कर पाई। उन्होंने ने दिल्ली में गढ़वाली कुमाऊनी जौनसारी अकादमी के उपाध्यक्ष डॉ कुलदीप भंडारी एवं सचिव श्री संजय गर्ग का धन्यवाद किया जो अकादमी की योजनाओं के माध्यम से दिल्ली के समाज को पोषित करने में जुटे हैं। श्री प्रदीप पंत ने उत्तराखंड की

प्रतिनिधि भाषा पर काम करने के लिए सभी साहित्यकारों का आह्वान किया। श्री पार्थसारथी थपलियाल ने लोकभाषा की मिठास भरे उदाहरणों के साथ इस कार्य को अपना पूर्ण समर्थन दिया। डॉ राजेश्वर शाह व श्री सुरेश नौटियाल ने उतराखंड के लिए उतराखंडी भाषा पर काम करने की नितांत आवश्यकता समझी। श्री नौटियाल ने श्री पाण्डेय जी के वक्तव्य अनुसार एक मेमोरेंडम बनाकर उतराखंड व दिल्ली सरकार को देने का प्रस्ताव भी रखा। श्री नीलांबर पांडेय ने गढ़वाली कुमाऊनी के समान शब्दों का उल्लेख करते कहा कि लोक भाषाएं तो अपनी जगह हैं परंतु हमें प्रतिनिधि भाषा के लिए इनके समान शब्दों आधारित साहित्य तैयार करने पर काम करना है। जैसे हिंदी भी पहले कोई भाषा नहीं थी। अवधी मगही बृज व सधुकड़ी वाली खड़ी बोली में अन्य कई लोक भाषाओं के शब्दों को जुड़ने से हिंदी पोषित हुई जिसे केन्द्र सरकार ने संरक्षण दिया। न्यास का प्रयास रहेगा कि उत्तराखंडी भाषा पर कार्य को उत्तराखंड सरकार संरक्षण दे।


कवि सम्मेलन का संचालन कवि डॉ पृथ्वी सिंह केदारखंडी द्वारा किया गया। कवि सम्मेलन में गढ़वाली कवि कुंज बिहारी मुंडेपी, सुरेंद्र सिंह रावत ‘लाटा’, कुमाउँनी कवियों में लखनऊ से आमंत्रित श्री कौस्तुभ आनन्द चंदोला, श्री गिरीशचंद्र बिष्ट ‘हँसमुख’, श्रीमती मीना पाण्डे, श्री रमेश चंद सोनी और जौनसारी कवि श्री राम सिंह तोमर तथा श्रीमती पूनम तोमर ने अपनी कविताओं के माध्यम से राष्ट्र निर्माण के साथ उतराखंड की प्रतिनिधि भाषा के काम में सजगता के साथ योगदान देने के लिए आह्वान किया। इस अवसर पर साहित्यकारों के साथ-साथ गढ़वाली, कुमाउँनी और जौनसारी भाषा एवं संस्कृति के प्रसार-प्रचार में सक्रिय रूप से कार्यरत संस्थाओं को भी सम्मानित किया।
कार्यक्रम के अंत में हिन्दी अकादमी तथा गढ़वाली, कुमाउँनी और जौनसारी अकादमी, दिल्ली के सचिव श्री संजय गर्ग ने सभी अतिथियों, कवियों, वक्ताओं और दर्शकों का आभार व्यक्त किया।
इस कार्यक्रम में कई साहित्यिक व सामाजिक संगठनों को न्यास और अकादमी द्वारा एक सम्मान पत्र व दिल्ली के साहित्यकारों के व्यक्तित्व व कृतित्व पर आधारित पुस्तक उतराखंड के अनिवासी साहित्यिकार भेंट की। पुस्तक में जिन साहित्यकारों को स्थान दिया गया, उनकी अनुपस्थिति पर वह अकादमी के सम्मान पत्र से संचित रह गए। कुछ दिन बाद अकादमी व न्यास द्वारा इस कार्यक्रम से संबंधित एक समीक्षा बैठक में जो उपस्थित होंगे उन्हें अकादमी व न्यास द्वारा सम्मान पत्र भेंट किए जाएंगे। इस की सूचना अलग से दी जाएगी।

इस कार्यक्रम में जिन साहित्यकारों को सम्मान पत्र भेंट कर सम्मानित किया गया उनमें सर्वश्री प्रदीप पंत, पार्थसारथी थपलियाल, नीलांबर पांडेय, गिरीश चंद्र बिष्ट हंसमुख, पृथ्वी सिंह केदारखंडी, कुंज बिहारी मुंडेपी, सुरेन्द्र सिंह रावत लाटा, चंद्र मोहन पपनै, राम प्रसाद भदूला, कौस्तुभ आनंद चंदोला, उदय ममगाईं राठी, चंंदन प्रेमी, ओम प्रकाश आर्य, चंद्रमणि चंदन, डा सुशील सेमवाल, विमल सजवाण, वृजमोहन वेदवाल, कैलाश धस्माना माना, सुरेश नौटियाल, संगीता सुयाल, मंगत राम धस्माना, आशीष तोमर, भगवती प्रसाद जुयाल , सुनील सिंधवाल रोशन, डॉ पुष्पलता भट्ट, डॉ अंजली थपलियाल कौल, बबीता नेगी के अतिरिक्त अनेक संस्थाओं के प्रतिनिधियों को अकादमी की ओर से सम्मान पत्र भेंट कर सम्मानित किया गया।

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