अल्मोड़ा -उतराखंड के कुमाऊं में भिटौली गढ़वाल में कलेऊ पारंपरिक लोकप्रिय पर्व है।

रिपोर्ट प्रताप सिंह नेगी
चैत्र मास के फूलदेही से भिटौली विवाहित बहन, बेटियों के लिए मायके से भिटौली उपहार का बेसब्री से इंतजार होता है।
उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में प्राचीन काल में बहन बेटियों की शादी दूरदराज क्षेत्रों में हुआ करती थी।इन विवाहित बहन, बेटियों को ज्ञातायात के अभाव के कारण अपने मायके जाने का समय बहुत कम मिलता था।
साल के चैत्र मास इनके परिवार से भिटौली के उपहार के साथ साथ मायके वालों से भेंटघाट हो जाती थी।
चैत्र मास में खेतों में सरसों फूल रही होती है पेड़ के डालियों में घुखति पक्षी गुनगुना कर ये विवाहित बहन, बेटियों को इस भिटौली की यादें दिलाती है।
आइये आगे बताते चलें भिटौली के बारे में। अलग-अलग लोकप्रिय कलाकारों ने इस भिटौली के बारे में लोकगीतों के द्धारा भी दर्शाया है विवाहित बहन, बेटियों के लिए भिटौली का विवरण।
उत्तराखंड के स्वर कोकिला आशा नेगी ने इस लोकप्रिय लोकगीत को 24साल पहले गाया है।
दाद मियरो घर हुनौ मैं भिटौली लौनौ,नान भूलू मियर हूनौ मैं बुलड़ौ उनौ ।।
इजू मेरि हुनी मैं मैत बुलुनी।।
बोजि परायि चेलि को दिना दिखनौ इजू यौ मातकि देयि।
इधर स्वर्गीय गोपाल बापू गोस्वामी जी ने भिटौली पर गीत गाया था।
ना बासा घुघुति चैत की,याद ऐछौ मैतैकि
पौराणिक कथाओं के अनुसार भिटौली के बारे में। एक भाई अपनी मां से पूछा मां बहिन को भिटौलि देने के लिए इस बार मैं जाता हूं। मां ने बेटे को भिटौली का समान देकर तैयार किया।भाई घने जंगलों के रास्ते कोसों दूर अपनी बहन को भिटौली देने चला गया।जब बहिन के घर पर गया बहिन खेतों में काम करके थक कर आई थी सो गई।भाई ने उसके सिरहाने के सामने भिटौली समान रखा बहिन जगाया तो बहन जगी नहीं सोई रह गई।भाई को किसी कारण वस घर वापस आना था भाई भिटौली को उसके सिरहाने रखकर चला आया जब शाम के टाइम पर बहिन की नींद खुली तो उसने भिटौली का समान देखा तो भाई भाई कहकर चिल्लाने लगी बहार देखा तो पक्षियों की चढ़चढाट।तब उसने दुःख से कहा भाई आया वापस चला गया उसने कहा भै भुको मैं सिति रै गि।। तब उसने दुःखी होकर प्राण त्याग दिए।बाद वही बहन घुघुति पक्षी के रूप आई जो आज भी चैत्र मास विवाहित बहन, बेटियों को खेतों के ऊपर पेड़ डालियों से आवाज देकर भिटौली की यादें दिलाती है।