देहरादून

देहरादून-पहाड़ के माल्टे को बेहतर कीमत और बाजार दिलाने पर जोर

रिपोर्ट  विक्रम पटवाल

-माल्टे के साथ उठाये अपना हाथ अभियान शुरू, विशेषज्ञों बोले सरकार को करने होंगे अधिक प्रयास
-इस वर्ष अभियान माल्टा का महीना ने पकड़ा जोर,लोगो के सकरात्मक सुझाव औऱ मांग से उत्साहित
-माल्टा फ़ूड फेस्टिवल के साथ 12 जनवरी को होगा अभियान का समापन, सुझाव लेकर शासन को सौंपा जाएगा मांगपत्र
देहरादून। पहाड़ के माल्टे को बेहतर कीमत और बाजार दिलाने के लिए धाद संस्था की ओर से चलाए जा रहे माल्टे के साथ उठाये अपना हाथ अभियान शुरू कर दिया है। वक्ताओं ने माल्टे की महत्ता और इससे रोजगार से जोड़ने पर जोर दिया। कहा कि इस वर्ष अभियान माल्टा का महीना ने जोर पकड़ा है और लोगो के सकरात्मक सुझाव औऱ मांग से उत्साहित हैं।
रविवार को सर्वे चौक स्थित ऑर्गेनिक मंडी में अभियान का शुभारंभ किया। सभी ने अपने हाथों में माल्टा उठाकर उसका समर्थन करते हुए इसका सेवन करने पर जोर दिया। लोगों ने माल्टा विक्रय के साथ उस बाबत सबने अपने विचार भी साझा किए। जिसमें वक्ताओं ने पहाड़ के माल्टे पर अपनी बात रखी तो लोगों ने भी इसका समर्थन किया। धाद के सचिव तन्मय ममगाईं ने कहा कि पहाड़ में बड़ी मात्रा में ऑर्गेनिक रूप से पैदा हो रहे माल्टे के साथ हाथ उठाकर हम सब उसका समर्थन करेंगे और दूसरों से भी अपील करने के लिए अभियान शुरू किया है। उन्होंने कहा कि सर्दी के इस मौसम में खट्टे-मीठे रस और विटामिन सी के लिए पहाड़ के माल्टे जरूर खाएं। माल्टे इसलिए भी खरीदें ताकि अच्छा बाजार मिले। सही कीमत मिलने से उत्पादकों की भी उम्मीद जगेगी। अभियान के बारे में बताते हुए धाद के सचिव तन्मय ममगाईं ने बताया सरकारी आंकड़ों पर गौर करें तो उत्तराखंड में पिछले साल (2023-24) 36 हजार मेट्रिक टन सिट्रस फलों का उत्पादन हुआ। यदि इसमें से 60-70 प्रतिशत माल्टा मान लिया जाए तो उत्तराखंड हिमालय में लगभग 2-2.50 करोड़ किलोग्राम (13-15 करोड़ माल्टे) पैदावार है। इसकी औसतन कीमत 30-40 रुपये प्रति किलो आंकी जाए तो यह 100 करोड़ की आर्थिकी बनती है। हालांकि हमारी मंडियो में ऐसा बमुश्किल ही नजर आता है। आज भी एक बार फिर जब उसकी आमद हुई है तो राजधानी की मंडियो में वो गायब है। जिस दौर में सैकड़ों फलों को देश दुनिया का बाजार मिल रहा है तब इतनी बड़ी मात्रा में पैदा हो रहा माल्टा अपने प्रदेश के बाजार से ही गायब है। बिना कीमत के खत्म हो रहा है। हम इसे सामाजिक चिंता मानते हैं और दो स्तर पर समाधान देखते हैं। एक शासन के स्तर पर जबकि दूसरा समाज के रूप में। हम तमाम सुझाव और निष्कर्ष शासन को सौंपने और उनसे हस्तक्षेप की उम्मीद के साथ इस दिशा में एक सामाजिक अभियान भी प्रारंभ कर रहे है। धाद के उपाध्यक्ष डीसी नौटियाल ने कहा राज्य को बने हुए 24 साल हो गए लेकिन हम आज भी अपने गांव के खेतों में हो रहे इस नैसर्गिक फल को सही कीमत नहीं दिलवा पा रहे है। धाद का प्रयास इस दिशा में एक छोटी पहल है जिसमे हमने देहरादून और दिल्ली एन सी आर में इसके सघन प्रचार और बाजार का अभियान चलाया है। अभियान के सह संयोजक वैवाहिक साइट मांगल डॉट कॉम के विजय भट्ट ने माल्टा को बाजार तक लाने की सही व्यवस्था की जरूरी बताया। कहा कि सही कीमत के लिए जरूरी है कि संस्थागत हस्तक्षेप और अलग अलग जगह बाजार के लिए सहयोग मिले। युवा किसान नीलेश ने बताया आज सोशल मीडिया में सिट्रस प्रजाति के फल अच्छे दामों पर मिल रहा है। लेकिन माल्टे की सही बाजार नहीं हो पा रहा है। जबकि हमारा माल्टा बहुत हद तक राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खरा उतर सकता है। मूल निवास भू कानून के संयोजक मोहित डिमरी ने बताया कि यह सच है कि आज माल्टा पहाड़ में बहुतायत में पैदा हो रहा है लेकिन वो पेड़ पर ही सड़ रहा है। ट्रंसपोर्टेशन में पहाड़ से आ रहे सब्जी के ट्रक बहुत सस्ते धुलाई के माध्यम बन सकते है। अस्थि रोग विशेषज्ञ डा. जयंत नवानी ने कहा कि माल्टा विटामिन सी से भरपूर है और इम्युनिटी के लिए बहुत कारगर है। इसलिए इसका उपयोग स्वास्थ्य के लिए बेहतर है। इसलिए इसे सबके आहार में शामिल होना चाहिए। अभियान का समापन माल्टा फ़ूड फेस्टिवल के साथ 12 जनवरी को होगा। इसके साथ ही आए हुए सुझाव को मांगपत्र शासन को सौंपा जाएगा। इस मौके पर कमलानंद मैठाणी, पुष्पलता ममगाईं, बृजमोहन उनियाल, गणेश उनियाल, योगेश बिष्ट,जमाल खान, शुभम और संजय आदि मौजूद रहे।

ऑर्गेनिक उत्पादों का बड़ा बाजार इसलिए माल्टा को मिल सकती है सही कीमत
जैविक खेती पर काम कर रहे सोलोमन दास ने बताया कि माल्टा प्राकृतिक रूप से बिना किसी मानवीय हस्तक्षेप के पैदा हो रहा है। ऐसे में यह ऑर्गेनिक कहा जा सकता है।आज ऑर्गेनिक उत्पादों का बड़ा बाजार है इसलिए इसको सही कीमत मिल सकती है। उन्होंने माल्टा की महत्ता को बताते हुए कहा कि हिमालय के शुद्ध वातावरण में बगैर कैमिकल का पैदा हो रहा माल्टा विटामिस सी का खजाना है। उत्तराखंड हर वर्ष दो से ढाई किलो माल्टा उत्पादन कर रहा है। लेकिन इसके बार बाजार न होने से यह बर्बाद हो जाता है। ऐसे में माल्टा का उत्पादन करने वाले किसानाें का समर्थन के लिए सभी को आगे आना होगा।
सेब को पैकेजिंग मटेरियल, बोरियों में हो रहा माल्टा का ढुलान
पर्वतीय कृषक बागवान उद्यमी संगठन के अध्यक्ष बीरभान सिंह ने कहा कि सेब को आज पैकेजिंग मटेरियल मिल रहा है लेकिन माल्टा आज बोरियों में ढुलाई हो रही है जबकि इसकी व्वयवस्था होनी चाहिए। इसके साथ ही माल्टे के और भी उत्पाद बनाने के प्रयोग होने चाहिए जिसके लिए संस्थागत सहयोग की जरूरत है। अभियान में माल्टा के क्रय विक्रय का सहयोग कर रहे फंची सहकारिता के किशन सिंह ने कहा कि अभियान के परिणाम उत्साहजनक है और उसे सही कीमत दिलवाने का प्रयास सफल हो रहा है। लेकिन अभी बहुत काम किये जाने बाकी है।

उत्पादकों में एक उम्मीद की किरण पैदा करने का प्रयास
वक्ताओं ने कहा कि सर्दी में हर व्यक्ति एक माल्टा जरूर खाएं और सगे संबंधियों को भी कहें। यदि ऐसा होगा तो हम उत्पादकों में एक उम्मीद की किरण पैदा कर सकेंगे। अगर हम इसे अभियान बना सके तो इसका लाभ उन सैकड़ों हजारों किसानो को मिलेगा जिनके पेड़ो में माल्टे एक सवाल कि तरह लटके हुए हैं। कहा कि माल्टा जरूर खाएं। इसके साथ उसे हाथ में लेकर एक फोटो खींच कर मित्रों को भेजें। जिससे वो भी ऐसा करें और माल्टा का सेवन एक मुहिम बनते हुए दुनिया इसका स्वाद लेती दिखाई दे।

उत्पादन और बाजार पर होती है चर्चा, शासन को भेजते हैं मांगपत्र
वक्ताओं ने कहा कि धाद के अध्याय हरेला गांव की तरफ से पहाड़ के माल्टे के पक्ष में हर साल माल्टा का महीना नाम से पहल की जाती है। जिसमें माल्टे का उत्पादन व बाजार पर चर्चा, शासन को मांगपत्र भेजने के साथ ही उत्पादकों को बाजार दिलाने का प्रयास रहता है। इसके साथ ही फंची सहकारिता के तहत जितना माल्टा मिल रहा है उससे ज्यादा मांग है। लेकिन एक सामाजिक संस्था के रूप में हमारी संसाधनों और पहुंची की एक सीमा है।
कई जिलों में पेड़ों से माल्टा न तोड़ना चिंताजनक
वक्ताओं ने कहा कि यह भी सूचना मिल रही है कि अभी भी कई जिलों में माल्टा पेड़ों से नहीं तोड़ा जा रहा। क्योंकि उसके सम्मानजनक खरीदादर नहीं है। ऐसे में जरूरी है कि इसकी व्यापक मांग पैदा हो औऱ पहाड़ में हर पेड़ के हर माल्टे का मूल्य मिले। इसके साथ ही यह भी महत्वपूर्ण है कि उत्तराखंड में हर व्यक्ति इसका खरीददार बने। इसके बाद उसकी मांग देश दुनिया में पैदा हो। इसके लिए शासन के साथ सामाजिक स्तर पर भी प्रयास किये जाएं।माल्टे के साथ उठायें अपने हाथ पहाड़ के माल्टे के पक्ष में धाद का जागरूकता अभियान
माल्टा का उत्पादन अधिक, सरकार को करने होंगे प्रयास
पौड़ी बचाओ संघर्ष समिति के नमन चंदोला ने कहा उनके शहर में माल्टा का उत्पादन बहुत मात्रा में हो रहा है लेकिन इस और सरकार को और अधिक प्रयास करना चाहिए। पहाड़ में छोटी मंडियों में यह बहुत अच्छा बाजार मिल सकता है। आंकड़ों में पहाड़ के फलों के उत्पादन की कहानी कुछ और है लेकिन हकीकत में पहाड़ के किसान आज निराश नजर आते हैं।

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