मूलनिवासियों को पहाड़ से आउट कराने की साजिसों को समझें- केवलानंद तिवारी

मूलनिवासियों को पहाड़ से आउट कराने की साजिसों को समझें…
मित्रों,
पहाड़ में बिखरी कृषिभूमि की चकबंदी नहीं कराके जो मूलनिवासियों की आजीविका का मुख्य साधन है, उनको उनके पैत्रिक गांवों से ही आउट कराने की प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष सजिसों को भी संक्षिप्त में समझें :-
1- 1960-62 से भूमिबंदोबस्त, यानी नये खेत बनाने की प्रक्रिया को रोकाना-
2- 1960 से कुजा एक्ट भी लागू कराके सीमित कृषिभूमि को और भी कम करना-
3- 1985 में 52/- रूपये प्रति किग्रा० की दर तक बैठने वाले कृषि पैदावारों के आकडे बताते हैं कि पहाड़ में बिना चकबंदी कराए दूर दूर बिखरे खेतों में खर्चीला, कष्टप्रद कृषि कार्य कराके किसानों को खेती छोड़ पलायन को मजबूर करना-
4- 1989-90 52/- रु० प्रति किग्रा० पैदावार आकड़ों से जनदबाव में अल्मोड़ा एवं पौड़ी में चकबंदी कार्यालयों का खुलना-
5- 1996-97 चकबंदी कार्यालयों की प्रोग्रेस पूछने पर यह कहकर बंद कर दिया गया कि पहाड़ के लिए अलग चकबंदी एक्ट होगा.
6- 2016 मार्च तक, यानि पूरे 20 वर्षों में भी जब चकबंदी एक्ट नहीं बना तो स्वयं ग्रामीणों द्वारा चकबंदी हेतु 8 (आठ) बिन्दुओं की नियमावली के साथ समन्वित बागवानी योजना भी बनाकर शासन-प्रशासन को दी गई तो भूमिधरों को भ्रमित करने के लिए चकबंदी हेतु 250 गाँव चयन होने की घोषणा करना. RTI द्वारा सूचना मांगने पर रानीखेत तहसील की ग्रामसभा झलोड़ी में चकबंदी के नाम पर 8.5 लाख रुपयों की घेर-बाड योजना बनाना तथा अल्मोड़ा व बागेश्वर जिलों के लगभग 200 ग्रामप्रधानो से चकबंदी बिरोधी प्रस्ताव शासन-प्रशासन को भेजकर, ग्रामीण चकबंदी नहीं चाहते, यह दिखाना- 8 (आठ) बिन्दुओं की नियमावली व बागवानी योजना इस Link पर देखें…
7- 2016 अधिकारियों की ऐसी मानसिकता को देखकर ग्रामसभा झलोड़ी के भूमिधरों ने उनकी नियमावली व बागवानी योजना के साथ “चकबंदी मॉडल” का मास्टरप्लान भी शासन-प्रशासन को दे दिया तो सरकार ने ”उत्तराखंड पर्वतीय क्षेत्र जोत चकबंदी एवं भूमि व्यवस्था विधेयक 2016” नाम से उक्त चकबंदी एक्ट पास कर किया तथा “चकबंदी मॉडल” हेतु भी जिला प्रशासन एवं चकबंदी विभाग का उक्त ग्रामसभा झलोड़ी तथा कारचूली में भ्रमण/निरिक्षण भी हुवा लेकिन इसके बाबजूद भी चकबंदी कार्य लटकाए रखना-
8- 2017 में सरकार को जब लगा कि रानीखेत के गांवों में चकबंदी रोकना संभव नहीं होगा तो इन्होने ग्रामीणों द्वारा चकबंदी योजना नहीं देने का बहाना कर रानीखेत के गांवों को दरकिनार करके अचानक गढवाल मंडल में नेताओं के गांवों को वही पुराने उप्र० चकबंदी एक्ट 1953 के तहत ही नोटिफाई कर देना- सोचने वाली बात है, यदि उप्र० चकबंदी एक्ट 1953 सही है तो 1996 में अल्मोड़ा व पौड़ी के चकबंदी आफिसों को बंद क्यों किया तथा 20 वर्षों तक समीतियाँ बनाकर उख० चकबंदी एक्ट 2016 बनाने का क्या औचित्य था? जबकि नेताओं के गाँवों में भी आज 2024 तक भी जमीनी स्तर पर कुछ नहीं हुवा है. इससे भी आगे,
9- 2018 में जब इन्हें लगा कि पहाड़ में चकबंदी होने से 1960-62 से बंद भूमिबन्दोबस्त भी मूलनिवासियों के लिए खोलना होगा, तो पूंजीपतियों द्वारा पहाड़ में अपने चक पहले बनाये/कब्जाए जाने हेतु इन्वेस्टमेंट समिट के नाम पर उनको 12.5 हे० तक जमीन देने हेतु नया भूकानून पास करके उसे तुरंत लागू भी करा देना. जबकि 2016 से पास चकबंदी एक्ट एवं 2020 से पास चकबंदी नियमावली आज भी शोकेस में है.
10- 2019 में उपरोक्त स्थितियों को देखकर जब हमने जनहित याचिका मा० हाईकोर्ट नैनीताल में दायर करानी चाही तो हमारे स्थानीय वकील भी असमर्थ दिखे. ऐसे में सुप्रीमकोर्ट में कार्यरत बाहरी राज्यों, जिनमें चकबंदी हुई है, के वकीलों को लेने के लिए हमें मजबूर करना-
11- 2020 में मा० सुप्रीमकोर्ट के वकीलों द्वारा मा० हाईकोर्ट नैनीताल में यचिका दायर होने पर संबंधितो को नोटिस जाते ही चकबंदी एक्ट- 2016 तथा नियमवली- 2020 के नियमों/प्रावधानोंनुसार कार्य करने हेतु राजस्व विभाग को ही शासनादेश हुए लेकिन उनको अभी भी इम्प्लीमेंट नहीं कराना, उल्टे, खेतों को गोलखातों में ही उल्झाये रखकर सहखातेदारों द्वारा धोखे से गैरों को खेत बिकवाना-
12- 2021 उधर, जनहित याचिका के क्रम में सरकार की ओर से हाईकोर्ट में दाखिल हलफनामे में यह स्वीकारने के बाद भी कि रानीखेत के झलोड़ी गाँव के स्वैच्छिक चकबंदी के प्रस्ताव को बोर्ड आफ रेवन्यू भेज दिया गया था किन्तु इसके बाद इन बीते वर्षों में भी आगे कोई कार्यवाही नहीं होना-
13- 2021 इधर, ग्रामसभा कारचूली में भी ग्रामीणों द्वारा तैयार “स्वैच्छिक चकबंदी मॉडल” के 4 परिवारों के अलग अलग चकों अंतर्गत के खेतों का सत्यापन कराए जाने हेतु 2017 में शासन-प्रशासन को जो पत्र भेजा गया था उसे 2020 में एक्ट लागू होने बाद पुन: भेजा गया है किंतु इसे भी किन्तु-परन्तु के साथ ठंडे बस्ते में ही डालाना- इस पत्र को भी इस Link की पोस्ट में देखें…
14- 2022-23 बिना चकबंदी कराए ही बागवानी के नाम पर करोड़ों की योजनाओं को भ्रष्टाचार की भेंट चढाते जाना- इनपर भी भूमिधरों द्वारा जांच हेतु जनहित याचिकायें मा० हाईकोर्ट में दायर होते ही सरकार द्वारा निदेशक उद्यान का निलंबन के बाद मा० न्यायालय द्वारा इस पूरे प्रकरण की CBI से जांच कराना- (जांच जारी है).
15- 2024 तक भी चकबंदी कराने हेतु शासनादेशों को इम्प्लीमेंट नहीं कराके किसानों के खेतों को गोलखातों में ही फंसाए रखकर सहखातेदारों द्वारा चुपके छुपके धोखे से खरीददारों को बिकवाना तथा किसानों को उनके खेत वापस पाने हेतु अब व्यक्तिगत रूप से भी राज्य के विभिन्न न्यायालयों में जाने को मजबूर करना- जबकि, जनहित याचका इसीलिए दायर की गई थी कि अन्य लोगों को न्यायालयों में व्यक्तिगत न भटकना पड़े… किन्तु खेतों का स्पष्ट मालिकाना हक नहीं होने से पहाड़ के सभी मूलनिवासी चाहे वे अपने गांवों में हैं या देश-विदेश में, सभी दहसत में हैं कि उनके मौके के खेत कब कहाँ बिक जायेंगे?
मित्रों, इसी प्रकार बिखरे खेतों में बंदरों-सुवरों से फसलों का नुकसान, बाघ-तेंदुओं का आतंक, दबंगों द्वारा गाँवों के सामूहिक रास्ते- पानी-चारागाह आदि कब्जकर पहाड़ में अनगिनत समस्यायें साजिसन पैदा कराके दहसत के मारे कहीं कहीं बचे खुचे लोग खेती-पाती छोड़ गाँवों से सामूहिक पलायन भी कर गये हैं. आवादी घटने से स्वास्थ चिकित्सा, शिक्षा, रोजगार, व्यवसाय आदि भी चरमराये हैं तथा इसी प्रकार भूकानून, मूलनिवास, अनुच्छेद 371, इनरलाइन परमिट, रोजगार, भ्रष्टाचार, बनाग्नि, पानी की किल्लत आदि के लिए भी लोग आंदोलित हैं. इन सभी समसामयिक मुद्दों पर भी चर्चाओं को फेसबुक के “चकबंदी मंच उत्तराखंड” नाम के पेज पर इस Link के द्वारा
किन्तु मित्रों, पहाड़ बिरोधी ऐसी परिस्थितियों में भी अनेक जागरूक, दूरदर्शी, कर्मठ एवं स्वाभिमानी व्यक्तित्व के धनी लोग संगठित होकर पहाड़ के जल-जंगल-जमीन एवं सांस्कृतिक विरासतों/संसाधनों को बचाने, संवारने तथा विकास का मॉडल ग्लोबल न होकर लोकल यानि स्थानीयता को महत्व दिए जाने हेतु उपरोक्त साजिशों के बीच भी समय समय पर जनजागरण सभाओं, रैलियों आदि के माध्यम से पहाड़ के सभी मूलनिवासियों को जागरूक कर रहे हैं. जिनके खेत पहले से इकट्ठे चकों में हैं ऐसे अनेक भूमिधर लाभान्वित हो रहे हैं. लेकिन बिखरे खेतों वाले लाखों भूमिधर चकबंदी प्रक्रिया के द्वारा उनके खेत भी इकट्ठे चकों में नहीं होने के कारण मायूस हैं. इसलिए वे अब “आपसी सहमति से अपने खेतों को परस्पर अदल बदलकर खुद ही अपने अपने चक बनायें तथा इन्हें चकबंदी एक्ट एवं नियमावली 2016/2020 के तहत बिना रजिस्ट्री फ़ीस दिए अपने व्यक्तिगत नाम कराने हेतु अपनी तहसीलों में आवेदन दें”. ताकि उनके खेत व्यक्तिगत होने से बिना उनकी लिखित अनुमति के दूसरा बेचने नहीं सकेगा तथा इनमें सरकार की योजनायें अपनाते हुवे पलायन से बचकर गाँवों को आवाद करने में अपनी अहम भूमिका भी निभाने सकेंगे.