चमोली

गोपेश्‍वर-मानसिक रुप से ग्रसित व्यक्ति रहता है पेशाब घर में।। पेशाब घर मैन।।।

** जिला चमोली गोपेश्वर के घिघराणा रोड़ बने नये बसे स्टेशन के समीप पर बने पेशाब घर पर कई वर्षों से एक ऐसा व्यक्ति रह रहा है। जो मानसिक रूप से कमजोर है। न उसे रात है। ओर न उसे दिन है। तन पर सिर्फ एक कम्बल रहता है। न ठीक से बोल पाता है। शायद ही अपने जीवन काल में वो कभी नहाया भी होगा। जब से वो उस पेशाब घर में रहने लगा । तब से उसे ऐसा ही देखा गया। वो कहते हैं। न कि मुसाफिर हूँ। यारो न घर है। न ठिकाना मुझे बस चलते जाना है। रूका हुआ। पानी ओर रूका हुआ व्यक्ति खराब ओर बेकार हो जाता है। वो वक्त जो उतने सालों से उस नगर पालिका परिषद गोपेश्वर के बने उस पेशाब घर में ऐसे रहता है। जैसे लोग अपने पुरखो के आशियाने मे लोग रहते है। मानो उसकी पुरखो का वो आखरी वारिस हो। न उसे गर्मियों में गरम ओर मछरों की चिन्ता ओर न कडाके की ठंड़ में उसे ठड़ का अहसास होता है। अगर होता भी होगा तो वो यह सब किसके साथ ये बाते साझा करे। किस पर अपनी किस्मत पर कोशे या उस परमात्मा से जिसने ये सुन्दर दुनिया बनायी है। जहाँ मतलबी लोग रहते हैं। जहाँ आदमी आदमी की खुशियों से परेशान है। गिद्ध की तरह कमजोर ,गरीब ओर असहाय लोगों को नोच नोच कर खाने को या बाहुबली व्यक्ति उन लोगों को केवल मतलब निकलने पर ही उनसे मतलब रखता है। ओर जब उसे लगता है। की ये मेरे काम का नही है। तब उसे लात मार देता या धक्के मारकर उसे जलिल करके उसे भगा देता है। ओर या जग हंसायी या उस कमजोर व्यक्ति की आलोचना करने लग जाता है।इस व्यक्ति को न भूत प्रेत ओर न ही जंगली जानवर का भय है। ओर मुख्यालय में


कोई मानसिक रुप ग्रसित ( पागल) व्यक्ति गोपेश्वर के सड़को पर घूमता फिरता है। दुकान से खाना पिना मांगकर जीवन बसर कर रहा है। भगवान् न करे ऐसे व्यक्तियों के द्वारा कोई ऐसे अनहोनी घटना न घटित हो। या कोई ऐसा अपराध न जो वो न करना चाहता है। न ही उससे किसी प्रकार से कोई बीमारी फैले जो जानलेवा बन सकती है। लेकिन समय करवा देता है। गोपेश्वर जीरो बैंड से आगे घिघराणा रोड पर नया बस अड्डा ओर उसके समीप बने पुराने पैशाब घर पर वो व्यक्ति
कई सालों से उस पेशाब घर को अपने आशियाने की तरह रह कर जीवन व्यतीत कर रहा वो आदमी
जिसके तन पर ऋषि मुनियों की तरह एक कपड़ा है। बडे़ बाल ओर चेहरे पर बडी़ दाढ़ी ओर मूंछ़ है। जिसकी भाषा समझ में भी नही आती है। बस जो सुबह होते ही सड़क के किनारे खडे़ होकर आते जाते लोग या वाहनों को देखते रहता है। मानो किसी का इंतज़ार कर रहा हो।बस किसी से कुछ नही अपने आप से बडबडाते रहता है। कुछ भले लोग या नजदीकी दुकान दार उसे खाना पिना या उसकी मदद कर देते हैं। जिससे वो जिवीत है। ऐसे ही समाज में कई ऐसे लोग है। जो समाज से ही नही बल्कि अपने आप ओर अपनी किस्मत से लड़ रहे है। क्योंकि जीवन एक बनवास है। जिसे हर किसी को भोगना ही पड़ता है। चाहे वो गरीब हो या अमीर हो। ओर जीवन जीने की कला होती है। जीवन अपने लिए नही बल्कि दूसरों के लिए जीयो। समाज के लिए जियों ओर गरीब ओर असहाय लोगों की सहायता करनी चाहिए। न की उनकी आलोचना करनी चाहिए। मृत्यु के बाद तो उसके संघर्ष, कार्य ओर उसके व्यवहार की प्रशंसा ओर चर्चा होती है। इसलिए व्यक्ति को कर्म करते रहना चाहिए। फल की इच्छा नही करनी चाहिए। ऐसे ही समाज में बहुत से उदाहरण है। जो अपने माँ बाप को बूढ़े होने पर वृद्ध आश्रम में छोड़ देते है। या फिर वो वृद्ध लोग किसी जगह पर किसी प्रतिक्षा लय में रह जीवन यापन करते हैं। लेकिन उन बच्चों ने कभी ये सोचा कि गढ़वाली कहावत उन पर लागू होगी। मुछाऊ जौगीई करी कै। पिछड़ी ओन्दू आगे की लकड़ी जलकर पिछे ही आती है। कह देना आये थे। ओर चले गये।।
एक तरह हरियाली
एक तरफ शमशान था।
पांव तले हड्डी।
ओर हड्डी के ये बयान थे।
ऐ चलने वाले मुसाफिर
जरा ढंग से चलना।
क्योंकि कभी तेरी तरह हम भी
इंसान थे। क्यो बाबा।।।

।। लोकेन्द्र रावत।

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