फिर लौट सकता है सेब में स्कैब रोग !
डा० राजेन्द्र कुकसाल।
मो० 9456590999
उत्तरकाशी जनपद के हरसिल क्षेत्र के मुखवा गांव में कुछ बागवानों के बागों में स्कैब रोग के लक्ष्ण पौधो व फलों में दिखाई दे रहे हैं इस संबंध में सामाजिक कार्यकर्ता एवं ग्राम प्रधान भंगेली, भटवाड़ी उत्तरकाशी,श्री प्रवीन प्रज्ञान तथा कृषक, बागवान एवं उद्यमी संगठन के संयोजक एवं महामंत्री श्री दीपक करगेती द्वारा उत्तरकाशी जनपद में सेब स्कैब रोग की फोटो साझा की गई है।
बर्ष 1982-83 में उत्तराखंड के उत्तरकाशी जनपद में सेब स्कैव महामारी के रूप में फैला था जिसकारण राज्य के सेब उत्पादकों एवं पौधशाला स्वामियों को बहुत नुक्सान उठाना पड़ा था।
सेब में स्कैब रोग वेंचूरिया इनैक्वैलिस नामक फंफूद से उत्पन्न होता है। फंफूद के जीवाणु मुख्य रूप से ज़मीन पर गत वर्ष की पड़ी पत्तियों के अलावा कली आवरणों या लकड़ी के क्षतिग्रस्त हिस्सों में सर्दियां बिताता है। वंसत आते ही फफूंद अपना विकास शुरू कर देता है तथा बीजाणु बनाना शुरू कर देते है जो बाद में हवा से लंबी दूरी तक होस्ट तक पहुंचते हैं।हवा में उपस्थित इस रोग के बीजाणु ( स्पोर) उचित तापमान व नमी में पहले सेब की कोमल पत्तियों व फूलों की हरी पंखुड़ियों पर आक्रमण करते है जिन पर प्रारंम्भिक अवस्था में इस रोग के लक्षण दिखाई देते हैं।मार्च-अप्रैल में संक्रमित पत्तियों की निचली सतह पर हल्के जैतूनी हरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं जो बाद में भूरे तथा काले हो जाते हैं, बाद में पत्तों की ऊपरी सतह पर भी ये धब्बे बन जाते हैं जो अक्सर मखमली भूरे से काले रंग वाले तथा गोलाकार होते है। कभी-कभी संक्रमित पत्ते मखमली काले रंग से ढक जाते हैं जिसे शीट स्कैब कहते हैं। रोगग्रस्त पत्तियां समय से पूर्व (गर्मियों के मध्य में ही) पीली पड़ जाती है। इस रोग के धब्बे फलों पर भी प्रकट होते हैं। बसंत ऋतु के आरंभ में ये धब्बे फलों के निचले सिरे पर पाए जाते है जो भूरे से काले रंग के होते हैं। मौसम की अनुकूलता से यही धब्बे कार्कनुमा सख्त होकर फलों की सतह पर भी उभरते हैं।आरंम्भ में ये ओलों के दाग की तरह लगते हैं बाद में अधिक संक्रमण होने पर इन धब्बों में दरारें पड़ जाती है इन दरारो से फफूद अन्दर जाकर सड़न पैदा कर सकती हैं एवं फल विकृत हो जाते हैं।
सेब की सभी किस्में स्कैब के प्रति बहुत संवेदनशील होती हैं, गाला किस्म अति संवेदनशील होती है।
रोग के कारण उपज कम होती है,फलों का आकार छोटा व विकृत होने तथा फलों पर दाग पड़े होने के कारण बागवान को बाजार में कम मूल्य मिलता है ।
रोग फैलने के कारण-
विना क्वरैनटाइन किये काश्मीर हिमाचल व अन्य वाहरी राज्यों से आपूर्ति किए गए रोग ग्रस्त फल पौध है। पौधों की उचित देखभाल न करना,स्प्रे शैड्यूल का पालन न करना, जलवायु परिवर्तन आदि भी रोग फैलने के कारण हो सकते हैं।
यदि उद्यान विभाग द्वारा समय रहते स्कैब रोग से ग्रसित बागों को अभी से आइसोलेट न किया गया तथा इन बगीचौं के इनोकुलम ( संक्रमण के लिए जिम्मेदार रोगजनक के भागों यथा पत्तियों फल टहनियां आदि) को कम या नष्ट नहीं किया गया तो आगामी वर्षो में स्कैब राज्य में महामारी का रूप ले सकता है तथा सेब उत्पादकों को बहुत बड़ा नुक्सान उठाना पड़ सकता है।
बागवानों को सलाह-
फसल तुड़ाई के बाद जमीन पर गिरी पत्तियां फल व टहनियों को इकट्ठा कर नष्ट करें साथ ही सेब के पौधों एवं जमीन पर गिरी पत्तियों व पौधों के अवशेषों पर फफूंद नाशक दवा कापर आक्सीक्लोराइड या कैप्टान का 300 ग्राम दबा 100 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव कर इनवोकुलम कम करने का प्रयास करें जिससे आगामी वर्षों में स्कैब रोग की रोकथाम की जा सके। हरी कली अवस्था से फल तुड़ाई तक सेब के स्प्रे शैड्यूल का सख्ती से पालन करें।