वेद की संवाहक है गुरुकुल शिक्षा पद्धति- प्रो० महावीर अग्रवाल
रिपोर्ट -कमलेश पुरोहित हरिद्वार
आज दिनांक 30/06/2023 को उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय के ‘स्वामी दयानंद सरस्वती शोधपीठ’ के तत्वावधान में ऑनलाइन राष्ट्रीय व्याख्यान माला -1 का आयोजन किया गया।कार्यक्रम की शुभारंभ बी० एड० विभाग की विद्यार्थी कुमारी रितिका के मंगलाचरण से हुई।व्याख्यान माला के मुख्य वक्ता के रूप में उ०सं०वि०वि० के पूर्व कुलपति तथा वर्तमान में पंतजलि विश्वविद्यालय के प्रतिकुलपति प्रो० महावीर अग्रवाल ने ‘स्वामी दयानंद की राष्ट्र को देन ‘ विषय पर अपने विचार प्रस्तुत करते हुए कहां कि आज भारतीय शिक्षा पद्धति में महर्षि दयानंद की प्रासंगिकता अत्यंत आवश्यक है ।उन्होंने राष्ट्रवाद एवं वैदिक शिक्षा पद्धति की जो भक्ति प्रत्येक जनमानस में जाग्रत की वह अत्यंत सराहनीय है।महर्षि जी ने जहां वैदिक संस्कृति को पुनर्जीवित किया ,वहीं साथ ही साथ नारी शिक्षा में अपना अतुलनीय योगदान प्रदान किया ।अपने वक्तव्य में प्रो० अग्रवाल जी ने कहां कि स्वामी दयानंद ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यंते ‘के भाव को समाज में व्याप्त करने वाले पुरोधा थे।उनके विचारों में यह गूंज हर समय दिखाई पड़ती थी ,नारी शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए उन्होंने उस समय समाज में प्रचलित रूढ़िवादी परंपराओं पर कुठाराघात भी किया ।उन्होंने महर्षि दयानन्द के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए कहां कि उनकी कार्यशैली अतुलनीय थी।जब भारत पाश्चात्य सभ्यता के आवरण से ढक रहा था तब स्वामी जी ने ‘सत्यार्थ प्रकाश’ जैसे महनीय ग्रंथ को लिखकर प्रकाश का दीप प्रज्वलित किया ।प्राचीन ज्ञान परंपरा से भारत के गौरव को विश्वपटल पल ले जाने में उनका विशेष योगदान है ! उनका आदर्श वाक्य था-“वेदो की और लोटो “का नारा सबसे प्रबल था ।स्वामी जी समाज के सुसंगठित निर्माण में , योगा अभ्यास, ईश्वर के सत्य स्वरूप को जानना आदि को अपना परम लक्ष्य मानते थे। उनके आर्य समाज में वर्णित दश निमय आज भी सार्वभौमिक है ।कर्मो का आचरण , कल्याणकारी विचार , परमेश्वर का सच्चिदानंद स्वरुप एवं गुरु उपदेश, अष्टांग योग चर्चा आदि से ही मानव मात्र का कल्याण संभव है।
उन्होंने आगे कहा कि हिंदी भाषा को आगे बढ़ाने में स्वामी दयानंद जी का विशेष योगदान है , वह इसे आर्य भाषा कहकर पुकारते थे तथा कहते है, इस भाषा में भारतीय एकता को स्थापित कर आजाद भारत का सपना शीघ्रता से पूर्ण किया जा सकता है।इस भाषा में सबको एक साथ बांधने कि क्षमता है।उतना ही सम्मान वह संस्कृत को भी देते थे ।स्वामी दयानंद के कार्य असीम है।उनकी शैली अलौकिक है , वह एक आदर्श मार्गदर्शक पुरुष है ,उनका स्मरण करते ही वाणी अवरूद्ध हो जाती है ।हम सब के ऊपर उनके अनंत उपकार हैं , उनको स्मरण करते ही मन भावुक हो जाता है ।उन्होंने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में हमें प्रभावित किया है ।यहीं कारण है कि आज उनके नाम पर भारत में पंजाब के जालंधर में राजस्थान के अजमेर में हरियाणा के रोहतक में उनके नाम से विश्वविद्यालयों की स्थापना की गई है ।पंजाब विश्वविद्यालय सहित देश के अन्य विश्वविद्यालयों में दयानंद शोधपीठ की स्थापना की गई है ।स्वामी दयानंद के जीवन एवं उनके कृतित्व पर भारत एवं विश्व पटल पर भी अनेकों शोध कार्य , डी० लिट कार्य हो चुके हैं,और चल रहें है,अनेकों भाषाओं में उनके ग्रंथ सत्यार्थ प्रकाश का अनुवाद हुआ है ।उनकी गुरूकुल शिक्षा पद्धति आज भी समस्त शिक्षा पद्धतियों में आदर्श है।प्रोफ़ेसर अग्रवाल जी ने उत्तराखंड संस्कृत के कुलपति एवं विश्वविद्यालय के अधिकारियों का ‘स्वामी दयानन्द शोधपीठ ‘ की स्थापना के लिए हार्दिक धन्यवाद दिया।वहीं कार्यक्रम के अध्यक्ष उत्तराखंड सस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर दिनेशचंद्र शास्त्री ने मुख्यवक्ता का आभार प्रकट करते हुए कहा कि आज की यह विचार संगोष्ठी की प्रथम उपस्थित मंगलाचरण के समान है ।आपके स्वामी दयानंद सरस्वती पर दिया उद्धबोधन सदैव हमारे लिए इस पीठ को आगे बढ़ाने में विशेष मार्गदर्शन करता रहेगा।विश्वविद्यालय के यशस्वी कुलपति जी ने कहां कि वि०वि० में चार शोधपीठ की स्थापना के साथ – साथ पांचवें शोधपीठ अद्वैतवाद के संस्थापक शंकराचार्य जी के नाम पर होने जा रही है।इन सभी भारतीय महापुरुषों के विचारों का आगे ले जाना तथा इन पर कार्य करना हमारा परम लक्ष्य है ।उन्होंने आगे कहा कि स्वामी दयानंद सरस्वती ने संस्कृत भाषा में अपने शिष्य श्याम जी कृष्ण वर्मा के साथ संस्कृत भाषा में 62 पत्र लिखकर संस्कृत भाषा को बचाने का कार्य किया ।उनके विचारों पर कार्य करने के लिए इस शोधपीठ का विशेष महत्व है ।कुलपति जी ने सफलतापूर्वक कार्यक्रम के संचालन के लिए समन्वयक एवं संयोजक को विशेष साधुवाद दिया ।कार्यक्रम के संचालक एवं शोधपीठ के संयोजक कंचन तिवारी ने मुक्य वक्ता के जीवन साहित्य पर प्रकाश डालते हुए स्वामी दयानंद की शिक्षा पद्धति पर भी अपने विचार व्यक्त किए,वहीं शोधपीठ के समन्वयक डॉ० उमेश कुमार शुक्ल ने शोधपीठ के मुख्य उद्देश्यों को लेकर विस्तार पूर्वक चर्चा की , तथा साथ में यह भी कहा कि समय -समय पर ऐसीसंगोष्ठियों , कार्यशालाओं आदि का आयोजन किया जाएगा,जिससे अनेक विद्वानों के विचारों से स्वामी जी के कार्यों का समाज के समक्ष पहुँचाया जा सके।कार्यक्रम में अंत में धन्यवाद ज्ञापन शिक्षा शास्त्र विभाग के प्रभारी विभागाध्यक्ष डॉ०अरविंद नारायण मिश्र ने किया उन्होंने सभी का इस संगोष्ठी में उपस्थित होने , एवं विचारों को सुनने एवं जीवन में अमल में लाने के लिए सभी का हार्दिक धन्यवाद ज्ञापित किया ।इस अवसर पर डॉ० बिंदुमति द्विवेदी , डॉ० विनय सेठी , डॉ ० श्वेता अवस्थी, डॉ० राम रतन खंडेलवाल, डॉ० सुमन भट्ट, डॉ० मिनाक्षी सिंह, रेखा रानी , आरती , रीना अग्रवाल, कविता शुक्ला ,नेहा यादव,कपिल शर्मा, कार्तिक श्रीवास्तव तथा शोधार्थी एवं देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों के अध्यापक और विद्यार्थी उपस्थित रहे।