Thai Wedding Ceremony : Confluence of Indian and Thai Cultures and Ethos
Traversing miles and miles to bestow his choicest blessings to his favorite student Thanayart in Thailand ,our very amiable, affable and the gem of a person, popularly vowed as Litreature Laureate of South East Asia Shree Sunil Pathakji, Founding President, International Council of Archaeology made it memorable for both the Indian fraternity within and outside India with his visit.
Glimpses of this nuptial ceremony is emblematic of not only a sacrosanct ceremony but at the same time exudes the warmth of Indo-Thai pristine shared cultures.
In his address Shree Sunilji spoke of how the subtle aesthetically pleasing ambience of the ceremony and the graceful newly weds resonated our Indian ethos and culture and bore imprints similar to ours when it came to rituals and rites.
Held in the scenic Thanyaburi Marriage Hall in a historic town called Puthamthani near Bangkok, Shree Sunilji not only blessed Thanayart and her better half with the portrait of our Shree Ram but also cited her impeccable scholarly taste towards Ancient Indonesian Dance and Music which happened to be her domain of interest and how proud he was to have mentored her.
When one revisits these precious moments , all of us are overwhelmed and appreciate Shree Sunilji from the bottom of our heart for being the harbinger of Sanatan Dharma offshores and for his untiring efforts in amplifying the Sanatan Dharma through his Guru Shishya Prampara in South East Asia.
थाईलैंड में अपने पसंदीदा छात्र थान्यार्ट को अपना सर्वश्रेष्ठ आशीर्वाद देने के लिए मीलों और मीलों की यात्रा करके,
हमारे बहुत ही मिलनसार, मिलनसार और एक रत्न, दक्षिण पूर्व एशिया के साहित्यिक पुरस्कार विजेता के रूप में
लोकप्रिय श्री सुनील पाठकजी, संस्थापक अध्यक्ष, अंतर्राष्ट्रीय पुरातत्व परिषद बने। उनकी यह यात्रा भारत के भीतर
और बाहर दोनों भारतीय बिरादरी के लिए यादगार रही।इस विवाह समारोह की झलक न केवल एक पवित्र समारोह
का प्रतीक है, बल्कि साथ ही भारत-थाई प्राचीन साझा संस्कृतियों की गर्मजोशी भी दर्शाती है।
अपने संबोधन में श्री सुनीलजी ने बताया कि कैसे समारोह और नवविवाहित जोड़े का सूक्ष्म सौंदर्यपूर्ण
माहौल हमारे भारतीय लोकाचार और संस्कृति की प्रतिध्वनि करता है और जब अनुष्ठानों और संस्कारों
की बात आती है तो हमारे जैसी ही छाप छोड़ता है।
बैंकॉक के पास पुथमथानी नामक एक ऐतिहासिक शहर में सुंदर थान्याबुरी विवाह हॉल में आयोजित,
श्री सुनीलजी ने न केवल थान्यार्ट और उनकी पत्नी को हमारे श्री राम के चित्र के साथ आशीर्वाद दिया,
बल्कि प्राचीन इंडोनेशियाई नृत्य और संगीत के प्रति उनकी त्रुटिहीन विद्वता का भी हवाला दिया, जो हुआ।
उसकी रुचि का क्षेत्र और उसका मार्गदर्शन करने पर उसे कितना गर्व था।
जब कोई इन अनमोल क्षणों को दोबारा देखता है, तो हम सभी अभिभूत हो जाते हैं और विदेशों में सनातन
धर्म के अग्रदूत होने और दक्षिण पूर्व एशिया में अपने गुरु शिष्य परंपरा के माध्यम से सनातन धर्म को बढ़ाने
में उनके अथक प्रयासों के लिए श्री सुनीलजी की तहे दिल से सराहना करते हैं।
Regards
Dr. Ketki Tara Kumaiyan
Joint Secretary
International Council of Archaeology ( India and South East Asia)
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