उत्तराखंड कुमाऊं का लोक पर्व खतडुवा हर साल आश्विन मास के प्रथम दिन मनाया जाता है।
वर्षा ञतु के समाप्त होने व शरद ञतु के प्रारंभ में आश्विन मास के प्रथम दिन (कन्या संक्रान्ति)को खतड़ुवा लोक पर्व मनाया जाता है। शीत ञतु के आगमन में व पशुओं की रक्षा व जाड़े से बचने व पशुओं के रोग के निवारण के लिए खतड़ुवा मनाया जाता है।
आइये खतडुवा कैसे मनाते आगे बताते चलें।
आश्विन मास के प्रथम दिन कन्या संक्रान्ति के दिन सबसे दिन में बच्चों के द्वारा एक ऊंचे स्थान में खतडुवा व खतड़ी का मंदिर बनाया जाता उन मंदिरों में पत्थर के टुकड़े लाइन में रखकर पशु बनाये जाते हैं।
शाम को मंदिर के सामने टहनी दार दो खंबे गाड़े जाते हैं उन खंबो सुखी घास भूस, व पिरुल के टीले बनाये जाते हैं।
परिवार व आस पास के पड़ोसी महिला पुरुष रात्रि को अपने घर में चीड़ के छियूल के बंडल व पाती की टहनियां,बेटूली की टहनियों बाफिल खास के मुठे बनाकर ।
छियूल के बंडल में आग लगाकर एक हाथ में उन टहनियों झाड़ू लेकर अपने घर व गौशाला में अपने पशुओं की रक्षा व जाड़े से बचने के लिए परिक्रमा करते हुए खसेर मसेर भैले खतडुवा,भैले खतडुवा।भाग भाग गाय की जीत हो कहते कहते उस ऊंचे जगह पर जाते हैं।
जहां खतडुवा व खतडी का मंदिर बना होता है।
परिवार के बड़े बुजुर्ग उस मंदिर की पूजा करके ककड़ी,अमरुद, मिठाई आदि चढ़ाकर।
खतडुवा को आग लगाते हैं।उस समय भी भैले खतडुवा भैले खतडुवा।खसेर मसेर भियार जा गाय की जीत हो करके कहते रहते हैं।
खतडुवा लोक पर्व क्यों मनाया जाता।
उत्तराखंड के लोग प्राचीन काल से खेती पाती में परिपूर्ण थे पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण खेती कम मात्रा होती थी इसलिए उत्तराखंड के लोगों ने खेती के साथ साथ पशुपालन के जरिए अपना दिन चर्या को महत्व दिया।
इसलिए खतडुवा के दिन अपनी फसल के खुशहाल व पशुओं की रक्षा व जाड़े से बचने के लिए खतडुवा त्यौहार मनाया जाता है।
प्रस्तुति
प्रताप सिंह नेगी समाजसेवी
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