अल्‍मोडा

चैत्र मास का लोकप्रिय व पारम्परिक पर्व भिटौली का महत्‍व जाने।

चैत्र मास का लोकप्रिय व पारम्परिक पर्व भिटौली उत्तराखंड के कुमाऊं में भिटौली व गढ़वाल में कलेऊ का चैत्र मास में विवाहित लड़कियों के लिए बसबरि से इतंजार होता है इन दिनों। प्राचीन काल में पहाड़ों में बेटियों की शादी दूरदराज के गांवों में होती थी। यातायात व आजकल की तरह सुविधाएं नहीं होती थी। विवाहित लड़कियों को दूरदराज के गांवों से ससुराल से मायके आने का मौका कम मिलता था।साल में चैत्र मास के दिनों में भिटौली का विवाहित लड़कियों को वेसबरि से इंतजार होता था।इस भिटौली के त्यौहार की उजह से विवाहित लड़कियों की मुलाकात अपने मायके

वालों से हो जाती थी। आज भी चैत्र मास के दिनों में मायके से भिटौली देने की प्रथा चली आ रही है।इस भिटौली में विवाहित लड़कियों को मायके वाले कपड़े व खाने का पकवान देकर मुलाकात करते हैं। मायके से भिटौली पकवान हर विवाहित महिलाएं अपने अपने गांव में बांटते हैं। उत्तराखंड से अलग-अलग शहरों में दिल्ली, मुंबई, लखनऊ कोलकाता रहने के कारण अब अपनी विवाहित लड़कियों को भिटौली पकवान देना नामुमकिन हो गया इसलिए खाने का पकवान ले जाने की प्रथा कम होते जा रही है। लेकिन उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में अभी भी ये प्रथा है।जो लोग अलग-अलग जगहों व अलग-अलग शहरों में बसे हुए हैं।व लोग अपनी विवाहित लड़कियों को पकवान व कपड़े की जगह पर पैसे देते हैं।व विवाहित लड़कियां अपने घर में पकवान बनाकर अपने मायके की भिटौली अपने अपने गांव में बांटते हैं। प्रस्तुति प्रताप सिंह नेगी आइये भिटौली त्यौहार को मनाने व

भिटौली त्यौहार की परंपरा के बारे में आगे बताते चलें जब चैत्र मांस में खेतों में सरसों फूलने लगती है पेड़ों में बैठकर घुघुति पक्षी बोलने लगती है।तब विवाहित लड़कियों को अपने मायके की भिटौली त्यौहार की यादें बेसब्री से याद दिलाती है। रितु ऐगे रणमणी रितु ऐगे रैणा, डालि में कफुवा

बासो खेत में फूलि दैणा, इजू मेरि भाई भेजलि भिटौली दिया, बास कफुवा मैतन को देशा, इजू मेरि सुडलि तो भिटौली भेजलि । चैत्र मास में घुघुति पक्षी का खेतों में घर के आस पास पेड़ों से अवाज देने की प्रथा ये प्राचीन काल से चली आ रही है । ना बासा घुघति चैत की,याद ऐछौ मैतैकि ।आज से कई सौ साल पहले की बात बताई जाती है दूरदराज के गांव में एक लड़की शादी की गई थी अपनी बहन को एक भाई चैत्र मास में भिटौली देने गया लंबे सफर के रास्ते अपनी बहन के घर पहुंचा जब बहिन को अवाज दी तो बहन कामकाज के कारण गहरी नींद पर सोई रह गई भाई ने बहन

का उठने का इंतजार किया लेकिन खेतों में काम करके आई हुई बहन सोई हुई रह गई।भाई को इंतजार करते शाम हो गई ,भाई बहन के लिए भिटौली पकवान व कपड़े उसके सिरहाने के सामने रखकर चला गया।जब शाम को पक्षियों की चढणहाट व बहार दिन ढल गया तब उस बहन की नीद खुली तो उसने देखा अरे मेरा भाई मेरे लिए भिटौली लाया था में सोई रह गई। उसने आवाज दी भाई को कहा चला गया करके लेकिन भाई

वापस चल गया था।बहन बहुत दुखी हुई । उसने कहा भै भुको मैं सिति रै गि,तब उसने दुखी होकर अपने प्राण त्याग दिए ।बाद वही बहन घुघति पक्षी के रूप में आई जो आज भी चैत्र मास में घुघुति पक्षी विवाहित लड़कियों के लिए आवाज देकर भिटौली की याद दिलाती है।उस बहन के यादगार पर घुघुति पक्षी बनकर आना आज भी भिटौली त्यौहार के समय कहावत है

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