दिल्ली- स्थायी राजधानी गैरसैंण को लेकर दिल्ली में गरजा जनसैलाब

नई दिल्ली के जंतर मंतर पर आज स्थायी राजधानी गैरसैंण समिति के आह्वान पर दिल्ली–एनसीआर से भारी संख्या में उत्तराखंडी जनता एकत्रित हुई और गैरसैंण को उत्तराखंड की स्थायी राजधानी घोषित करने की माँग को मुखर किया।
मंच संचालन श्री कमल ध्यानी जी ने किया और ध्यानी जी ने अपने वक्तव्य में आंदोलन की सफलता के लिए एकता पर विशेष बल दिया और सभी संगठनों तथा समाज के वर्गों से आह्वान किया कि वे मिलकर इस जनांदोलन को आगे बढ़ाएँ।
वरिष्ठ पत्रकार एवं सजल संदेश संस्कृत समाचारपत्र के मुख्य संपादक, श्री देवेन एस. खत्री जी ने अपने संबोधन में कहा:
“गैरसैंण केवल राजधानी का सवाल नहीं बल्कि उत्तराखंड की अस्मिता, अस्तित्व और भविष्य का प्रश्न है। जब राज्य आंदोलनकारियों ने उत्तराखंड की माँग की थी, तब इसके पीछे मूल उद्देश्य यही था कि राजधानी पहाड़ में बने ताकि पलायन रुके और विकास की धारा गाँव-गाँव तक पहुँचे। लेकिन 25 वर्ष बीत जाने के बाद भी यह सपना अधूरा है।”
उन्होंने ऐतिहासिक तथ्य रखते हुए कहा कि प्राचीन हिमालयन साम्राज्य का विस्तार हिंदकुश से लेकर मणिपुर और खांडवप्रस्थ (वर्तमान मेरठ) से तिब्बत तक था। उस काल में राजधानी सदैव पर्वतीय क्षेत्रों में रही, विशेषकर कार्तिकेयपुर (वर्तमान जोशीमठ) को केन्द्र मानकर शासन किया गया।
खत्री जी ने स्मरण कराया कि माणा गाँव (बदरीनाथ) में वेदों का संकलन हुआ, महाभारत की रचना यहीं हुई और यही भूमि स्वर्गारोहिणी तथा नंदा देवी जैसी सांस्कृतिक धरोहरों की वजह से विश्वभर में पूज्य है क्योंकि उस काल में भी शासन का केंद्र पहाड़ों में ही स्थित था l
भौगोलिक दृष्टिकोण से उन्होंने कहा कि गैरसैंण पूरे उत्तराखंड के प्रवेशद्वारों – हल्द्वानी, रामनगर, हरिद्वार और कोटद्वार – से समान दूरी पर है, इसलिए यही स्थान पूरे राज्य के लिए सर्वाधिक संतुलित है। राजधानी यदि यहाँ बनेगी तो विकास का संतुलित वितरण सुनिश्चित होगा।
आर्थिक पहलुओं पर उन्होंने कहा कि गैरसैंण में राजधानी बनने से स्थानीय संसाधनों का उपयोग होगा, रोजगार बढ़ेगा और ग्रामीण अर्थव्यवस्था में नया प्राण संचार होगा।
अन्य वक्ताओं में मुख्य संयोजक श्री विनोद पी. रतूरी जी ने कहा कि “गैरसैंण की स्थायी राजधानी अब समय की माँग है। यह केवल उत्तराखंड की अस्मिता ही नहीं बल्कि आने वाली पीढ़ियों के भविष्य से जुड़ा हुआ प्रश्न है।” साथ ही सयोजक प्रवासी हेमलता रतूरी जी ने कहा कि “गैरसैंण राजधानी बनने से उत्तराखंड की महिलाओं का सशक्तिकरण होगा और उनकी भागीदारी राज्य के विकास में और मजबूत होगी।”
इस अवसर पर महावीर फर्सवान जी और राकेश नेगी जी ने प्रभावशाली दो शब्द रखे और आंदोलन की दिशा को मजबूत करने की अपील की। वहीं जगदीश प्रसाद पुरोहित जी ने विशेष अनुरोध किया गया कि वे आंदोलन को डिजिटल अभियान के माध्यम से और व्यापक बनाने में अग्रणी भूमिका निभाएँ तथा सभी सामाजिक तथा राजनीतिक संगठनों से अनुरोध किया कि सभी अपनी मातृभूमि के लिए एक जुट हो जाएँ l
सभा को संबोधित करने वाले वक्ताओं में विनोद पी. रतूरी जी, आशाराम कुमेरी जी, जस्पाल रावल जी, सुशील कंडवाल जी, रमेश थपलियाल जी, जगदीश चंद्र जी, भुवन चंद्र जी, सुभाष रतूरी जी, सुनील जडली जी, महावीर फर्सवान जी, हेमलता रतूरी जी, राकेश नेगी जी, विपिन रतूरी जी, देवेन एस. खत्री जी, जे.एस. गुसांई जी, रेखा भट्ट जी, मायाराम बहगुणा, राकेश नेगी, देवेन्द्र रतूरी जी और जगदीश प्रसाद पुरोहित प्रमुख रहे।
सभा में उपस्थित दिल्ली–एनसीआर के विभिन्न क्षेत्रों से आए प्रतिभागियों ने एक स्वर में माँग की कि प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री इस ऐतिहासिक निर्णय में देर न करें और गैरसैंण को तुरंत स्थायी राजधानी घोषित करें।
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