हरिद्वार

उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय द्वारा राष्ट्रीय व्याख्यान का आयोजन

रिपोर्ट  कमलेश पुरोहित हरीद्वार

उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय, हरिद्वार के एक भारत श्रेष्ठ भारत एवं उन्नत भारत प्रकोष्ठ की ओर से आयोजित हिंदी दिवस के अवसर पर “भारतीय संस्कृति की संवाहिका हिंदी” विषय पर ऑनलाइन माध्यम से राष्ट्रीय व्याख्यान का आयोजन किया गया ।
कार्यक्रम का शुभारंभ मां वाणी का स्तवन कर संयोजक तथा विश्वविद्यालय के भाषा एवं आधुनिक ज्ञान विज्ञान के पूर्व डीन एवं अध्यक्ष, प्रोफेसर दिनेश चंद्र चमोला द्वारा मुख्य अतिथि, प्रख्यात भाषा वैज्ञानिक, प्रो. केशरी लाल वर्मा, कुलपति, छत्रपति शिवाजी महाराज विश्वविद्यालय, नवी मुंबई (महाराष्ट्र) के वृहद परिचय से किया । प्रो.चमोला ने हिंदी के वैश्विक स्वरूप पर प्रकाश डालते हुए कहा कि हिंदी हमारी संस्कृति की सबल संवाहिका ही नहीं, अपितु स्वाधीनता संग्राम में राष्ट्रप्रेम की पर्याय बन मानव-मूल्यों की भाषा रही है । एक ओर आनंदमूलक हिंदी की सृजनात्मकता व दूसरी ओर इसके प्रयोजनमूलक स्वरूप ने वृत्ति के अनेक गवक्ष खोले हैं । वैश्विक परिदृश्य में यह विश्व के सैकड़ों विश्वविद्यालयों में अध्ययन, अध्यापन एवं अनुसंधान का हेतु बनी हुई है ।
कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में आमंत्रित विद्वान प्रोफेसर प्रो. केशरी लाल वर्मा ने इस अवसर पर बोलते हुए कहा कि ऐसे पावन अवसरों
पर हम सभी हिंदी भाषा की समृद्धि की चर्चा करते हैं और उसका मूल्यांकन भी करते है। इन गौरवशाली क्षणों में हम सम्यक विवेचन से गर्व का अनुभव करते हैं। आज सरकार द्वारा भी राष्ट्रीय शिक्षा नीति में हिंदी की विशेष चर्चा की जाती रही है, यह महत्त्व का विषय है । आज विभिन्न उच्च शिक्षा विषयक पाठ्यक्रमों, जैसे – इंजीनियरिंग,चिकित्सा आदि की पढ़ाई भी हिंदी के माध्यम से होने लगी है । अपनी मातृभाषा में हम नये विचारों को अभिव्यक्त करने में सहजता एवं सरलता का अनुभव करते हैं। । भाषा ही हमें इस योग्य बनाती है। हिंदी प्रेम की भाषा है, सहजता की भाषा है । इसे सभी बड़े प्रेम से बोलते है। आज पूरे विश्व में हिंदी किसी न किसी रूप में विद्यमान है । ये एक ऐसी भाषा है जो सभी को जोड़़ने का कार्य करती है। जहाँ-जहाँ हिंदी फैली हुई है, वहाँ-वहाँ उसने देश की भावात्मक एकता को भी समृद्ध किया है जिससे देश आगे बढ़कर और मजबूत हुआ है । हिंदी में अब केवल साहित्य सृजन नहीं, बल्कि हर क्षेत्र में इस भाषा को बढ़ावा देना होगा । हिंदी का जो साहित्य है इसमें कथा, लोकसाहित्य लोकजीवन, लोक सं स्कृति आदि का संरक्षण आवश्यक है।
कार्यक्रम का धन्यवाद प्रस्ताव विश्वविद्यालय के सह आचार्य डॉ. शैलेश कुमार तिवारी द्वारा ज्ञापित किया गया । उन्होंने हिंदी के उत्तरोत्तर बढ़ते स्वरूप की सराहना की । कार्यक्रम में डॉ. शैलेश कुमार तिवारी, डॉ. हरीश तिवाड़ी, डॉ. कंचन तिवारी, आरती सैनी, अनीता देवी, रेखा शर्मा, दीपक प्रसाद रतूड़ी, वंश शर्मा, विवेक जोशी, डॉ.सतीश कुमार सहित कई शोधार्थियों, शिक्षकों व विद्यार्थियों ने भाग लिया ।

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