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मॉं नंदा देवी राजजात यात्रा 12 साल मे एक बार आईए जानते है इस बारे मे।

प्रताप सिंह नेगी

उत्तराखंड में नंदा देवी एक वर्षीय राजजात यात्रा हर साल अगस्त सितम्बर माह में हर साल होती है।
हिन्दू पौराणिक गाथा के अनुसार मां नंदा देवी राजजात यात्रा 12साल में एक बार राजजात यात्रा होती और साल एक बार हर साल नंदा देवी राजजात यात्रा होती रहती है।

आइये आगे बताते चलें कुमाऊं गढ़वाल में मां नंदा देवी की राजजात यात्रा के बारे में।
नंदा देवी धार्मिक यात्रा उत्तराखंड के सार्वदिक प्रसिद्ध सांस्कृतिक आयोजनों में एक है। अंतिम राजजात यात्रा सन 2014मे हुई थी दूसरी राजजात यात्रा 2026मे होगी। बाकी हर साल राजजात यात्रा होती रहती है।
लोक इतिहास के अनुसार नंदा गढ़वाल के राजाओं के साथ साथ कुमाऊं के कत्यूरी राजवंश की ईष्टदेवी होने के कारण नंदा देवी को राजेश्वरी देवी कहर संबोधित किया जाता है। परन्तु कहीं कहीं पर नंदा देवी को पार्वती देवी के बहन के रुप भी माना जाता है। नंदा देवी अनेक नामों से प्रसिद्ध है शिबा, नंदा, सुनंदा,शुभानंदा, नंदिनी। पूरे उत्तराखंड में समान रूप से पूजे जाने के कारण पूरे प्रदेश में धार्मिक एकता के सूत्र के रूप में देखा गया है। नंदा देवी की राजजात यात्रा दो प्रकार की होती एक 12साल और एक हर साल अगस्त सितम्बर में एक वर्षीय राजजात यात्रा।

पौराणिक कथा के अनुसार नंदा देवी की राजजात यात्रा कैसे की जाती है।
कुरुड़ ऩंदा देवी के मंदिर से होकर वेदनी कुंड तक जाती है। और फिर लौट आती है लेकिन 12 वर्षीय राजजात यात्रा अधिक समय के अंतराल में कुरुड़ से शुरू होती है मान्यता के अनुसार चमोली के कुरुड़ से शुरू होकर कुरुड़ मंदिर से दसोली बधा़ड की टोली राजजात यात्रा के लिए निकाली जाती है। इस यात्रा में लगभग 240किलोमीटर की दूरी क़सुवा से हेमकुंड तक पैदल करनी पड़ती है।इस दौरान घने जंगल व पथरीले पहाड़ों को पार करके जाना पड़ता है।
अलग-अलग रास्तों से ये। टोलियां यात्रा में मिलती है। इसके अलावा गांव गांव से टोलियां,त्यौरियां भी इस यात्रा में सामिल होती है। कुमाऊं से भी अल्मोड़ा,कटारमल, और नैनीताल,से छतौली नं दाकेशरी में आकर राज जात यात्रा में सामिल होती है ।कंसुवा से राजा की छतौली आती है जो नंद के केसरी में करुड़ के नंदा भगवती से मिलती है।दूसरा पड़ाव कंसुवा से ये यात्रा नौटी है, फिर यात्रा कंसुवा आती है। इसके बाद नौटी सेम,कोटी,भगौली,कुलसारी चैपडो, लोहाजंग,बांड, वेदनी पतार, नौचंडियां से सिंधु बिख्यात रुपकुंड,शिला,हेम कुंड चंदिन्याघाट सुतोल घाट से नंद प्रयाग फिर लास्ट में नौटी का आकर यात्रा का चक्र पूरा हो जाता है इसकी दूरी 280किलोमीटर होती है।
इस राजजात यात्रा में चौसिंगा खांडू (चार सिंगों वाला भेड़) भी सामिल होता है जोकि स्थानीय क्षेत्र में राजजात यात्रा के पूर्व में ही पैदा होता हो जाता है ‌उसके पीठ में रखे थैली में श्रद्धालु के श्रंगार व हल्की सी भेंट अन्य सामग्री होती है।जोकि हेमकुंड में पूजा के बाद आगे हिमालय की ओर प्रस्थान लेता है उसके बाद चौसिंगा भेढ लुप्त हो जाता है। मां नंदा देवी के कैलाश क्षेत्र में प्रवेश कर जाता है।

सीमा गुसाई जागर गायिका

इधर रुद्रप्रयाग छिनका गांव की सीमा गुसाई नंदा देवी के गाथाएं व जागर गाने वाली लोकगायिका ने बताया मां नंदा देवी को कुमाऊं व गढ़वाल में अनेकों नामों जाना जाता ये सब रुप मां पार्वती के अलग-अलग रूपों में माने जाते हैं ‌। इसलिए उत्तराखंड के चमोली में नौटी में प्राचीन काल से ही मां नंदा देवी प्रसिद्ध मंदिर माना जाता है पौराणिक कथाओं के अनुसार जाता है ये नौटी में मां नंदा का मायका बताते हैं।

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