दिल्‍ली एन सी आर

दिल्ली प्रगति मैदान -10वें msme एक्सपो मे रही उत्‍तराखण्‍ड संस्‍कृति की धुम

रिपोर्ट प्रताप सिंह नेगी

दिल्ली प्रगति मैदान -10वें msme एक्सपो 2024 के आधीन तीन दिवसीय भारतम़ंडपम प्रगति मैदान में देव भूमि लोक सोसायटी पंजीकृत की लोककलाकार टीम ने देश व विदेश से आये हुए प्रतिनिधि मंडल के सम्मुख एक से एक बढ़कर उत्तराखंड के लोकगीत व लोकनृत्य ढ़ोल दमू मसक बीन बजा के साथ।
ये तीन दिवसीय सांस्कृतिक कार्यक्रम में देव भूमि लोककला सोसायटी के फाउंडर नरेंद्र पार्थी ने अपनी उतराखंड लोकला टीम के द्वारा बढ़-चढ़कर का प्रतिभाग किया।

बहार से आये हुए जनमानस लोगों का इस देवभूमि लोकला सोसायटी ने लोकनृत्य, लोकगीत व झोड़ा चांचरी के साथ दिल मोह लिया।
इस तीन दिवसीय सांस्कृतिक कार्यक्रम में नरेंद्र पार्थी के निर्देशन में कुमाऊं, गढ़वाल के लोकगीत व झोड़ा चांचरी ढ़ोल दमू व मसकबीन बाज़ा के साथ अतिथियों को झूमने को मजबूर कर दिया। नरेंद्र पार्थी की टीम व अन्य लोकप्रिय कलाकार व लोकनृत्य कलाकारों ने ये तीन दिवसीय कार्यक्रम में रंगारंग कार्यक्रम किया।

इस तीन दिवसीय सांस्कृतिक कार्यक्रम में उत्तराखंड के नरेन्द्र पार्थी की टीम व ढोल दमू मसक बीन बजा के साथ साथ हुडका बादक लोगों ने व उत्तराखंड के कल्चर में लोकनृत्य व लोकगीत के साथ धूमधाम से मनाया।
कुमाऊं व गढ़वाल के अलग-अलग लोककलाकारों ने अपनी उपस्थिति देकर उत्तराखंड का नाम रोशन किया।
ढोलक मुकेश बकरोला,हुड़का संगीत भट्ट ,हारमुनियम पुरन चंद,किरणपाल सिंह, गायिका लक्ष्मी रावत, गायिका व कवि चंपा पांडे,साथ में नृत्य व अभिनय कलाकार नरेंद्र पार्थी, लक्ष्मी दानू,बीनीता शर्मा, धर्मेन्द्र प्रसाद, खुशी कब उ्वाल, आदि लोककलाकार लोगों अलग-अलग अंदाज में लोकनृत्य व लोकगीत के साथ उतराखड की संस्कृति की पहचान में अपना योगदान दिया।
प्रताप सिंह नेगी ने बताया नरेन्द्र पार्थी 35सालों से उत्तराखंड की लोक संस्कृति से जुड़े हुए लोकप्रिय लोककलाकार है।
इस समय नरेन्द्र पार्थी जी की उम्र 56साल है आज भी ये दिल्ली में छोटे छोटे लड़के लड़कियों को अपनी देव भूमि लोकला सोसायटी के द्बारा लोकगीत व लोकनृत्य का परिक्षण देते रहते हैं।
नरेंद्र पार्थी जी बताते है हर राज्य की अपनी संस्कृति व अपनी बोली भाषा अलग है लेकिन उत्तराखंड में भी हम लोगों उत्तराखंड की संस्कृति व बोली भाषा को आगे करना चाहिए।
आने वाले भविष्य के लिए हमारे युवाओं को उत्तराखंड देव भूमि के कल्चर अपनी रीति रिवाज व लोकला के लिए प्रयास करना चाहिए

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