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प्रशिक्षण से आगे नहीं बढ़ पाई मशरूम उत्पादन की योजना।कैसे होगा स्‍वरोजगार।

डा० राजेंद्र कुकसाल।
मो ० 9456590999
पहाड़ी क्षेत्रों में मशरूम उत्पादन की संभावनाओं को देखते हुए तथा रोजगार सृजन हेतु उद्यान विभाग द्वारा सहत्तर के दशक से मशरूम उत्पादन के प्रयास किए जा रहे है।
 स्पान (मशरूम बीज) व कम्पोस्ट न मिल पाने तथा विपणन की उचित व्यवस्था न होने से इन क्षेत्रों के उत्पादक हतास व निराश। अधिकतर मशरूम उत्पादक , स्पान (मशरूम बीज) खुम्ब अनुसंधान निदेशालय DMR सोलन,हिमाचल प्रदेश या स्वदेशी लैव आजादपुर मंडी नई दिल्ली से मंगाते हैं।
देहरादून, हरिद्वार आदि मैदानी इलाकों में व्यक्तिगत स्पान तथा कम्पोस्ट खाद बनाने की कई यूनिटें लगी है जिनसे अच्छा उत्पादन मिल रहा है।
पहाड़ी क्षेत्रों में कुछ युवकों द्वारा मनरेगा योजना के तहत मशरूम हट बना कर ढींगरी मशरूम उत्पादन का प्रयास किया जा रहा है।
पहाड़ी जनपदों के मशरूम उत्पादकों को योजनाओं का समुचित लाभ नहीं मिल पा रहा है, योजनाओं  में मिलने वाला अनुदान, अधिकतर हरीद्वार देहरादून के पूंजी पतियों को ही आंवटित किया गया है।
मशरूम प्रशिक्षण, कृषि विज्ञान केन्द्रों या कृषि विश्वविद्यालय में द्वारा दिए जाने का प्रावधान है किन्तु अधिकतर प्रशिक्षण विभाग द्वारा स्वयं सेवी संस्थाओं के माध्यम से देना दिखा कर खाना पूर्ति की जाती है।
एक रिपोर्ट-
मशरूम उत्पादन हेतु कम तापमान की आवश्यकता होती है साधारणत: सर्दियों में बटन, मिड सीजन में ओएस्टर और गर्मियों में मिल्की मशरूम का उत्पादन करते हैं। बटन मशरूम एक महीने में ओएस्टर 15 दिन में और मिल्की मशरूम 45 दिन में तैयार हो जाता है।
पहाड़ी क्षेत्रों में प्राकृतिक तापक्रम में ऊंचाई के हिसाब से बटन मशरूम बर्ष भर में अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में चार, मध्य में तीन एवं घाटी वाले क्षेत्रों में दो बार उत्पादन लिया जा सकता है। प्राकृतिक तापक्रम में मशरूम उत्पादन में लागत काफी कम आती है वहीं दूसरी ओर मैदानी क्षेत्रों में मशरूम उत्पादन हेतु नियंत्रित तापक्रम की आवश्यकता होती है जिस कारण इन क्षेत्रों में मशरूम उत्पादन पर लागत अधिक आती है।
राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों में मशरूम उत्पादन की संभावनाओं को देखते हुए तथा रोजगार सृजन हेतु उद्यान विभाग द्वारा सहत्तर के दशक से मशरूम उत्पादन के प्रयास किए जा रहे है।
 1969 में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के सहयोग से औद्यानिक प्रयोग एवं प्रशिक्षण केन्द्र चौबटिया रानीखेत में मशरूम पर शोध/उत्पादन कार्य वैज्ञानिकों की देखरेख में शुरू किया गया बाद के वर्षों में मशरूम उत्पादन की योजनाओं को राज्य सैक्टर की योजनाओं में चलाया गया।
 गढवाल मंडल में भी 1973 में राजकीय घाटी फल शोध केंद्र श्रीनगर गढ़वाल में मशरूम उत्पादन में कार्य प्रारंभ किया गया।
 इन्डो ढच प्रोजेक्ट के माध्यम से ज्योलीकोट नैनीताल में वर्ष 1980 से मशरूम उत्पादन का कार्य बड़े स्तर पर शुरू किया गया जिसके अंतर्गत मशरूम की खाद बनाने हेतु पास्वराइज्ड टनल व स्पान उत्पादन हेतु प्रयोग शाला का निर्माण हुआ।
राज्य बनने के बाद मशरूम उत्पादन की पहाड़ी क्षेत्रों में संभावनाओं को देखते हुए कुमाऊं मण्डल में ज्योलिकोट नैनीताल व गढ़वाल मंडल हेतु सेलाकुई देहरादून में मशरूम उत्पादन को बढ़ावा देने हेतु प्रशिक्षण/कम्पोस्ट ,स्पान उत्पादन केंद्र बनाए गए, जिनका उद्देश्य राज्य के मशरूम उत्पादकों को प्रशिक्षण देना तथा समय पर कम्पोस्ट व स्पान(मशरूम का बीज) उपलब्ध करवा कर स्वरोजगार सृजन करना था।
 स्वर्ण जयंती स्वरोजगार योजना के तहत कुमाऊं मण्डल में 20 करोड़ का प्रोजेक्ट मशरूम उत्पादन पर वर्ष 2002-03 में चलाया गया किन्तु अपेक्षित सफलता नहीं मिली।
 कहने का अभिप्राय यह है कि योजनाओं पर करोड़ों रुपए खर्च करने पर भी पहाड़ी क्षेत्रों में कहीं भी मशरूम उत्पादन की कोई भी कार्यरत यूनिट नहीं दिखाई देती। मशरूम उत्पादन हेतु कुछ लोगों ने काफी प्रयास किए किन्तु समय पर बीज न मिलने के कारण व पूरी तकनीक की जानकारी न होने के कारण मशरूम उत्पादन में सफलता नहीं मिल पाई। जितना अखबारों व मीडिया में मशरूम उत्पादन के बारे में चर्चा होती है उतना पहाड़ी क्षेत्रों में तो नहीं दिखाई देता जब तक योजनाओं में धन होता है तभी तक चर्चाएं चलती है।
ढींगरी मशरूम में लोग पहाड़ी क्षेत्रों में अच्छा कार्य कर रहे हैं अपने व्यक्तिगत प्रयास से पवन काला द्वारा सुमाडी श्रीनगर गढ़वाल में ढींगरी मशरूम बीज उत्पादन की एक छोटी यूनिट लगाई गई है जो आस-पास के मशरूम उत्पादकों को बीज की आपूर्ति कर रहे हैं। ढींगरी मशरूम उत्पादकों को मार्केटिंग की समस्या है। अन्य क्षेत्रों में भी किसान मशरूम उत्पादन पर कार्य कर रहे हैं।
उद्यान विभाग के अतिरिक्त जलागम, ग्राम्या, उत्तराखंड ग्रामीण विकास समिति, आजीविका, जायका के साथ साथ सैकड़ों स्वयं सेवी संस्थाएं (मशरूम-मशरुम का खेल खेल रहे हैं) मशरूम उत्पादन पर कार्य कर रहे हैं। आये दिन फेसबुक/व्हट्स अप, समाचार पत्रों में मशरूम प्रशिक्षण के फोटो सहित सफलता की कहानियां छापी जाती है किन्तु वास्तविकता यही है कि मशरूम उत्पादन के कार्यक्रम पहाड़ी क्षेत्रों में केवल प्रशिक्षण तक ही सीमित है इनका मकसद केवल आवंटित बजट को खर्च करना है।
मुझे देहरादून में अपने मित्र डा. संजय कमल मशरूम प्रसार अधिकारी के साथ डा. मानवेन्द्र हर्ष मिश्रा की “अनुपम एग्रो मशरूम स्पान यूनिट” देखने का अवसर मिला। डा. मिश्रा  फ्लैक्स फूडस लिमिटेड लाल तप्पड़ देहरादून में मैनेजर कल्टिवेसन के पद पर 1996 से 2017 तक कार्यरत रहे। शुरू के वर्षों में उन्होंने स्पान लैब इन चार्जस, क्वालिटी कंट्रोल, कमप्रोसिंग आदि क्षेत्रों में कार्य किया। मशरूम उत्पादन के क्षेत्र में उनका काफी अनुभव है। 2017 में कुवांवाला हरिद्वार रोड देहरादून में “अनुपम एग्रो” के नाम से  मशरूम स्पान उत्पादन लैव” स्थापित की। इस लैब के निर्माण में बैंक की सहायता लेकर करीब एक करोड़ रुपए की लागत लगाई। लैव में मशरूम स्पान की उत्पादन क्षमता एक टन प्रति दिन है। वर्तमान में 250-500 किलोग्राम उच्च गुणवत्ता के ढींगरी, बटन व मिल्की मशरूम बीज का उत्पादन प्रति दिन किया जा रहा है। जिसकी आपूर्ति उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, पंजाब व हरियाणा के मशरूम उत्पादकों को मांग के अनुसार की जा रही है।
राज्य में मशरूम बीज उत्पादन की इस तरह की उच्च तकनीक से निर्मित यह एक मात्र लैब है जिसमें ढींगरी, बटन व मिल्की मशरूम की उच्च गुणवत्ता वाले स्पान (मशरूम का बीज) का उत्पादन किया जा रहा है। डा. मिश्रा “एमएम मशरूम कन्सलटैन्सी सर्विसेज” के नाम पर मशरूम उत्पादन पर सलाह व प्रशिक्षण का कार्य भी करते हैं। मशरूम उत्पादन में रुचि रखने वाले अभ्यर्थियों को एक बार अवश्य “अनुपम एग्रो मशरूम स्पान उत्पादन यूनिट” का भ्रमण कर मिश्रा के अनुभव का लाभ लेना चाहिए। आशा करनी चाहिए कि अब राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों के मशरूम उत्पादन को उच्च गुणवत्ता का मशरूम बीज समय पर उपलब्ध होगा, जिससे मशरूम व्यवसाय को गति मिलेगी।
देहरादून व उसके आस पास के क्षेत्रों में कुछ लोग मशरूम उत्पादन पर अच्छा कार्य कर रहे हैं।
पहाड़ी जनपदों के मशरूम उत्पादकों को योजनाओं का समुचित लाभ नहीं मिल पा रहा है, योजनाओं  में मिलने वाला अनुदान, अधिकतर हरीद्वार देहरादून के पूंजी पतियों को ही आंवटित किया गया है।
पहाड़ी क्षेत्रों में कुछ युवकों द्वारा मनरेगा योजना के तहत मशरूम हट बना कर ढींगरी मशरूम उत्पादन का प्रयास किया जा रहा है।
सरकार की कोई दीर्घकालिक योजना  न होने व उदासीनता के कारण  पहाड़ी क्षेत्रों में सरकारी व गैर  संस्थाओं द्वारा मशरूम उत्पादन की योजनाओं पर करोड़ों रूपए खर्च होंगे के बाद भी इन क्षेत्रों में मशरूम उत्पादन प्रशिक्षण कार्यक्रमों तक ही सीमित है इससे कोई  दीर्घकालिक रोजगार सृजन नहीं हो पा रहा है।
मीडिया एवं समाचार पत्रों की टिप्पणी-
श्री विजय बुटोला  – राज्य में मीडिया और उधान विभाग द्वारा जितना मशरुम  उत्पादन इससे जुड़े लोगों का महिमामंडन किया जा रहा है वो सब बोगस है। जैसा कि आपने बताया आज उत्तराखंड के उधान विभाग को स्पान के लिए DMR सोलन पर निर्भर रहना पड़ता है। शंकरपुर देहरदून में कंपोस्ट यूनिट तो है किन्तु उसकी उत्पादन क्षमता उतनी नही है कि वह  उत्पादकों की पूर्ति कर पाए। मुझे आपके द्वारा पता चला कि देहरादून में अनुपम स्पान लैब है जहां उच्च गुणवत्ता का स्पान उपलब्ध है। जानकारी के लिए धन्यवाद।
दूसरा पहलू निजी ट्रेनिंग देने के व्यवसाय में कुछ लोगों ने द्रहरदुं में खूब मोटा पैसा कमाया लेकिन ट्रेनिंग के बाद कभी भी उन्होंने उत्पादकों से सापेक्ष संपर्क नही रखा। क्योंकि उनका मकसद केवल अपने आपको मीडिया द्वारा प्रचारित करवा के कई तरह के अवार्ड और पद लेना था। सरकार और ऐसे ट्रेनरों की बदौलत लधु , ग्रामीण और सीमंतक किसान आगे नही बढ़ पाए।
तीसरा पहलू यह रहा कि ऑयस्टर/ ढींगरी जैसी सरल, सुलभ, कम खर्च में अधिक उत्पादन देने वाली मशरुम की इस प्रजाति को बटन मशरुम के मुकाबले कभी भी जन जागरूकता नही मिल पाई। जबकि ओएस्टर मशरुम को आसानी से बिना रासायनिक विधि व उबाल के किया जा सकता है। ओएस्टर मशरुम को बड़ा बाजार ना मिल पाने का प्रमुख कारण बटन मशरूम को अधिक प्रोत्साहन मिलना है। बटन मशरुम हर किसान नही कर सकता।
श्री सतपाल ग्राम कुण्जोली, वीरों खाल पौड़ी गढ़वाल बताते हैं कि उन्होंने नीमा वैली मशरूम प्रोडक्शन के नाम से ढींगरी मशरूम का उत्पादन विगत दो तीन बर्षो से कर रहे हैं। मनरेगा की मदद से उन्होंने मशरूम हट का निर्माण किया है। पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय से उन्होंने फीस देकर औन लाइन मशरूम का प्रशिक्षण लिया है। डींगरी मशरुम का स्पान स्वदेशी लैव आजादपुर मंडी नई दिल्ली से कोरियर से मंगाते हैं। वर्तमान में उनका उत्पादन 10 – 12 किलो प्रति दिन प्राप्त होता है जिसकी स्थानीय बिक्री हो जाती है। उत्पादन बढ़ाने पर बिक्री की समस्या आ सकती है। उद्यान विभाग द्वारा किसी भी प्रकार की मदद से वे इनकार करते हैं।
श्री प्रमोद बहुखंडी सैंधार, बीरोंखाल , पौड़ी गढ़वाल विगत दो तीन बर्षो से ढींगरी मशरूम का स्पान स्वदेशी लैव, आजादपुर मंडी, नई दिल्ली से मंगा कर  उत्पादन कर रहे हैं।

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