उत्तराखंड

कोरोना नहीं हू (डब्लूएचओ) और हान (चीन) वायरस है ये 

कोरोना नहीं हू (डब्लूएचओ) और हान (चीन) वायरस है ये
एक वायरस का राजनीतिक विश्लेषण
                              आज  पूरे विश्व को आईसीयू में रखकर चीन ने वेंटीलेटर, मास्क और सैनेटाईजर बेचने फिर से शुरू कर दिए हैं और साबित कर दिया है कि चीन को चुनौती देना  मतलब अपने काल को आमंत्रित करना है । आज विश्व के सर्वाधिक देश और उनके महत्त्वपूर्ण शहर  कोरोना महामारी  झेल रहे हैं जबकि चीन के मुख्य शहर बीजिंग और शंघाई  इस से प्रतिरक्षित हैं।  खास बात ये है कि इससे सबसे अधिक मृत्यु इटली में हुई न की चीन में और अब अमेरिका उस वायरस के जाल में फँस चुका है।
  चीन अपना प्रभुत्व साम, दाम,दंड,भेद से मनवाना चाहता है। भू-क्षेत्र में अपना दबदबा ओबोर के द्वारा और जलमार्ग में अपना वर्चस्व स्ट्रिंग ऑफ़ पर्ल्स प्रोजेक्ट से चीन ने स्थापित कर लिया है। अमेरिका-चीन ट्रेड वॉर में  सर्वविदित है कि चीन को  मात  खानी पड़ी भारत ने भी वन बेल्ट वन रोड प्रोजेक्ट (ओबोर ) को  स्वीकारा नहीं और न ही अभी हुए रिकैप  ( रीजनल कॉम्प्रिहेंसिव इकोनोमिक पार्टनरशिप)  में कोई दिलचस्पी दिखाई । इस दोहरी हार से झल्लाये चीन ने ऐसे जैविक हथियार के रूप में वायरस का निर्माण किया जिससे चाहे वो खुद भस्म हो जाये लेकिन वह हार नहीं मानेगा।
 इस त्रासदी में चीन ने उन देशो का उपयोग किया  जहां या तो उसने  निवेश किया है या जो  चीन के  कर्ज़दार हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुखिया पर भी टेडरोस  प्रतिदान के तहत  चीन की वास्तविक मृत्यु के तथ्यों पर पर्दा डालने और  इस वायरस की भयावहता  घोषित करने में उदासीनता के आरोप से बच नहीं सकते।
     आज इस भयानक गठबंधन हू (डब्लूएचओ) और हान (चीन) के कारण विश्व की स्वास्थ्य व्यवस्था तहस-नहस हो चुकी हैऔर स्थिति यह   है कि तमाम देश न केवल इस वायरस से बल्कि स्टॉकहोल्म सिंड्रोम  से भी ग्रसित हो चुके हैं जिसमें शोषित देशों को अपने ही शोषणकर्ता (चीन) का पर जीवन रक्षक वास्तुओं के लिए निर्भर होना पड़ रहा है।
  अनेक विश्वसनीय स्रोत इस  चर्चा की पुष्टि कर रहे हैं  कि अमेरिका अब संयुक्त राष्ट्र संघ छोड़ देगा और आज भी यूनाइटेड नेशंस की डब्लूएचओ, यूनेस्को, आईएलओ जैसी महत्वपूर्ण संस्थाओं  में चीन का वर्चस्व अमेरिका के मुकाबले अधिक हो चुका है। इसका प्रमाण है कि अभी यहां चीन को इस जघन्य अपराध के लिए प्रतिबंधित करने की बात उठी ही थी पर इसके बजाय  इसी माह उसे यूनाइटेड नेशंस की सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता मिल गयी। ऐसे में हालात और भी नाजुक हो चुके हैं ।  ऐसे भयावह हालात में भारतवासियो से अपेक्षित है कि वह सोशल डिस्टेंसिंग का सख्ती से पालन करें क्योंकि फिलहाल कोरोना का एकमात्र और प्रभावी एंटीडोट यही है।
(डा. केतकी तारा कुमइयां,लेखिका राजनीतिक विश्लेषक और वीरांगना वाहिनी की जिलाध्यक्ष हैं)

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