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उत्तराखंड के पलायन पर दिल्ली में चिंता,कितनी व्यवहारिक,कितनी वास्तविक: अर्जुन सिंह रावत

पहाडो की आवाज नई दिल्‍ली

किदवई नगर, दिल्ली में बैठकर उत्तराखंड से दिनों दिन बढ़ रहे पलायन पर चर्चा करना क्या व्यवहारिक है। देश की राजधानी दिल्ली में रह रहे उत्तराखंड के मूल के लोग जब उत्तराखंड के पलायन पर चिंता करें तो सुनने में यह बात आपको रस्म अदायगी सी ही लगेगी। लेकिन उत्तराखंड के पलायन पर जब चलो गांव की ओर मुहिम की अगुवाई करने वाले अर्जुन सिंह रावत चर्चा करते हैं तो फिर वह अपने अभियान के आधार पर एक उम्मीद जगाते हैं कि उत्तराखंड से पलायन रुकेगा जरूर रुकेगा बशर्ते इसमें ज्यादा से ज्यादा जनभागीदारी हो। दिल्ली में किदवई नगर के दीवा मंदिर प्रांगण में लेखक और उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी अर्जुन सिंह रावत की पहल पर ‘ पलायन रोकने के लिए जनता की सहभागिता’ पर एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। गोष्ठी का संचालन करते हुए उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी वरिष्ठ पत्रकार एवं साहित्यकार प्रदीप कुमार वेदवाल ने कहा कि उत्तराखंड राज्य के लिए संघर्ष करने वालों को अब उत्तराखंड राज्य को बचाने और बसाने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है।
उत्तराखंड में चकबंदी आंदोलन से जुड़े और वाइस माउंटेन चैनल के पत्रकार विनोद मनकोटी ने कहा कि चकबंदी से उत्तराखंड में कृषि की दशा और दिशा में एक क्रांतिकारी सुधार आ सकता है और उत्तराखंड से पलायन की रफ्तार को कम करने में चकबंदी कारगर साबित होगी। उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी प्रताप शाही ने कहा कि उत्तराखंड में आज फिर एक आंदोलन की जरूरत है जो पहाड़ के लोगों को माफियातंत्र के शिकंजे से मुक्त करा सके। गोष्ठी में वन यूके के युवा अजय बिष्ट और संदीप रावत ने पहाड़ में अपने-अपने तरीके से काम करने के अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि उत्तराखंड में पलायन रोकने के लिए जन सहभागिता बेहद जरूरी है, हर बात के लिए सरकारों को ही दोषी ठहरा कर हम अपनी जवाबदेही से बच नहीं सकते हैं। उत्तराखंड राज्य आंदोलन में दिल्ली में सक्रिय बीना बिष्ट ने उत्तराखंड राज्य आंदोलन की यादों को साझा करते हुए कहा कि पहाड़ में सबके अपने मकान बनेंगे तो लोगों का अपने घर-गांव आना-जाना बना रहेगा। वहीं सुधा राणा ने कहा कि हमें अपने बच्चों से अपनी दुधबोली गढ़वाली,कुमाउंनी और जौनसारी में बातचीत करनी चाहिए जिससे कि आने वाली पीढ़ी उत्तराखंड की कला और संस्कृति को समझने और आत्मसात करने के लिए उन्मुख हो।
गढ़वाली और हिन्दी के साहित्यकार रमेश चंद्र घिल्डियाल ने उत्तराखंड से पलायन रोकने में साहित्यक और सांस्कृतिक योगदान के बारे में विस्तार से बताया जबकि साहित्यकार डाॅक्टर बिहारीलाल जालंधरी ने उत्तराखंड में भाषा आंदोलन की वकालत करते हुए अपनी मुहिम के बारे में बताया। गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ पत्रकार और सोशल एक्टिविस्ट चारु तिवारी ने अनेक आंदोलनों के अपने अनुभवों का हवाला देते हुए पहाड़ के जल,जंगल और जमीन को बचाने के लिए एक सशक्त भू कानून की नितांत आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा कि साल 2018 में उत्तराखंड में जमीन की खरीद-फरोख्त के लिए जो प्रावधान तय किए गए हैं वो पहाड़ में माफियातंत्र की जड़े जमाने का काम कर रहे हैं। गोष्ठी में उत्तराखंड जन मोर्चा के पूर्व अध्यक्ष रविन्द्र सिंह बिष्ट, उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी हीरो बिष्ट, मोहन सिंह रावत, सूरज सिंह रावत, श्रवण कुमार रावत ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
आंदोलनकारी अर्जुन सिंह रावत की पहल पर पलायन रोकने में जनता की सहभागिता विषय पर आयोजित इस विचार गोष्ठी की अहम बात यह रही कि गोष्ठी में बोलने वाले वक्ता और श्रोताओं में से अधिकांश वो लोग थे जिनके पहाड़ में अपने पक्के मकान, गांव आना-जाना और पहाड़ के आंदोलनों में सक्रिय सहभागिता रहती है।

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