उत्तराखंड

उत्‍तराखण्‍ड राज्य में नर्सरी एक्ट कितना प्रभावी ? देखे एक रिपोर्ट

डा० राजेंद्र कुकसाल।
मो० 9456590999
राज्य का अपना नर्सरी एक्ट उत्तराखंड फल पौधशाला (विनियमन) नियमावली 2021 प्रभावी हो गया है।
राज्य में अबतक उत्तरप्रदेश फल नर्सरी अधिनियम 1976 उत्तरप्रदेश पुनर्गठन अधिनियम 2000 की धारा 86/87 के तहत लागू था ।
उत्तरप्रदेश फल नर्सरी (विनियमन) अधिनियम, 1976 में कुछ संशोधन कर राज्य का अपना उत्तराखंड फल पौधशाला (विनिमयन) नियमावली 2021 प्रभावी हो गया है।
उत्तराखंड फल पौधशाला (विनियमन) नियमावली 2021 के महत्वपूर्ण बिंदु-
सरकारी व निजी क्षेत्र की सभी नर्सरियों को उत्तराखंड फल पौधशाला (विनियमन) अधिनियम यानी नर्सरी एक्ट के दायरे में लाया गया है।
नर्सरी एक्ट के तहत नर्सरी खोलने के लिए दशमलव 0.20 हेक्टेयर भूमि होना जरूरी है।
पर्वतीय क्षेत्रों में फल पौधशाला स्वामी के पास न्यूनतम 0.10 हैक्टेयर (1000 वर्ग मीटर) याने 5 नाली भूमि का होना आवश्यक है।
फल पौधशाला में फल के पौधों के वानस्पतिक प्रसारण के लिए मानक के अनुसार मातृवृक्ष ओर मूलवृन्त उपलब्ध होने आवश्यक है।
नर्सरी में फल के पौधों की प्रजाति में कोई दूसरी प्रजाति के पौधों का मिश्रण नहीं होना चाहिए।
नर्सरी में पौधों पर अगर कीटाणु या अन्य हानिकारक पदार्थों से पौधे उगाए गए तो संबंधित नर्सरी मालिक के खिलाफ उद्यान अधिकारी करवाई कर सकते हैं।इसके साथ ही भारी जुर्माना भी लगा सकते हैं।
बाहरी राज्यों से आपूर्ति होने वाले फलदार पौधे की गुणवत्ता परखने और जांच के लिए एक्ट में कड़ा प्रावधान किया गया है।
नर्सरी मालिकों को फलदार पौधों की गुणवत्ता की गारंटी ग्राहक को देनी होगी।
पौधों के फल न देने पर भी नर्सरी मालिकों को छह माह की कैद , 50 हजार जुर्माना भी हो सकता हैं।
पौध तैयार करने , बिक्री , पैकिंग , पौधशाला प्रबंधन की जांच निरीक्षक अधिकारी समय समय पर करेंगे।
हर साल संचालकों को नर्सरी का नवीनीकरण करवाना अनिवार्य होगा।
इसके साथ ही पौधों के आयात-निर्यात , नई खोज का पेटेंट , उत्पादन , प्रबंधन समेत तमाम जानकारी का रिकॉर्ड रखना अनिवार्य होगा।
इस एक्ट के तहत नर्सरी स्वामी से लेकर कार्मिकों तक सभी की हर स्तर पर जवाबदेही तय की गई है।एक्ट का पालन न करने पर लाइसेंस निरस्त कर दिया जाएगा।
उत्तराखंड नर्सरी एक्ट में जवाबदेही हर स्तर पर तय की गई है।नर्सरी में पौधा तैयार करने से लेकर वितरण तक। नर्सरी में तैयार होने वाली पौधों की गुणवत्ता की जिम्मेदारी नर्सरी मालिक के साथ ही जिला उद्यान विभाग के कर्मचारी के हाथों में होगी।
नर्सरी बनाने के लिए अनुमति लेना अनिवार्य है।एक हेक्टेयर से अधिक की नर्सरी को पौधशाला प्रबंधन से संबंधित प्रशिक्षण का प्रमाण पत्र देना होगा।
राज्य में अबतक उत्तरप्रदेश फल नर्सरी अधिनियम 1976 उत्तरप्रदेश पुनर्गठन अधिनियम 2000 की धारा 86/87 के तहत लागू था ।
इसी एक्ट में  कुछ संशोधन कर राज्य का अपना उत्तराखंड फल पौधशाला (विनिमयन) नियमावली 2021 प्रभावी हो गया है।
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*राज्य में नर्सरी एक्ट कितना प्रभावी है*-
दो उदाहरण है, जिनसे आप स्वयं ही अंदाजा लगा सकते हैं कि नर्सरी एक्ट से पंजीकृत व्यक्तिगत नर्सरियों एवं उद्यानपतियों को कितना लाभ पहुंच रहा है।
1. श्री वीरबान सिंह रावत ,जनपद टेहरी गढ़वाल , नैनबाग पंतवाडी में 1हैक्टियर से अधिक का सेब का बाग है जिसमें  व्यक्तिगत पंजीकृत नर्सरी है। श्री रावत द्वारा, सचिव उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण सचिवालय उत्तराखंड शासन देहरादून को  शपथ पत्र पर दिनांक 13 – 05 -2022  शिकायत की है कि निदेशक उद्यान द्वारा राज्य की राजकीय व व्यक्तिगत पंजीकृत नर्सरियों को दर-किनार कर कश्मीर से लाखों रुपए के सेब के बीजू पौधे एवं साइनवुड उच्च दामों में क्रय कर मंगाये गये है यही नहीं बल्कि ग्राफ्ट बाधाने हेतु मजदूर भी कश्मीर से आयातित किये गये है।
शपथपत्र में शिकायत का विवरण-
 यह कि वर्तमान में राज्य सरकार नीति के अनुसार किसानों को फल पौध वितरण हेतु जनपद के अन्तर्गत राजकीय व व्यक्ति गत पंजीकृत पौधालयों से क्रय मैं प्राथमिकता देने का प्रावधान है। जनपद मैं पौध उपलब्ध न होने की स्थिति में समीप के जनपद के राजकीय व व्यक्ति गत पंजीकृत पौधशाला से क्रय करने का प्रावधान है इसके अतिरिक्त भारत सरकार के राजकीय संस्थानों कृषि एवं औद्यानिक विश्वविद्यालयों व ICAR संस्था के पौधालय से सीधे क्रय करने का भी प्रावधान है।
यह कि राज्य से बाहर स्थित पंजीकृत व व्यक्तिगत पौधालयौ से पौध क्रय करने में निविदा प्रक्रिया अपनाना आवश्यक है साथ ही निविदा में सफल पौधालय से पौध प्राप्त करने से पहले विभागीय समिति द्वारा सत्यापन आवश्यक है। परंतु वर्तमान में उद्यान विभाग द्वारा नियमों का उलंघन करते हुए राज्य से बाहर की व्यक्तिगत पौधालयों से बिना किसी निविदा व बिना समिति के गठन व सत्यापन की प्रक्रिया अपनाते हुए सीधे उच्च दर पर पौध क्रय किए जा रहे हैं जबकि राज्य में 100 के लगभग पंजीकृत व National Horticulture Board से Accredited पौधालयों में पौध उपलब्ध है।
यह कि पिछले वर्ष गैरसैंण में मुख्यमंत्री द्वारा घोषणा के अनुपालन में बिना निविदा प्रक्रिया अपनाते हुए काश्मीर से सेब व नाशपाती पौध बिना सत्यापन के उच्च दर पर पौधे क्रय किये गये जिनमें लगभग 50% पौधे जीवित नहीं हैं।
यह कि वर्तमान में सेब आदि के साइड वुड बिना निविदा प्रक्रिया अपनाये हुए कश्मीर के पौधालय मै० जावेद नर्सरी से बिना सत्यापन के उच्च दर ( 35,40 व 80 रु ) में क्रय कर विभागीय नर्सरी में काश्मीर के व्यक्तियों द्वारा उच्च दर पर ग्राफ्टिंग करने का कार्य जोरों पर है। जबकि इन्हीं पौधों के साइड वुड राज्य की पंजीकृत पौधशालाओं में (विभागीय दर 15 रु) में उपलब्ध है जिसकी सूचना निदेशक को दिसंबर 2021 में दे दी गई थी।
यह कि विभाग द्वारा सेब के बीजू पौध भी लाखों की संख्या में महंगे दामों पर कश्मीर से क्रय किए गए जबकि राज्य की पंजीकृत पौधशालाओं में पर्याप्त मात्रा में बीजू पौध उपलब्ध है।
यह कि ग्राफ्टिंग कार्य विभाग के प्रशिक्षित मालियों द्वारा ना करा कर कश्मीर के मै० जावेद नर्सरी अप्रशिक्षित मजदूरों द्वारा महंगे दामों में विभागीय नर्सरी में करवाने का कार्य बड़े जोरों पर है जिससे राज्य में धन की हानि हो रही है व विभागीय मालियों के कौशल का हनन हो रहा है।
यह कि संज्ञान में आया है कि जावेद नर्सरी के पंजीकरण में भी विसंगतियों है राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड द्वारा एक्रीडेशन में प्रजातियों की पौध तैयार करने की प्रजाति क्षमता सहित निर्धारित की जाति है जबकि उद्यान विभाग द्वारा क्षमता से अधिक पौध क्रय किए गए और हिमाचल से भी अति महंगे दामों पर कीवी पौध क्रय किए गए है व इस नर्सरी में भी पंजीकरण में विसंगतियां हैं यहां भी क्षमता का ध्यान नहीं रखा गया। इनकी भी जांच की जाये। इन नर्सरियों का रोग व प्रजाति का स्टाम्प अनुबन्ध को भी सुनिश्चित किया जाये।
यह कि उत्तराखंड उद्यान विभाग द्वारा राज्य में पंजीकृत व्यक्तिगत पौधालय से गुणवत्ता को ध्यान में रखते हुए पौध क्रय करने में प्राथमिकता दी जानी चाहिए न कि राज्य के बाहर के पौधालय से विना प्रक्रिया अपनाते हुए क्रय करना चाहिए।
यह कि निदेशक उद्यान के उपरोक्त अनियमितताओं की उच्च स्तरीय जांच करवायी जाये व राज्य में स्थित पंजीकृत पौधालयों से पौध व साइन वुड तुरंत क्रय करवाये जाये व मै० जावेद नर्सरी के अकुशल ग्राफटरों द्वारा करया गया कार्य तुरंत रोका जाये। मै० जावेद नर्सरी के पौध,बीजू पौध व साइन वुड व अन्य कार्य की जांच करवाई जाय जांच पूर्ण होने तक दोनों पौधालय का भुगतान रोका जाना न्याय हित में आवश्यक है।
*जैसा कि राज्य में होता चला आ रहा है जिसकी शिकायत करो उसी को जांच सौंपी दो, अपर सचिव, उद्यान डा० रामविलास यादव द्वारा जांच अधिकारी निदेशक उद्यान को बनाया है जिनकी जांच की मांग श्री रावत द्वारा की गयी है*।
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2. श्री विजेन्द्र सिंह रावत, प्रगति शील उद्यानपति एवं वरिष्ठ पत्रकार, उत्तरकाशी।
श्री रावत जी समय समय पर उद्यान विभाग की कार्यप्रणाली पर प्रश्न चिन्ह लगाते रहे हैं।
दिनांक 2 जनवरी 2021 को श्री रावत जी द्वारा मुख्यमंत्री जी से निवेदन- फलों के पौधों के विभागीय खरीद पर ध्यान दें………………
पहाड़ पर इस सीजन में लगने वाले सेब, अखरोट, नाशपाती,  खुमानी, आड़ू व कीवी आदि के पौधों की खरीद के लिए बागवानी मंत्रालय में घटिया पौधों की खरीद फरोख्त करने वाले दलाल हर साल की तरह घूमने लगे हैं।
अब ये लोग हर साल की तरह मोटी कमीशन देकर विभाग में पौध सप्लाई के ठेका हथिया लेंगे और फिर बेचारे गरीब बागवानों में मत्थे ये पौधे मड़ दिये जाएंगे और उसके खेत सालों बंजर रह जाएंगे।
किसानों को अपनी जमीन के लिए अपनी मर्जी से पौध खरीदने दो, फिर इन पौधों पर उन्हे अनुदान दो, कम ही सही।
मुफ्त में पौधे बांटने और विभागीय खरीद के पीछे घोटाला होता है।
भुक्तभोगी बागवान, अपने विभागीय कड़वे अनुभव जरूर शेयर करें ताकि विभाग की लूट को मुख्यमंत्री व जनता तक पहुंचाकर उन्हे सचेत किया जा सके।
गत वर्ष मैं,मेरे गांव व आसपास के गांव के सैकड़ों बागवान भी मुफ्त में बंटे अखरोट व आड़ू के खटिया विभागीय पौध का शिकार हुआ हूं, अखरोट का एक भी पौधा सफल हुआ, ये जब तक किसानों के पास आए सूख चुके थे!
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कटु सत्य यह है योजनाओं में फल पौधों की आपूर्ति राज्य की पंजीकृत नर्सरियों से होना दर्शाया जाता है किन्तु वास्तविकता यही है कि अधिकतर निम्न स्तर की शीतकालीन फलपौध हिमाचल तथा बर्षाकालीन फल पौध सहारनपुर या मलीहाबाद लखनऊ की व्यक्तिगत नर्सरियों से ही होती है।
सोसियल मीडिया की कुछ टिप्पणियां-
Parveen Sharma-
Horticulture deptt. is not concerned about the nurseries in Uttrakhand,  Horticulture is registering Outside nurseries and fixing rates which include 50% Commission.  The Growers do get subsidies from Deptt. The cost of such plants r so high that even after Subsidy it is costly then the market price. And why there is no DBT to farmers when PM Sahib is telling the State Govt. to pass on subsidies by DBT to farmers/Growers . The Horticulture Deptt.in Uttrakhand is Sole ly responsible for today’s Pathatic Situation of Horticulture in the State and the Migration of village peoples.  The outsourced /unaccountable/corrupt officials r the Root cause that lead the State to Migration of people from rural Uttrakhand.  The  State Leadership should wake up before it Collapse fully.
Parveen Sharma–
The real cause of worst/condition of Horticulture Deptt is People who has no interst in the welfare of Farmers/Growers of Uttrakhand but they r Event Managment Agents making money and sharing it with few concerned. If we really wants the Horticulture and Agriculture Deptts. to fulfill the Hon’ble Prime Minister’s Dream of Dubling Farmers Income we should all have one Voice and let’s get together and speak Frank and boldly and Throw These Corrupt People out of Uttrakhand.
Birban sing Rawat-
 वर्तमान में निदेशक  द्वारा विभाग को जो डैमेज किया गया है यह राज्य इसे अगले 5 वर्षों तक इसकी भरपाई नहीं कर पाएगा इसमें दोषी निदेशक को ना मानकर उनके बॉस  सचिव को मना जाना चाहिए ।  लेकिन जब सचिन ही महा घूसखोरी व  आय से अधिक संपत्ति के दायरे में आ रहे हो तो मंत्री व मुख्यमंत्री को दोषी माना जाएगा जाना चाहिए।   हमारे राज्य में उद्यान की व्यवस्थाएं कब ठीक होगी इसकी कल्पना करना बड़ा कठिन है सभी बागवानों को एक बार अपने आप को बाहर लाकर सरकार से लड़ना होगा यह हमारा अधिकार है इसी सब को समझना होगा वह जो लोग इस लड़ाई को लड़ रहे हैं उनका साथ भी देना होगा।  यदि विभाग हमारे लिए काम नहीं करना चाहता  तो विभाग  को बंद कर दिया जाना चाहिए।
Rajpal Sing Rawat–
बहुत अच्छी जानकारी साझा की है आपने ये यहां के लिए बहुत घातक है,, इस लड़ाई को रावत जी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़कर, अंजाम तक पहुंचाया जाएगा, इस पर हमारी टीम शुरुआत से ही बहुत कड़क रही है, जैसा कि मैंने कई बार बड़े चैनलों के डिबेट में भी ये बात बहुत जोर देकर कही है,, कि हम सिर्फ ब्रीड चेंज चाहते हैं अपने परम्परागत पौधों पर,, शाम को कुछ फोटो भी दिखाऊंगा आपको,, मैं खुद भी एक बहुत बड़े धोखे में फसं गया, अपने यहां पर जो सेब वाला माडल लगवाया वो पौधे ही बाहर देश से बड़ी मात्रा में यहां पर सप्लाई हो रहें हैं, तथा अभी तक के रिजल्ट में ये देखने को मिला कि पौधा पूरी तरह आर्टिफिशियल है, और  बंधित कैमिकल वैस्ड है,, तथा उम्र में परम्परागत से 1/5 साल कम है,, तत्थो में ये भी पाया गया कि पहले जम्मू-कश्मीर और हिमाचल में विदेशी फोलिक नाम के वायरस पाए जाने के कारण ये कम्पनी ब्लेक लिस्ट है,, ये यहां के लिए घातक साबित हो सकता है, जबकि बहुत अच्छी ब्रीडें यहां पर पहले से उपलब्ध है, जरूरत उनका प्रसार करने की थी,, खैर जो भी हो ये लड़ाई मुकाम तक जरूर पहुंचाएंगे,,
Anil Kishor-
 आपने मेरा दर्द बयां कर दिया ॥ यें हक़ीक़त है । एक बार २०१३ में मैं भी Kirtinagar होर्टिकल्चर से आम की ग्रैफ़्टेड पौध लाया। पिंडी पौध थी केवल एक ही पौध जीवित हुयी। फिर सोचा कि क्यों नहीं हुयी होगी, निकालकर देखा तोकेवल पिंडी थी पिंडी के अंदर जड़ थी ही नहीं या केवल २ इंच जड़ थी॥  एक बार कचनार की पौध में डैम्पिंग ऑफ़ कंट्रोल करने हेतु Kirtinagar उध्यान  विभाग से systemic fungicide vavistine लाया  तो रोग कंट्रोल के बजाय और बढ़ गया,फिर जब उसी कम्पनी के वविस्टिन को मार्केट से लाया तो damping off १०० प्रतिशत कंट्रोल हो गया॥ कहने का मतलब की विभाग द्वारा दिया गया पैकेट तो अरिजिनल कम्पनी का था किंतु भीतर दवायी कुछ और॥ बहुत सारे उदाहरण हैं॥ होर्टिकल्चर में निदेशक  उधार के आते हैं यानी की डेप्युटेशन पर ॥ ३ साल मौज कर चले जाते है॥ यहाँ निम्न क्वॉलिटी का सामान सब्सिडी के नाम पर उच्च  दाम पर बेचा जा रहा है॥ सब्सिडी के नाम पर लुट खसोट की जा रही  है विगत कयी दसकों से॥अरबों का घोटाला है , ऊपर से नीचे सब मालामाल बन रहे है व केवल व केवल किसान ठगा जा रहा है॥ लुट मची है लुट॥ शायद शहीदों के सपनों का Uttarakhand लूटने के लिए बना है आज शहीदों की आत्मा भी रो रही होगी॥ मेरे हिसाब से तो उत्तराखंड का मतलब बाप का राज ॥ किसी को किसीं से दर नहीं पर ध्यान रहे ये देवभूमि है
Deepak Kargeti-
दुखद है राज्य के लिए, औद्यानिकी जो कि एकमात्र माध्यम बन सकता था काश्तकारो की आर्थिकी को मजबूत करने का और पलायन को रोकने का ।लेकिन इन विभागों के बड़े आका और सफेद पोश की राज्य को लूट रहे हैं।
लेखक- कृषि उद्यान विशेषज्ञ।

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