उत्तराखंड

जैविक खेती में हो रहा हैै फर्जीवाड़ा।

डा० राजेंद्र कुकसाल।
मो०-  9456590999
जैविक राज्य बनाने के लिए 610 करोड़ रुपए मंजूर  6100 जैविक क्लस्टर होंगे तैयार।
उत्तराखंड में ओर्गेनक खेती के लिए केन्द्र सरकार से 610 करोड रूपए की मंजूरी मिल गई है इससे प्रदेश में 2024 तक 6100 ओर्गेनक क्लस्टर बनाये जायेंगे।
राज्य में जैविक खेती का क्रियान्वयन बर्ष 2003-4 से हो रहा है  राष्ट्रीय कृषि विकास योजना तथा 2017 से पारंपरिक कृषि विकास योजना के अंतर्गत प्रदेश को जैविक प्रदेश बनाने की बात की जा रही है।
कृषि निदेशालय उत्तराखंड, देहरादून के पत्रांक- कृ०नि०/25/जैविक/ पी०के०वी०वाई०/2020 – 21/देहरादून दिनांक 09 अप्रेल 2020 के द्वारा परम्परागत कृषि विकास योजना 2019 – 20 हेतु भारत सरकार द्वारा प्रथम किस्त के रूप में रु० 3550.53 लाख की धनराशि अवमुक्त की गई है जिससे 3900 जैविक कल्सटर विकसित होने की बात की जा रही है।
 पूर्व में स्वीकृत 3900 जैविक क्लस्टरों की हकीकत।
उत्तराखंड कृषि प्रदान राज्य है जहां पर अधिकांश लोगों की आजीविका कृषि पर ही निर्भर है। राज्य का अधिकांश भाग पर्वतीय है जहां पर 65 प्रतिशत वन आच्छ्यादित है। पर्वतीय क्षेत्रों में बर्षा आधारित कृषि होती है साथ ही इस क्षेत्र में रसायनिक खाद का उपयोग बहुत कम याने 5 किलो ग्राम प्रति हेक्टेयर ही होता है । पहाड़ी क्षेत्रों में जैविक खेती की संभावनाओं को देखते हुए 2003 में शासन द्वारा  पर्वतीय क्षेत्रों में शत् प्रतिशत एवं मैदानी क्षेत्रों में 50 प्रतिशत स्वैच्छा से  जैविक खेती करने का निर्णय लिया गया।
 बर्ष 2003 में कृषि विभाग एवं उत्तरांचल जैविक उत्पादन परिषद द्वारा गहन विचार विमर्श के बाद जैविक कृषि मार्ग निर्देशिका ( रोड़ मैप) प्रकाशित की गई।
जैविक कृषि मार्ग निर्देशिका के अनुसार उत्तराखंड में जैविक खेती का मुख्य उद्देश्य उत्तराखंड को एक कृषि आधारित, प्रदूषण विहीन, स्वास्थ्यवर्धक ओर स्वावलंबी राज्य के रूप में स्थापित करना है।
 पर्वतीय क्षेत्रों में स्थानीय संसाधनों ( वनों में उपलब्ध जैविक अवशेष) का उपयोग करते हुए ग्राम स्तर पर जैविक खाद उत्पादन कर जहां एक ओर खेती पर लागत कम आयेगी साथ ही स्थानीय युवकों को रोजगार भी मिलेगा।
मैदानी क्षेत्रों में भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ाने हेतु हरी खाद के लिए विभागों द्वारा ढैचा बीज क्रय कर जैविक खेती करने वाले कृषकों को वितरित करके का था।
जैविक खेती के बारे ग्रामीणों को प्रशिक्षण एवं जानकारी देने हेतु  प्रत्येक विकासखण्ड में एक एक प्रशिक्षण प्राप्त स्थानीय पड़े लिखे युवाओं को मास्टर ट्रेनर के रूप में रखा गया ।
राज्य में जैविक खेती पर उच्च स्तरीय प्रशिक्षण लेने हेतु  अल्मोड़ा रानीखेत मजखाली में एक राज्य जैविक कृषि प्रशिक्षण केन्द्र की स्थापना की गई।
जैविक खेती में उपयोग होने वाले वायो एजैन्टस  ( ट्राईकोडर्मा ,वैवेरिया वेसियाना आदि ) तैयार करने का जिम्मा गढ़वाल क्षेत्र हेतु पन्त नगर कृषि विश्वविद्यालय का कैम्पस रानीचौरी (टेहरी गढ़वाल) तथा कुमाऊं मंडल हेतु पन्त नगर कृषि विश्वविद्यालय को दिया गया।
परम्परागत कृषि विकास योजना के तहत जैविक खेती को सहभागिता प्रतिभूति प्रणाली यानी पी.जी.एस. ( पार्टिसिपेट्री गारंटी सिस्टम ) और क्लस्टर पद्धति से जोड़ा गया है।
 पी.जी.एस. में लघु जोत किसान या उत्पादक एक-दूसरे की जैविक उत्पादन प्रक्रिया का मूल्यांकन, निरीक्षण व जांच कर सम्मिलित रूप में पूरे समूह की कुल जोत को जैविक प्रमाणीकृत करने का प्राविधान हैं। जिससे इन कृषकों के उत्पादन का विपणन स्थानीय एवं वाह्य बाजारों में किया जा सके ताकि जैविक खेती राज्य में गरीबी उन्मूलन का एक प्रमुख साधन हो सके।
प्रदेश के पहाड़ी क्षेत्रों में उगाई जाने वाली परमपरागत औद्यानिक व अनाजिक फसलें जैविक, पोष्टिक होने के साथ साथ औषधीय गुणों से भरपूर है। इन उत्पादों को जैविक मोड़ में उगाया जाता है तो इनका महत्व एवं व्यापारिक सम्भावनायें और अधिक बढ़ जाती है*।
माननीय प्रधानमंत्री जी द्वारा बर्ष 2017 में राज्य में एक हजार पांच सौ करोड़ रुपये की परम्परागत कृषि विकास योजना स्वीकृत की गई, जिसका उद्देश्य राज्य के परम्परागत (स्थानीय/ देशी) बीजों का अनुरक्षण एवं संम्वर्धन करना एवं इन बीजों से प्राप्त उपज का जैविक प्रमाणीकरण करना तथा व्रान्डिंग कर मार्केटिंग करना है। इस कार्य हेतु प्रोत्साहन के लिए कृषकों की आर्थिक मदद करना है जिसका भुगतान डी बी टी के माध्यम से करने का है।
इस योजना के अंतर्गत राज्य में कुल दस हजार जैविक क्लस्टरों में जैविक खेती करने का निर्णय लिया गया।
एक क्लस्टर में 20 हैक्टेयर भूमि ली जायेगी। प्रत्येक जैविक कल्सटर पर दस लाख रुपए व्यय किए जाने का प्रावधान है।
 प्रधानमंत्री जी का संकल्प है कि किसानों को योजनाओं में मिलने वाला अनुदान सीधे उनके खाते में जमा हो इसी निमित्त भारत सरकार के कृषि एवं कृषक कल्याण मंत्रालय ने अपने पत्रांक कृषि भवन,नई दिल्ली दिनांक फरबरी,28 2017 के द्वारा कृषि विभाग की योजनाओं में कृषकों को मिलने वाला अनुदान डी वी टी के अन्तर्गत सीधे कृषकों के खाते में डालने के निर्देश सभी राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों के कृषि उत्पादन आयुक्त, मुख्य सचिव, सचिव एवं निदेशक कृषि को किये गये। जिसके परिपालन में हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश सहित सभी राज्यों ने बर्ष 2017 से ही कृषि योजनाओं में मिलने वाले अनुदान की धनराशि  चयनित कृषकों के खाते में डीबीटी के माध्यम से डालना शुरू कर दिया है। किन्तु देवभूमि उत्तराखंड में ऐसा नहीं हो रहा।
शुरू के बर्षो में जैविक कृषि मार्ग निर्देशिका  के अनुरूप कार्य भी हुये कुछ युवकों ने रोजगार हेतु वर्मी कम्पोस्ट व कम्पोस्ट खाद बनाना शुरू भी किया जिसकी दरें शासन स्तर से न्यायपंचायत स्तर के लिए भी तय की गई साथ ही विभागों को इसे  राजकीय फार्मों में उपयोग करने के निर्देशित भी दिये गये थे।
 किन्तु बाद के बर्षो में विभागों की उदासीनता के कारण स्थानीय युवकों ने जैविक खाद बनाने के कार्य बन्द कर दिए। विभागों ने उत्तराखंड में जैविक खेती के माने ही बदल दिये। राज्य में जैविक खेती का उद्देश्य था स्थानीय संसाधनों का उपयोग करते हुए कृषि उपज को जैविक मोड़ में लाना तथा  स्थानीय युवाओं को  जैविक खेती के माध्यम से रोजगार से जोडना ।
 वर्तमान में जैविक खेती के माने है तराई व मैदानी क्षेत्रों  (काशीपुर रुद्रपुर आदि)  में स्थापित फर्मों से टैंडर से निम्न स्तर के  जैविक बीज, जैविक दवा जैविक खाद खरीद कर आवंटित बजट को ख़र्च करना है।
विभागों द्वारा क्रय इन जैविक दवा खाद बीज का प्रयोग कोई भी प्रगतिशील कृषक नहीं करता। कुछ समय तक ये निवेश सरकारी स्टोरों में पढ़ें रहते हैं बाद में सड़कों के किनारे या गाढ़ गधेरों में पढे मिलते हैं।
 कीर्तिनगर के न्यूली गांव मे सड़क किनारे जैविक खाद और दवाइयां-
श्री अनिल चमोली
श्रीनगर की एक रिपोर्ट-
 पिछले 2 हफ्ते में खुले में पड़ी हुई हैं. ये दवाएं और जैविक खाद अब खराब होने की कगार पर पहुंच चुकी हैं, लेकिन इन दवाओं और खाद का कोई हाल लेने वाला नहीं है. कृषि विभाग की ओर से ये खाद और दवाइयां जैविक कृषि को बढ़ावा देने के लिए किसानों को वितरित की जानी थी.
दरअसल, कृषि विभाग की ओर से जैविक खेती को बढ़ावा दिए जाने के लिए गांवों के समूह बनाए गए हैं. विभाग की ओर से किसानों को बीज, खाद और जैविक दवाइयां नि:शुल्क वितरित किया जाता है. साथ ही जैविक खाद तैयार करने के लिए रसायन भी दिए जाते हैं. लेकिन न्यूली गांव मे एक अलग ही दृश्य देखने को मिला है. 2 हफ्ते से यहां पर दवाइयां और खाद लावारिस खुले में पड़े हैं. इस ओर विभाग का ध्यान ही नहीं जा रहा है, वहीं, गांव के रहने वाले अनिल चमोली ने बताया कि यहां पर महंगी खाद और दवाओं की बेकदरी की जा रही है. यही खाद और दवाएं किसानों के काम आ सकती थीं. अनिल ने बताया कि इन दवाओं का कोई दुरूपयोग भी कर सकता कर सकता है. वहीं, कृषि एवं भूमि संरक्षक अधिकारी हरीश चंद्र भारद्वाज ने बताया कि उन्हें मामले की जानकारी नहीं है. फिर भी वो इस पूरे मामले की जांच करेंगे।
राज्य में जैविक खेती के क्रियान्वयन के संबंध में
 श्री दिनेश जोशी रुद्रप्रयाग का कहना है कि –
“जैविक प्रदेश वने या न वने परन्तु जैविक कार्यक्रम चलाने वाली ऐजेन्सी और उसके अधिकारियों, क्षेत्रीय कर्मचारियों की निजि आय दोगनी से चारगुनी अवश्य हौ जायेगी, यह गारन्टी  के साथ कह सकते हैं, इसमे मंत्री  से लेकर संतरी तक सभी हैं, पहाड के विशेष कर 10 जनपदों मै यदि ईमानदारी से सच्चाई सामने लाई जाय तो 70% खेती लोग छोड चुके हैं, जो लोग खेतीबारी कर रहे है वे परम्परागत खेती मै  जैविक खाद का प्रयोग आज से नही बरसों से करते आ रहे हैं, परन्तु जैविक के नाम पर मुख्य कृषि अधिकारियों से लेकर निदेशालय के अधिकारियों द्वारा कैसे सरकारी धन का बंदरबाट किया जाता है एक नजर
1:- जैविक कम्पोस्ट पिट रुद्रप्रयाग चमोली जनपद सहित 8 जिलों मै  तिरपाल और बांस की वल्लिया क्रय की गई, और बांटना दिखा, कम्पोस्ट पिट के गढे  वने, परन्तु ऐसी जगह और परिवार मै जहा पशु ही नहीं, खरीदने मै कमीशन, माल कम लाने मै कमीशन,
2:-  फार्म किसान बैंक मै 10 लाख गाव मै समिति वना कर 10% पर कृषि यंत्र  को करोडो का बजट आया अब बन्दर बांट, क्षेत्रीय  कर्मचारियों ने फर्जी समिति वनाई , उससे एक लाख अंशदान दिखाना लिया, और 10 लाख के माल की जगह धटिया कमीशन का माल 2 लाख का लिया , और बाकी माल का पैसा तथा कमीशन हडप लिया,
ऐसे सभी योजनाओ के हाल न कृषि निदेशक देखने, न  मण्डलीय निदेशक, न कृषि अधिकारियों को फुरसत,  यदि मुख्य मत्री  एस आई टी जाच करैं तो वर्तमान और पूर्व सभी जेल मै हों परन्तु जब राजा ही लिप्त हो तो प्रजा के क्या हाल”।
किसानों तक नहीं पहुंच पा रहे जैविक खेती के गुर-
Sat, 24 Nov 2018 06:00 PM (IST) Raksha Panthari
उत्तरकाशी से –
 “जैविक उत्पादों की मांग लगातार बढ़ती जा रही है। लेकिन, ग्रामीण अंचलों में किसान जैविक खेती कैसे करें, इसके लिए किसानों तक जरूरी जानकारियां नहीं पहुंच पा रही हैं। जिले में स्थिति यह है कि जैविक खेती करने के लिए कहां संपर्क करना है तथा कहां प्रशिक्षण लेना है इसका भी कोई पता नहीं है। जिले में घोषित जैविक ब्लॉक में सात हजार किसानों में से केवल तीन सौ किसानों के पास ही जैविक खाद तैयार करने के लिए पिट बने हैं।
उत्तराखंड राज्य गठन के बाद से उत्तराखंड को जैविक प्रदेश बनाने की बयानबाजी शुरू हो गई। वर्ष 2003 में जैविक उत्पाद परिषद का गठन किया गया है। वर्ष 2015 में हर जिले में जैविक ब्लॉक चुने गए। इसी में उत्तरकाशी जनपद का भटवाड़ी ब्लॉक को शासन स्तर पर चुना गया। लेकिन, भटवाड़ी ब्लॉकमें सेब काश्तकारों के विरोध के कारण इसके बाद डुंडा ब्लाक को जैविक ब्लॉक बनाने की कवायद शुरू हुई।
साल 2015 में केंद्र सरकार से करीब 10 करोड़ की धनराशि भी आई। लेकिन, जैविक उत्पाद परिषद के डुंडा ब्लॉक के सात हजार किसानों में से केवल चार हजार किसानों का पंजीकरण किया है। जैविक खाद तैयार करने के लिए हर किसान के पास जैविक खाद पिट तैयार करवाए जाने थे। पर, अभी तक पूरे ब्लॉक में केवल तीन सौ किसानों के पास ही जैविक खाद पिट है।
बजट न मिलने के कारण इस वर्ष एक भी जैविक खाद पिट तैयार नहीं कराया गया। साथ ही गांव में ग्रामीणों जैविक खेती के लिए जागरूक करने के कार्यक्रम पर भी ब्रेक लग गया है। किसानों को जैविक खेती के लिए जागरूक करने का जिम्मा जैविक उत्पाद परिषद के पास है।
लेकिन परिषद की हालत ऐसी है कि जिले में तैनात कर्मचारियों के बैठने के लिए एक कार्यालय नहीं है। कर्मचारियों की संख्या भी सीमित है। जिस वजह से न तो किसानों के तैयार उत्पादों के सैंपल भरे जा रहे हैैं और न मिट्टी की जांच के अनुसार से किसानों को जैविक खाद और जैविक दवाइयां मिल पा रही है। भले ही सरकार ने इस बार कृषि विभाग को भी जैविक खेती को बढ़ावा देने का कार्य दिया है। पूरे जनपद में 450 कलस्टर दिए गए हैैं। लेकिन, अभी इन कलस्टरों में किसानों का चयन और कार्य शुरू नहीं हो पाया है।
मुख्य कृषि अधिकारी महिधर तोमर ने बताया कि डेढ़ माह पहले ही कृषि विभाग को 450 कलस्टरों में परंपरागत जैविक खेती को बढ़ावा दिए जाने का कार्य मिला है। इसके लिए जल्द ही कृषि विभाग कार्य शुरू करेगा, इससे पहले जनपद में जैविक उत्पादन परिषद भी काम कर रहा था।”
 किसानों को बिना प्रशिक्षण बांट दी करोड़ों की किट ।
SUNIL NEGI
Sat, 22 Jun 2019
देहरादून, जेएनएन।
 राज्य में परंपरागत कृषि विकास योजना पर अधिकारियों की कार्यशैली से पलीता लग रहा है। ताजा मामला करोड़ों रुपये के जैव उर्वरक, जैविक रसायन और उपकरणों से जुड़ा है। किसानों को इसकी किट तीन माह पहले ही बांट दी गई, मगर प्रशिक्षण न देने से किट का किसानों द्वारा या तो दुरुपयोग किया जा रहा है या घरों में शो-पीस बन गई है। इससे चिंतित प्रगतिशील किसानों का कहना है कि खरीफ की फसल की बुआई अंतिम दौर में चल रही है। ऐसे में कब प्रशिक्षण होगा और कब किट का उपयोग किया जाएगा।
किसानों की आय दोगुना करने के मिशन के तहत केंद्र सरकार ने पिछले साल राज्य को परंपरागत कृषि विकास योजना को स्वीकृति दी थी। इस योजना के तहत परंपरागत किसानों के 39 सौ कलस्टर बनाए जा चुके हैं। हर कलस्टर में 50 किसान जोड़े गए हैं। प्रत्येक कलस्टर को एक साल में छह लाख रुपये बीज, खाद, दवा और प्रशिक्षण के लिए दिए जाने हैं। कृषि निदेशालय का कहना है कि पहली किश्त के रूप में 131 करोड़ स्वीकृति हुए थे। इसमें 65 करोड़ से विभिन्न कंपनियों के मार्फत निविदा से किट की खरीदारी हुई है। किट सभी कलस्टर में बांटी जा चुकी हैं। मगर, प्रशिक्षण देने वाली संस्था का शेड्यूल अभी तय नहीं हुआ है। खरीफ की फसल की बुआई को महज एक माह शेष है। ऐसे में कब प्रशिक्षण दिया जाएगा और कब फसल तैयार की जाएगी, इसे लेकर किसान चिंतित हैं। किसानों को आशंका है कि कहीं सिर्फ बजट ठिकाने लगाने के लिए किसानों की आड़ तो नहीं ली जा रही है।
किसानों को दी गई किट में कृषि एवं उद्यान विभाग ने जैव उर्वरक, जैव रसायन, नीम ऑयल, वर्मी कंपोस्ट बनाने के उपकरण और स्प्रे मशीनें आदि शामिल की गई हैं।
किट का हो रहा दुरुपयोग
पहाड़ों में खरीफ की फसल की तैयारी अंतिम चरणों में है। ऐसे में कुछ किसानों ने अपने अनुभव के आधार पर इस किट का उपयोग किया। कुछ ने किट में दिए गए जैव उर्वरक और रसायन को पानी तो कुछ नहीं तेल में मिलाकर उपयोग किया। अब किसानों को डर है कि कहीं फसल दोगुनी के बजाय पूरी तरह से खराब न हो जाए।
तीन चरण में होना था प्रशिक्षण
योजना के तहत तीन चरणों में प्रशिक्षण दिया जाना था। इसमें पहले बीज के बारे में, फिर जैविक खाद और अंतिम चरण में कीट नाशक छिड़काव के बारे में प्रशिक्षण देना था। लेकिन किसानों को अब तक पहले चरण का भी प्रशिक्षण नहीं दिया गया है।
गौरीशंकर (निदेशक कृषि, उत्तराखंड) का कहना है कि किसानों को इनपुट वितरित किए जा चुके हैं। प्रशिक्षण के लिए संस्था का चयन हो गया है। कुछ क्षेत्रों में प्रशिक्षण शुरू हो गया है। उम्मीद है कि सभी कलस्टर में प्रशिक्षण समय पर पूरा हो जाएगा। किसानों की चिंता का पूरा ध्यान रखा जाएगा।
विजय जड़धारी (बीज बचाओ आंदोलन के सूत्रधार) का कहना है कि योजना के शुरुआत में गफलत दिख रही है। किट देकर प्रशिक्षण देने की कोई तैयारी नहीं है। फसल की बुआई अंतिम दौर में है। ऐसे में कब प्रशिक्षण मिलेगा और कब इस किट का उपयोग होगा।
प्रधानमंत्री जी को
 शिकायती पत्र-
श्री नरेन्द्र मेहरा जैविक कृषक एवं राज्य ब्यूरो प्रमुख उत्तराखंड एग्रीकल्चर टुडे समूह, गौलापार हल्द्वानी नैनीताल ने माननीय प्रधानमंत्री जी को राज्य में विभागों द्वारा जैविक खेती के क्रियान्वयन के संबंध में शिकायती पत्र लिखा है –
आदरणीय प्रधानमंत्री जी ,
में जैविक प्रदेश उत्तराखंड की जैविक खेती के संबंध में कुछ समस्या एवं सुझाव आपके सम्मुख रखना चाहता हूं। उत्तराखंड में जैविक खेती जादुई आंकड़ौं के बल पर चल रही है। आंकड़ों के जादूगर केन्द्र सरकार की आंखों में धूल झोंक रहे हैं। बड़े कार्यक्रमों में अपनी पीठ थपथपवा रहे हैं। ईमानदारी से देखा जाए तो जैविक खेती की हकीकत और किसान की हालात किसान के खेत खलिहान पर पहुंच कर ही देखी जा सकती है। जरूरत है केन्द्र की एक गोपनीय जांच कमेटी सिर्फ किसानों के बीच जाकर जांच करे तो जैविक खेती की वास्तविकता सामने आजायेगी।
श्री देवेन्द्र सिंह रामगढ़ नैनीताल –
 जब तक किसान संगठित होकर आगे नहीं आएंगे तब तक ऐसी योजनाएं और क्लस्टर बनते और विलुप्त होते रहेंगे केवल कागजों में एक रास्ता यह सही था की पर्वती क्षेत्र के जितने भी जिले हैं गांव हैं उनको सरकार सीधे जैविक क्षेत्र घोषित करें और उन क्षेत्रों में रासायनिक कोई भी खाद दवा बीज ले जाने की अनुमति ना हो और सख्त सजा का प्रावधान साथ में जुर्म भी रखा जाए तो  स्वतः पर्वती क्षेत्र जैविक हो जाएगा जैसा कि आपने भी कहा है अधिक भूभाग हमारा पहाड़ों का बनो और वृक्षों से आच्छादित है सरकार में बैठे लोगों को इस ओर ध्यान तो है लेकिन काम करने की नियत नहीं है कारण आपने सही कहा मैदानी क्षेत्रों की जैविक खाद और जैविक दवा के नाम पर मिट्टी भेजी जा रही है गांव में कृषि केंद्रों में और खूब गोलमाल किया जा रहा है वहां बैठे जिम्मेदार फील्ड अधिकारियों के द्वारा ₹10 की चीज को ₹100 लिखकर ₹50 की छूट भी दे रहे हैं तब भी ₹40 इमानदारी से भ्रष्टाचार के खा रहे हैं सरकार सब जानती है नेताओं को सब पता है और सब के सब आंखें मूँदकर बैठे हैं क्योंकि इससे इनकम जो है उन्हीं की है किसानों की नहीं खाने वालों का स्वास्थ्य नहीं पैसा चाहिए हमारे प्रदेश के अधिकांशलोगों को
सब लोग भी गलत नहीं है लेकिन कुछ ऐसे लोग हैं जो चापलूस और भ्रष्टाचारी हैं उनको नजरअंदाज कर रहे हैं सभी लोग सीधे कारवाही नहीं हो पाती है सब एक दूसरे के नीचे दबे हुए हैं।
श्री विजेन्द्र सिंह रावत नोंगांव उत्तरकाशी –
उत्तराखंड बागवानी विभाग का कमीशन करिश्मा, घटिया टमाटर के बीज से किसानों की लाखों की मेहनत पर पानी फेरा…!
इसीलिए प्रदेश का कोई भी बागवान अनुदान के बावजूद बागवानी विभाग से नहीं लेता, बीज, खाद व कीटनाशक।
मोटा कमीशन लेकर घटिया कम्पनियों से होती है, करोड़ों की खरीद।
यों लुटता है जनता का पैसा और चौपट होती हैं फसलें।
हिमाचल प्रदेश में सिर्फ नामी और प्रतिष्ठित कंपनियों से होती है खरीद।
लगता है इस सरकारी महा घोटाले के खिलाफ हाईकोर्ट की शरण में जाना पड़ेगा…….और जिम्मेदार अधिकारियों पर ठोका जायेगा किसानों की बर्बादी का करोड़ों का मुकदमा…!
श्री नीरज उत्तराखण्डी
20अगस्त 2020 त्यूनी  देहरादून ।
बोलती तस्वीर!
—खराब निकले टमाटर के बीज ने काश्तकारों की मेहनत और उम्मीदों पर पानी फेरा पानी
आसमान  से छूटे खजूर पर अटके ।जी हां ऐसी ही कुछ हालत है टमाटर की फसल खराब हुए किसानों की। उद्यान विभाग की लापरवाही और गैरजिम्मेदारी किसानों  की आजीविका पर भारी पड़  रही है। और  उद्यान विभाग  द्वारा काश्तकारों को निम्न गुणवत्ता का बीज दिये जाने का खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ रहा है।
किसानों ने उद्यान अधिकारी को  ज्ञापन भेजकर उचित मुआवजे की मांग की है ।
जनपद देहरादून के पर्वतीय जनजाति क्षेत्र जौनसार बावर की तहसील त्यूनी के ग्राम पंचायत कुल्हा के विऊलोग तथा मुन्धोल ग्राम पंचायत के चांदनी वस्ती खेड़ा में  एक दर्जन  से अधिक किसानों  ने टमाटर की नगदी फसल की खेती इस उम्मीद  से की थी कि उनकी आर्थिक मजबूत होगी और घर का खर्चा भी चलेगा साथ ही दवा खाद का व्यय भी वसूल होगा । लेकिन  उन्हें  क्या  पता था की उद्यान विभाग ने जो  टमाटर  का  कथित  जैविक बीज उन्हें  उपलब्ध  करवाया है वह निम्न गुणवत्ता का होगा और उनकी मेहनत और उम्मीद पर पानी फेर देगा।
बताते  चलें कि उद्यानविभाग  ने डेढ़ दर्जन  से अधिक  काश्तकारों को क्षेत्र में पीकेबीवाई के अंतर्गत   टमाटर का  जो कथित जैविक बीज देकर दावा किया कि यह उत्तम गुणवत्ता का बीज है इससे पैदावार अच्छी  होगी और उन्नत गुणवत्ता के फल लगने से बाजार  में  इसकी मांग  काफी है जो कम लागत  पर अधिक उत्पादन देता है। जिससे आर्थिकी को संभल  मिलेगा और आय अर्जित करने का एक बड़ा जरिया साबित होगा । लेकिन  वक्त  ने विभाग के सारे  दावे और बीज की हकीकत की पोल खोलकर रख दी। दिन रात  पसीने से नहाने  वाले किसानों के खून पसीने मेहनत मिट्टी में  मिल गई। बीज  और फल इतना  घटिया निकला कि किसानों  को टमाटर  खेत में  ही छोड़ने को मजबूर  होना पड़ा । टमाटर के मरियम पौध उस पर लगे निम्न गुणवत्ता के टमाटर जिसकी कोई  बाजार वैल्यू नहीं ।  किसानों  ने जब विभाग को अवगत कराया  तो टीम ने खानपूर्ति के लिए  खेतों का निरीक्षण तो किया  लेकिन  किसानों को  क्षतिपूर्ति  की कोई भरपाई की और न ही मुआवजा ही दिया  गया ।
 ज्ञान सिंह, सुरत सिंह, नरेन्द्र, जवाहर सिंह प्रताप सिंह, सुमित्रा देवी, प्रकाश, कमाल चंद, भगत राम हरिमोहन आदि काश्तकारों  ने बताया कि विभाग द्वारा उन्हें बीज दिया गया  वह घटिया गुणवत्ता का निकला जिससे उन्हें काफी नुकसान उठाना पड़ा ।  फसल जब फलन में आई तो उसका फल बेकार निकला जो घटिया गुणवत्ता के चलते बाजार भाव की प्रतिस्पर्धा में पीट गया । घटिया उत्पादन के जलते टमाटर तोड़ना ही छोड़ना।
काश्तकारों ने मुख्य उद्यान अधिकारी को ज्ञापन भेजकर उचित मुआवजा दिये जाने की मांग की है ।
इस संबंध में जब काश्तकारों को दिये गये  विभाग के अधिकारी जसोला के मोबाइल नंबर पर उनका पक्ष जानने के लिए सम्पर्क किया गया तो संपर्क नहीं हो सका।
 औद्यानिकी कार्यों की होगी थर्ड पार्टी जांच।
देहरादून, केदार दत्त। केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी परंपरागत कृषि विकास योजना (पीकेवीवाई) के तहत उत्तराखंड में औद्यानिकी विकास की असल तस्वीर अब सामने आएगी। सरकार ने उद्यान विभाग के अंतर्गत पीकेवीवाई में हुए कार्यों की थर्ड पार्टी जांच कराने का निर्णय लिया है। इसके लिए तकनीकी संस्थाओं के चयन कर लिया गया है। कृषि विज्ञान केंद्र अथवा पंतनगर विश्वविद्यालय के विशेषज्ञ यह जांच करेंगे।
परंपरागत कृषि विकास योजना के तहत राज्य में औद्यानिकी विकास के लिए उद्यान विभाग को 1241 क्लस्टर विकसित करने का जिम्मा सौंपा गया है। इनमें 1206 औद्यानिकी और 35 जड़ी-बूटी के क्लस्टर हैं। इन क्लस्टरों में जैविक खेती, फलोत्पादन, पुष्पोत्पादन जैसे कदम उठाने के साथ ही किसानों को उन्नत खाद-बीज मुहैया कराया जा रहा है। वर्ष 2018-19 से पीकेवीवाई में उद्यान विभाग को अब तक 40.27 करोड़ की धनराशि जारी की जा चुकी है।
बावजूद इसके राज्य में पीकेवीवाई में हुए कार्यों को लेकर वैसा उछाल नजर नहीं आ रहा, जिसकी दरकार है। ऐसे में सवाल उठने भी स्वाभाविक है। इस सबको देखते हुए उद्यान विभाग में पीकेवीवाई के कार्यों की थर्ड पार्टी जांच कराने का निश्चय किया गया है। इस सिलसिले में कवायद अंतिम चरण में है और जल्द ही इसके आदेश जारी किए जाएंगे।
उत्तराखंड जैविक उत्पाद बोर्ड के अनुसार प्रदेश में पांच साल में आर्गेनिक खेती का क्षेत्र फल 2.3  प्रतिशत से बढ़कर 34 प्रतिशत हुआ है। आर्गेनिक खेती के तहत 2.20 लाख हेक्टेयर क्षेत्र फल है इसमें 80 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में आर्गेनिक खेती को थर्ड पार्टी प्रमाणीकरण किया गया है जबकि 1.40 लाख हेक्टेयर पर पी जी एस प्रतिभूति प्रमाणीकरण प्रणाली द्वारा प्रमाण पत्र मिल चुके हैं।
परम्परागत कृषि विकास योजना में फसलों के उत्पादन का जैविक प्रमाणीकरण सपोर्टिग एजेंसी के सहयोग से पी जी एस ( पार्टीसिपेट्री गारेन्टी स्कीम ) के तहत किया जाता है।
PGS द्वारा जैविक प्रमाणीकरण  के चार मानक है-
1.भागीदारी-
प्रमाणीकरण प्रणाली में हितधारकों की सक्रिय भागीदारी होती है जिसमें न केवल किसान, बल्कि व्यापारी और उपभोक्ता भी शामिल हैं।
2. सहभागितापूर्ण दृष्टिकोण-
कार्यान्वयन और निर्णय लेने के लिये सामूहिक रूप से ज़िम्मेदारी ली जाती है, जो एक साझे दृष्टिकोण पर आधारित होती है।
3. पारदर्शिता-
जैविक गारंटी प्रक्रिया में उत्पादकों की सक्रिय भागीदारी के माध्यम से पारदर्शिता बनाए रखी जाती है।
4. विश्वास-
PGS का मूल विचार इस बात पर आधारित है कि उत्पादकों पर भरोसा किया जा सकता है तथा PGS प्रणाली इस विश्वास को जाँच के द्वारा सही सिद्ध करेगी ।
उत्तराखंड में PGS प्रणली द्वारा प्रमाणीकरण हेतु निर्धारित मानकों का अनुपालन होता हुआ  दिखाई नहीं देता, कई स्थानों में ग्रामीणों को पता ही नहीं होता कि उनका जैविक खेती हेतु पंजीकरण हो रखा है। ग्रामीणों को पता ही नहीं है कि उनको प्रशिक्षण देने हेतु सपोर्टिग एजेंसी व विभाग हैं कृषकोंकी लगातार बैठकें करना तो बहुत दूर की बात है। अधिकतर जैविक प्रमाणीकरण में किया जाता है फर्जीवाड़ा।
परम्परागत कृषि विकास योजना की समीक्षा बैठक में कृषि मंत्री जी ने स्वयं ही संज्ञान लिया है कि सपोर्टिंग ऐजेन्सियों द्वारा प्रस्तावित प्रशिक्षण नहीं कराये जा रहे हैं   ट्रेनिंग के नाम पर झूठे फोटो ग्राफ लगा कर ग्राम प्रधान से साइन करवा कर ट्रेनिंग होना दर्शाया जा रहा है जिसमें अफसरों की मिली भगत भी है इसी समीक्षा बैठक में राज्य के कृषि निदेशक कहते हैं कि अफसर और सपोर्टिंग एजेंसी के बीच समन्वय नहीं है सपोर्टिंग एजेंसी को उनके गांवों और क्लस्टरों के रास्ते ही नहीं पता तो वे वहां ट्रेनिंग क्या करवाते होंगे दूसरी ओर उत्तराखंड जैविक उत्पाद परिषद एक 1.40 लाख (एक लाख चालीस हजार ) हेक्टेयर पर PGS प्रणली से प्रमाणीकरण कर प्रमाण पत्र निर्गत करने की बात कह रहा है लगता है सब हवा हवाई है।
पूर्व में भी कृषि मंत्री जी द्वारा जैविक उत्पाद प्रमाणीकरण पर प्रश्न चिन्ह लगाये हैं।
Mon, 20 Jul 2020 02:51 PM (IST)
बीज प्रमाणीकरण संस्था में गड़बड़झाला, कृषि मंत्री उनियाल ने दिए जांच के आदेश
देहरादून, राज्य ब्यूरो। उत्तराखंड बीज और जैविक प्रमाणीकरण संस्था में गड़बड़झाले की बू आने के बाद सरकार ने इसे गंभीरता से लिया है। संस्था की प्रबंध कार्यकारिणी के निर्णय के बावजूद बीज उत्पादक प्रत्येक किसान के खेत की खसरा-खतौनी प्राप्त करने संबंधी आदेश निरस्त किए जाने के मामले की कृषि मंत्री सुबोध उनियाल ने जांच के आदेश दिए हैं।
कृषि मंत्री के अनुसार सचिव कृषि आर. मीनाक्षी सुंदरम से कहा गया है कि सभी पहलुओं की गहनता से जांच कराकर जल्द से जल्द आख्या प्रस्तुत करें। विभिन्न फसलों के बीजों को स्थानीय परिस्थितियों के अनुसार किसानों के खेतों में उगाने की बजाए बीज प्लांटों द्वारा बाजार से औने-पौने दामों पर बीज खरीदने और इसे उन्नत बताकर किसानों को बेचने की बातें पूर्व में उठती रही हैं। यही वजह भी है कि तमाम मौकों पर यह बीज खरीदने वाले किसानों को फसल से उत्पादन नहीं मिल पाता।
इस स्थिति को थामने के मकसद से ही पूर्व में उत्तराखंड बीज और जैविक प्रमाणीकरण संस्था की प्रबंध कार्यकारिणी ने निर्णय लिया कि बीज उगाने वाले प्रत्येक किसान से उसके खेत की खसरा-खतौनी प्राप्त की जाएगी। इससे पता चल सकेगा कि बीज का उत्पादन कहां हुआ। साथ ही जिम्मेदारी भी तय हो सकेगी। इस बीच कृषि मंत्री सुबोध उनियाल को यह शिकायत मिली कि बीज और जैविक प्रमाणीकरण संस्था में प्रबंध कार्यकारिणी के फैसले के उलट बीज उत्पादक किसानों से खसरा-खतौनी प्राप्त करने संबंधी आदेश ही निरस्त कर दिया गया है। नियमत: इस तरह के फैसले बदलने का अधिकार प्रबंध कार्यकारिणी को ही है।
ऐसे में गड़बड़झाले की आशंका को देखते हुए अब कृषि मंत्री ने सख्त रुख अपनाया है। कृषि मंत्री उनियाल ने कहा कि सरकार भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की नीति पर चल रही है और किसी भी स्तर पर गड़बड़झाले को सहन नहीं किया जाएगा। कृषि मंत्री ने बताया कि बीज और जैविक प्रमाणीकरण संस्था का मामला संज्ञान में आने पर इसकी जांच के आदेश दे दिए गए हैं। जांच रिपोर्ट मिलने के बाद कार्रवाई अमल में लाई जाएगी।
 विभाग योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए कार्ययोजना तैयार करता है कार्ययोजना में उन्हीं मदों में अधिक धनराशि रखी जाती है जिसमें आसानी से संगठित /संस्थागत भ्रष्टाचार किया जा सके ।
यदि विभाग /शासन को सीधे कोई सुझाव/ शिकायत भेजी जाती है तो कोई जवाब नहीं मिलता या शपथ पत्र के साथ शिकायत भेजने हेतु कहा जाता है ,प्रधानमंत्री जी / मुख्यमंत्री जी के समाधान पोर्टल पर सुझाव/ शिकायत अपलोड करने पर शिकायत शासन से संबंधित विभाग के निदेशक को जाती है वहां से जिला स्तरीय अधिकारियों को वहां से फील्ड स्टाफ को अन्त में जबाव मिलता है कि किसी भी कृषक द्वारा  कार्यालय में कोई लिखित शिकायत दर्ज नहीं है सभी योजनाएं पारदर्शी ठंग से चल रही है।
उच्च स्तर पर योजनाओं का मूल्यांकन सिर्फ इस आधार पर होता है कि विभाग को कितना बजट आवंटित हुआ और अब तक कितना खर्च हुआ राज्य में कोई ऐसा सक्षम और ईमानदार सिस्टम नहीं दिखाई देता जो धरातल पर योजनाओं का ईमानदारी से मूल्यांकन कर   योजनाओं में सुधार ला सके।
राज्य में जैविक एक्ट लागू कर देश में जैविक एक्ट वाला पहला प्रदेश उत्तराखंड कह कर राज्य जैविक प्रदेश नहीं बनने वाला। जबतक विभागों के नौकरशाह व दवा बीज कम्पनियों के (माफिया) संगठित भ्रष्टाचार करने वालौं को वेनकाब कर सजा नहीं दी जाती तथा योजनाओं के क्रियान्वयन में पारदर्शिता नहीं लाई जाती उत्तराखंड जैविक प्रदेश बनेगा यह सोचना वेमानीहै।
बर्ष 2003 में शुरू हुई जैविक खेती की महत्वाकांक्षी योजना जिसका उद्देश्य राज्य के स्थानीय वेरोजगार युवाओं को रोजगार से जोड़ना तथा सीमांत एवं लघु सीमांत गरीब कृषकों की आर्थिक स्थिति सुधारना था कृषि एवं उद्यान विभाग के संगठित भ्रष्टाचार (माफिया) के कारण दम तोड़ती नजर आ रही है।
जब-तक  राज्य के कृषक संगठित होकर योजनाओं में पारदर्शिता की मांग नहीं करेंगे कृषकों के हित में बनी योजनाओं में ऐसी ही लूट चलती रहेगी।
लेखक- कृषि एवं उद्यान विशेषज्ञ।

Related Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *