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बागेश्वर: उत्तराखंड की बदहाल बुनियादी सेवाओं का नजारा एक बार फिर देखने को मिला

बागेश्वर: उत्तराखंड की बदहाल बुनियादी सेवाओं का नजारा एक बार फिर देखने को मिला
सत्‍यपाल नेगी,   रुद्रप्रयाग   उत्‍तराखण्‍ड
उत्तराखण्ड डेस्क-पहाडो की आवाज
          बागेश्वर के कपकोट ब्लाक की ये तस्वीर—-       अब तक घायलों को पुरुषों के कंधों पर अस्पताल ले जाने की तस्वीरें ही लोगों ने देखी थीं लेकिन अब महिलाओं को भी ये जिम्मेदारी उठानी पड़ रही है। इससे बड़ी विडम्बना क्या होगी कि बागेश्वर के समड़ड गांव में हादसे में घायल हुए व्यक्ति को डोली में मीलों पैदल ले जाने के लिए महिलाओं को आगे आना पड़ा। दुरूह रास्तों पर गिने चुने-पुरुषों के साथ महिलाओं ने भी डोली को बारी-बारी कंधा देकर 25 किलोमीटर की दूरी तय की और तब कहीं जाकर घायल को अस्पताल ले जाया जा सका।
हिमालय से सटे पिंडरघाटी के बोरबलड़ा इलाके के लोगों को आजाद भारत के निजाम एक अदद सड़क तक उपलब्ध नहीं करा पाये हैं। स्थानीय स्तर पर रोजगार के साधन नहीं तो युवा रोजगार की तलाश में शहरों में चले गए। गांव में रह गए हैं चंद पुरुष, कुछ बुजुर्ग और महिलाएं। इलाके में कोसों दूर तक कोई अस्पताल नहीं है। रोड हेड तक जाने के लिए 25-30 किमी का पैदल सफर करना पड़ता है। ऐसे हालात में बोरबलड़ा के समड़ड तोक में एक मार्च को 32 वर्षीय खिलाफ सिंह जानवरों के लिए चारा काटते वक्त पेड़ से घिरकर घायल हो गया। खिलाफ के घायल होने से गांव के लोगों के हाथ-पैर फूल गए। घायल को जिला अस्पताल पहुंचाना किसी जंग को जीतने से कम नहीं था। गांव के लोगों ने कुर्सी को डंडों में बांधकर डोली का आकार दिया। चंद पुरुष घायल को डोली में 25 किमी दूर कैसे ले जाएंगे, यह समस्या थी।
रोजगार के लिए बाहर गए युवा तो गांव में रह गए बुजुर्ग और महिलाएं
इसका समाधान किया महिलाओं ने। वह भी पुरुषों के साथ चल दीं और रास्ते में बारी-बारी से उन्होंने डोली को कंधा दिया। ये लोग सोमवार दोपहर को बदियाकोट पहुंचे। वहां से 65 किमी दूर जिला मुख्यालय वाहन से घायल को लेकर आए। सोमवार शाम सात बजे खिलाफ को जिला अस्पताल लाया गया। उसके सिर समेत तमाम हिस्सों में चोट थी। हालत में सुधार होने पर परिजन उसे घर ले गए हैं।
समड़ड (बोरबलड़ा) गांव में करीब 60-70 लोग रहते हैं। गांव के अधिकतर युवा हल्द्वानी, बागेश्वर और भराड़ी आदि क्षेत्रों में छोटी-मोटी नौकरी कर रहे हैं। बच्चे बदियाकोट में रहकर पढ़ाई करते हैं। गांव में चंद पुरुष, बुजुर्ग और महिलाएं हैं। इसी के चलते घायल खिलाफ सिंह को बदियाकोट तक लाने के लिए गांव की महिलाओं को भी डोली को कंधा देना पड़ा।
गांव के दया देवी, प्रीति देव, चंद्रा देवी, सावित्री देवी, बबीता दानू, हरीश सिंह, गंगा सिंह, दयाल सिंह, अर्जुन सिंह खिलाफ सिंह को 25 किमी डोली में ढोकर बदियाकोट तक पहुंचाया। बदियाकोट निवासी नरेंद्र दानू ने बताया कि सड़क न होने से इलाके के लोगों के सामने आए दिन इस तरह की दिक्कत आती है। गांव से पलायन तो नहीं है लेकिन युवाओं को रोजगार के लिए बाहर जाना पड़ा है, अपने राज्य बनने के 20 सालो बाद भी हालात ओर बिगड़ते नजर आ रहै है-?  फिर किस विकास की बाते सरकारे पहाड़ी जिलो के लिए करती है,,, आज बड़ा सवाल खड़ा है—-?

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