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शशांक पंच भैया बने प्रवक्ता दो बार के गोल्ड मेडलिस्ट उत्तराखंड के बच्चों के लिए बने रोल मॉडल बने संस्कृत के प्रवक्ता

रिपोर्ट  कमलेश पुरोहित

 

डॉ शशांक पंच  बने उत्तराखंड में बने प्रवक्ता संस्कृत के प्रवक्ता बनने के साथ ही शशांक पंच  का चयन सहायक अध्यापक के तौर पर भी हुआ था इसी बीच उनका प्रवक्ता में भी चयन हो चुका है!सशक्त मंच भैया संस्कृत शिक्षा के लिए उत्तराखंड के युवाओं के लिए प्रेरणादायक !सरपंच भैया जी का कहना है कि संस्कृत हमारा हमारी मूल भाषा संस्कृत भाषा ही सही भाषा की जननी है कठिन प्रयासों औरत की प्रेम मेहनत से ही शशांक पंच भैया बने उत्तराखंड में संस्कृत के प्रवक्ता संस्कृत बहुत कठिन भी सही है इसके साथ ही उत्तराखंड में संस्कृत के बाद बहुत सीमित तौर पर आते हैं इसी लक्ष्य को देखते हुए शशांक जी ने अथक प्रयासों के साथ मुकाम हासिल किया है
वही बने प्रेरणा के स्रोत उत्तराखंड में संस्कृत के लिए शशांक पंच भैया
जानकारी के अनुसार शशांक पंचम बोला था ना पौड़ी गढ़वाल देवप्रयाग के रहने वाले हैं
और मुख्य तौर पर बद्रीनाथ पंडा समाज के कार्य क्षेत्र में भी इनकी भूमिका है वही उनके पिता श्री मुख्य तौर पर बद्रीनाथ जी के पुजारी हैं वहां पर पर रखकर कार्य को कार्य करते हैं जनकल्याण की भावना को रखते हुए बद्रीनाथ के चरणों में पूजा अर्चना करते हैं और इसी पर अण्णा के साथ हसन जी को भी संस्कृत भाषा और शिक्षा के प्रति प्रेम और लगाओ लग गया और उसी साथी उसके साथ ही उनमें सबसे शिक्षा में अपने जीवन को आगे
उनके सहयोगी मित्र कमलेश जी बताते हैं कि शशांक जी पढ़ने में काफी होशियार और समझदार पहले से थे इसी को देखते हुए उनके द्वारा अथक प्रयासों पर ईमेल के साथ उनके द्वारा प्रवक्ता पद के लिए चयन हुआ है हम भी उनसे प्रेरणादाई मानते हैं अपने आप में कहीं ना कहीं उत्तराखंड के छात्रों के लिए एक रोल मॉडल है क्योंकि आज के जमाने में लोग आधुनिकता की ओर भाग रहे हैं सभी लोग से शिक्षा के प्रति नहाते हुए मॉडल शिक्षा को दे अपना रहे हैं
शशांक जी की उपलब्धि की बात करें
मुख्य कामयाबी सूची शिक्षा में इनके द्वारा उत्तराखंड में संस्कृत विश्वविद्यालय में विश्वविद्यालय गोल्ड मेडलिस्ट रहे हैं और नेट जेआरएफ में भी उनका चयन हुआ है दो को शांत स्वभाव के मृदुभाषी है
शशांक जी बताते हैं कि संस्कृत हमारे जीवन में आने के साथ ही हमारी बोलचाल भाषा शैली व्यावहारिकता की ओर चली गई जिससे मुझे जीवन में हमेशा सर लक्ष्य को पाने की चाहत रही है और अपने गुरुजनों को भी प्रणाम करते हैं मुख्य तौर पर इसका श्रेय अपने माता-पिता अपने भाई जी को देते हैं क्योंकि उनके अथक सहयोग सहयोग और प्यार से ही शशांक जी इस मुश्किल परीक्षा को पास कर पाए वही शशांक जी आगामी जीवन में बताते हैं कि भविष्य संस्कृत शिक्षा के साथ में
मुख्य शिक्षा अधिकारी के तौर पर वह निदेशालय में भी अपनी भूमिका अदा करेंगे अभी उनकी तैयारी प्रोफेसर की चल रही है अकरम भविष्य में हम भी उनके उज्जवल भविष्य की कामना करते हैं जय विशाल का उद्घोष का नारा उन्होंने कहा कहा गया

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