उत्तराखंड

UTTARAKHAND-अनियमितताओं की भेंट चढी हार्टिकल्चर टैक्नोलॉजी मिशन योजना

डा० राजेंद्र कुकसाल।
मो०- 9456590999
*सात सौ करोड़ से भी अधिक व्यय करने पर  नहीं दिखाई देता अपेक्षित उद्यान विकास*।
-भारत सरकार द्वारा वित्त पोषित इस योजना का मुख्य उद्देश्य औद्यानिक फसलौं का कल्सटर मैं उत्पादन कर स्थानीय कृषकों आर्थिक रूप से सुद्रिण करना, सव्जी बीजों का उत्पादन करवा कर आत्म निर्भर बनाना है।
 -योजना का प्रतिपादन, क्रियान्वयन एवं निगरानी भारत सरकार की गाइड लाइन के अनुसार नहीं किया जा रहा है।
-गलत नियोजन सही मूल्यांकन का न हो पाना योजना के कार्यान्वयन मैं पारदर्शिता का न होने के कारण योजना का समुचित लाभ विशेष रूप से गरीब कृषकों को नही मिल पा रहा है।
-योजना में कृषकों का चयन योजना का प्रतिपादन क्रियान्वयन और निगरानी जिला स्तर  पर जिला अधिकारी की अध्यक्षता मैं बनी जिला मिशन कमेटी द्वारा किए जाने का प्राविधान है जिसका अनुपालन नहीं किया जा रहा है।
-बिना जिला मिशन कमेटी  के अनुमोदन के उन्हीं लोगों को योजना का लाभ मिल रहा है जो क्षेत्रीय कार्यलय या मुख्यालय के सम्पर्क मै रहते हैं कुछ  लोगौं को बार बार योजना का लाभ दिया जा रहा है।
-प्रगति आख्या में फल उत्पादन के आंकड़े बढ़ा चढ़ा कर दर्शाये गये हैं।
– योजन में क्रय किए जाने वाला बीज भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, कृषि शोध संस्थान, कृषि विश्वविद्यालय , केन्द्र या राज्य के बीज निगमों से ही क्रय करने के निर्देश है  विभाग द्वारा अधिक तर बीज बहुराष्ट्रीय व निजी कम्पनियों या दलालों के माध्यम से ही क्रय किए जाते हैं।
-मसाला उत्पादन योजना के अन्तर्गत अदरक हल्दी व लहसुन का निम्न स्तर का बीज वाहरी राज्यों से मंगा कर कृषकों को वितरित किया जाता है।
-राज्य को बीज उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने के प्रयास नहीं किये गये।
-समय पर आलू का प्रमाणित बीज उपलब्ध न होने के कारण इन क्षेत्रों में घट रहा है आलू उत्पादन।
-मानकों के अनुरूप नहीं लग रहे हैं पालीहाउस।
-प्रशिक्षण से आगे नहीं बढ़ पाई मशरूम उत्पादन की योजना।
योजना में मिलने वाला अनुदान, अधिकतर हरीद्वार देहरादून के पूंजी पतियों को ही आंवटित किया गया है।
-जैविक खेती के नाम पर, , विभाग ने केवल और केवल निम्न स्तर के बीज दवा , खाद व अन्य सामग्री उच्च दामों में क्रय कर किसानों को मुफ्त में वांट रहे है।
-डाइरेक्ट वेनेफिट ट्रांसफर (DBT) योजना पूरी तरह लागू नहीं  की जा रही । विभाग अपने स्तर से ही निम्न स्तर का सामना उच्च दामों पर क्रय कर कृषकों को वितरित करते हैं।
– उद्यान कार्ड-
योजनाओं में दिये जाने वाले निवेशों को उद्यान कार्ड में अंकित करने का प्राविधान है किन्तु अभी तक कृषकों को उद्यान कार्ड ही निर्गत नहीं हुये।
-नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक भारत सरकार  (कैग)
 की आडिट रिपोर्ट/ समाचार पत्रों/सोशल मीडिया में समय समय पर हार्टिकल्चर टैक्नोलॉजी मिशन योजना में अनियमिताओं की पुष्टि की है।
एक रिपोर्ट-
भारत सरकार द्वारा वित्त पोषित हार्टिक्लचर टैकनालौजी मिशन एक बहुत ही महत्वकांशी योजना है 2003/2004 से यह योजना राज्य मै चल रही है जिस पर विभाग द्वारा प्रति बर्ष 50 से 60 करोड़ का व्यय होना दर्शाया जाता है। इस योजना का मुख्य उद्देश्य औद्यानिक फसलौं का कल्सटर मैं उत्पादन कर स्थानीय कृषकों को आर्थिक रूप से सुद्रिण करना सव्जी बीजों का उत्पादन करवा कर आत्म निर्भर बनाना है। गलत नियोजन सही मूल्यांकन का न हो पाना योजना के कार्यान्वयन मैं पारदर्शिता न होने के कारण योजना का समुचित लाभ विशेष रूप से  गरीब कृषकों नही मिल पा रहा है।
गाइड लाइन 2003-2004के  पृष्ट संख्या 2 /5-(1)एवं गाइड लाइन2014 के पृष्टसंख्या12/4.9(।।।)के अनुसार योजना में कृषकों का चयन योजना का प्रतिपादन कार्यान्वयन और निगरानी जिला स्तर  पर जिला अधिकारी की अध्यक्षता मैं बनी जिला मिशन कमेटी द्वारा किए जाने का प्राविधान है। जिला मिशन कमेटी का गठन लाइन डिपार्टमेंट, उत्पादक समूह, विपणन वोर्ड , स्थानीय वैकं तथा स्वयंम सेवी संस्थाओं के प्रतिनिधियों को सदस्य के रूप में सम्मलित कर किया जाना चाहिये था किन्तु राज्य मै किसी भी जनपद मै जिला मिशन कमेटियों द्वारा कृषकों का चयन नहीं किया जाता उन्हीं लोगों को योजना का लाभ मिल रहा है जो क्षेत्रीय कार्यलय या मुख्यालय के सम्पर्क मै रहते हैं कुछ  लोगौं को बार बार योजना का लाभ दिया जा रहा है जबकि वास्तविक , गरीब व दूरस्थ क्षेत्र के कृषकों को इस योजना का लाभ नहीं मिल पा रहा है।
 भारत सरकार की 100 प्रतिशत सहायता पर चल रही इस योजना जिस पर प्रति बर्ष 50 से 60  करोड  का व्यय किया जा रहा है तथा अब तक 700 करोड से भी अधिक का व्यय हो चुका है ।
  प्रगति आख्या में फल उत्पादन के आंकड़े बढ़ा चढ़ा कर दर्शाये जा रहे हैं। बर्ष 2011- 12 के फल उत्पादन आंकड़ों के अनुसार उत्तराखंड में  फल उत्पादन के अंतर्गत क्षेत्र फल 200727 हैक्टेयर तथा उत्पादन 802124 Mt दर्शाया गया है जो हिमाचल के 372820 Mt उत्पादन से अधिक है।
बर्ष 2015-16 की प्रगति आख्या के अनुसार राज्य  नाशपाती,आड़ू,प्लम एवं खुवानी फल उत्पादन में देश में प्रथम स्थान पर।
जबकि पलायन आयोग की रीपोर्ट के अनुसार पौड़ी, टिहरी व अल्मोड़ा जनपदों में विभाग द्वारा दर्शाये गये आंकड़ों से हजारों हैक्टर कम है फल उत्पादन का क्षेत्रफल।
 पलायन आयोग की रिपोर्ट के अनुसार पौड़ी जनपद में बर्ष 2015-16 में फल उत्पादन के अंतर्गत क्षेत्र फल था 20781 हैक्टेयर जो बर्ष 2016-17 में घट कर रह गया मात्र 04047.22 हैक्टेयर किन्तु निदेशालय के फल उत्पादन के आंकड़ों के अनुसार बर्ष 2019-20 में भी पौड़ी जनपद में फल उत्पादन के अंतर्गत क्षेत्र फल बढ़ कर 21647 हैक्टेयर दर्शाया जा रहा है । यही हाल अन्य जनपदों के भी है।
खराब फल पौध व अनुचित तरीके से पैकिंग व कृषकों के खेत तक फल पौध ढुलान गलत तरीके से करने के कारण अधिकतर पौधे लगाने के प्रथम बर्ष में ही मर जाते हैं।
विभाग योजनाओं में लगाये गये पौधों के हिसाब से हर बर्ष पौध रोपण का क्षेत्रफल व फलौं का उत्पादन बढता रहता है जिससे दर्शाये गये आंकड़े सही नहीं है।
योजनाओं में फल पौधों की आपूर्ति राज्य की पंजीकृत नर्सरियों से होना दर्शाया जाता है किन्तु वास्तविकता यही है कि अधिक तर निम्न स्तर की शीतकालीन फलपौध हिमाचल तथा बर्षाकालीन फल पौध सहारनपुर या मलीहाबाद लखनऊ की व्यक्तिगत नर्सरियों से ही होती है।
पुराने बागों के जीर्णोद्धार में प्रत्येक जनपद में लाखों रुपए प्रति बर्ष व्य्य होना दर्शाया जाता है जिसमें बागों के जीर्णोद्धार के नाम पर मात्र निम्न स्तर की दवाइयां विभाग क्रय कर बागवानों को बांटना दर्शाता है जिन्हें कोई भी बागवान उपयोग में नहीं लाता।
उत्तरकाशी जनपद व राज्य के हिमाचल से लगे देहरादून व टेहरी जनपदों के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में तथा  पिथौरागढ़, चमोली जनपदों के  अधिक ऊंचाई वाले  क्षेत्रों के उद्यान पतियों के अपने प्रयास से सेब के नये बाग बिकसित हुये है जिनसे अच्छा उत्पादन हो रहा है।
हाइब्रिड (संकर) बीज के नाम पर होता है फर्जीवाड़ा।
 योजना में सब्जियां के हाइब्रिड बीज क्रय कर कृषकों को अनुदान या मुफ्त में बांटते हैं।
कृषकों को मिलने वाला अनुदान डीबीटी के माध्यम से कृषकों के खाते में जमा करने का प्रावधान है किन्तु विभाग स्वयं ही बीज क्रय कर कृषकों को बांटते हैं।
 बिना किसी राज्य स्तरीय या जनपद स्तरीय कमेटी या कृषि विश्वविद्यालय की संस्तुति के हाइब्रिड सब्जी बीज क्रय किए जाते हैं।.हाइब्रिड सब्जी बीजों की कोई दरें शासन या निदेशालय द्वारा निर्धारित नहीं की जाती  है ।आहरण वितरण अधिकारी अपने कमिशन के चक्कर में निम्न स्तर का महंगा से महंगा हाइब्रिड सब्जी बीज क्रय करते हैं।
इन बीजों के क्रय करने की शासन या निदेशालय से कोई वित्तीय व प्रशासनिक स्वीकृत नहीं ली जाती है। सब्जी की व्यवसायिक खेती करने वाले कोई भी कृषक विभाग द्वारा क्रय किए गए इन हाइब्रिड सब्जी बीजों को नहीं वोता।
सामान्य किस्म के अदरक को रियो-डी-जैनरो किस्म बता कर विगत कई बर्षो से अदरक बीज के नाम पर कृषकों के साथ छलावा किया जा रहा है।
विभाग द्वारा योजनाओं में गाइडलाइंस का अनुपालननहीं किया जा रहा है । योजनाओं में गुणवत्ता बनाए रखने हेतु सभी निवेश यथा बीज दवा खाद आदि भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, कृषि विश्वविद्यालय, कृषि शोध केन्द्रों, भारतीय एवं राज्य बीज निगमों से क्रय करने के निर्देश दिए गए हैं। किन्तु विभाग द्वारा ऐसा नहीं किया जाता।
 योजनाओं में भ्रष्टाचार रोकने तथा पारदर्शिता के उद्देश्य से कृषकों को मिलने वाला अनुदान डीबीटी के माध्यम से कृषकों के खाते में जमा करने का प्रावधान है। किन्तु विभाग स्वयं ही निम्न स्तर का अदरक उच्च दामों पर बीज के नाम पर क्रय कर अदरक उत्पादकों को वितरित करता है।
विभाग योजना में आवंटित धन से टेंडर प्रक्रिया दिखाकर निम्न स्तर का अदरक कभी फ्रुट फैड हल्द्वानी, कभी तराई बीज निगम कभी समितियों के विलौ पर दलालों के माध्यम से  क्रय करता आ रहा है ये फर्में मूल उत्पादक फर्में नहीं होती।
अदरक उत्पादकों को अदरक बीज उत्पादन में योजनाओं से लाभान्वित कर आत्मनिर्भर बनाने के प्रयास नहीं किए गए।
हतास व निराश पहाड़ी क्षेत्रों के आलू उत्पादक !
पहाडी क्षेत्रों में प्रमाणित आलू बीज उत्पादन की अपार संभावनाएं हैं । इस दिशा में  सार्थक प्रयास नहीं किए।
 समय पर आलू का प्रमाणित बीज उपलब्ध न होने के कारण इन क्षेत्रों में घट रहा है आलू उत्पादन।
जैविक खेती के नाम पर, आवंटित बजट जिससे कृषकों की आर्थिक मदद करनी थी,  केवल और केवल निम्न स्तर के बीज दवा , खाद व अन्य सामग्री उच्च दामों में क्रय कर किसानों को मुफ्त में वांट रहे है।
 विभाग द्वारा क्रय इन जैविक दवा खाद बीजों का प्रयोग कोई भी  कृषक नहीं करता कुछ समय तक ये निवेश सरकारी स्टोरों में पढ़ें रहते हैं बाद में सड़कों के किनारे या गाढ़ गधेरों में पढे मिलते हैं।
 प्रशिक्षण से आगे नहीं बढ़ पाई मशरूम उत्पादन की योजना।
स्पान (मशरूम बीज) व कम्पोस्ट न मिल पाने तथा विपणन की उचित व्यवस्था न होने से इन क्षेत्रों के उत्पादक हतास व निराश। अधिकतर मशरूम उत्पादक , स्पान (मशरूम बीज) खुम्ब अनुसंधान निदेशालय DMR सोलन,हिमाचल प्रदेश या स्वदेशी लैव आजादपुर मंडी नई दिल्ली से मंगाते हैं।
देहरादून, हरिद्वार आदि मैदानी इलाकों में व्यक्तिगत स्पान तथा कम्पोस्ट खाद बनाने की कई यूनिटें लगी है जिनसे अच्छा उत्पादन मिल रहा है।
पहाड़ी जनपदों के मशरूम उत्पादकों को योजनाओं का समुचित लाभ नहीं मिल पा रहा है, योजनाओं  में मिलने वाला अनुदान, अधिकतर हरीद्वार देहरादून के पूंजी पतियों को ही आंवटित किया गया है।
मशरूम प्रशिक्षण, कृषि विज्ञान केन्द्रों या कृषि विश्वविद्यालय में द्वारा दिए जाने का प्रावधान है किन्तु अधिकतर प्रशिक्षण विभाग द्वारा स्वयं सेवी संस्थाओं के माध्यम से देना दिखा कर खाना पूर्ति की जाती है।
मानकों के अनुरूप नहीं लग रहे हैं पालीहाउस।
 पौलीहाउस लगाने वाले कृषकों का कहना है कि- पौली हाउस हेतु चयन में कोई भी पारदर्शी प्रक्रिया नहीं अपनाई जाती।
 पौली हाउस के मानकों से कृषकों को अवगत नहीं कराया जा रहा है तथा पौलीहाउस निम्न स्तर के बनाये जा रहे हैं।
पौलीहाउस योजनानुसार जिस माप के बनने चाहिए नहीं बने हैं।
ग्राउटिंग ठीक से नहीं की गई है। पौलीथीन सीट निम्न स्तर की है तथा 200 माइक्रोन की जगह  मात्र 160-170 माइक्रोन की ही लगाई गई हैं।
वैन्टीलेटर पर जाली नहीं लगी है।पौलीहाउस का फ्रेम मानकों के अनुरूप नहीं है।
कहीं कहीं सैड नैट पौली हाउस के क्षेत्र फल के अनुसार नहीं दिया गया है।
सिन्टेक्स टैंक व ड्रिप इरिगेशन सिस्टम्स नहीं लगाया गया है।
पौली हाउस निर्माण से पहले ही कृषकों से English में लिखे स्टाम पेपर पर पौलीहाउस का निर्माण मानकों के अनुरूप होगया है का शपथ पत्र पर हस्ताक्षर करा दिए जाते हैं।
डाइरेक्ट वेनेफिट ट्रांसफर (DBT) योजना लागू करने में की जा रही है हीला हवाली
डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (प्रत्यक्ष लाभ अंतरण) योजना के माध्यम से सरकार द्वारा योजनाओं में प्रदान की जाने वाले सब्सिडी (अनुदान) का लाभ , चेक जारी करने, नकद भुगतान या सेवाओं अथवा वस्तुओं पर कीमत छूट प्रदान करने की बजाय सीधे लाभार्थी के खाते में स्थानांतरित यानी जमा  किया जाता है।
अन्य राज्यों उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश आदि में यह व्यवस्था बर्ष 2017 से ही लागू है।
राज्य में  बीज ,दवा खाद आदि निवेश आपूर्ति करने वाले एजेंटों ने निदेशालय एवं शासन में बैठे नौकरशाहों से मिल कर इस योजना को राज्य में अभी तक पूरी तरह लागू नहीं होने दिया।
सचिव कृषि एवं कृषक कल्याण उत्तराखंड शासन ने वित्तीय बर्ष 2021 – 22 से चयनित कृषकों को सभी योजनाओं में अनुदान में मिलने वाली देय धनराशि सीधे बैंक खाते में डालने के निर्देश कृषि एवं उद्यान निदेशकों को दिये है।
पूर्व में भी योजनाओं में अनुदान पर बीज दवा खाद आदि निवेश भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद कृषि शोध संस्थान कृषि विश्वविद्यालय या बीज निगमों से क्रय करने के स्पष्ट निर्देश थे।किन्तु विभाग निजि कम्पनियों से टैन्डर प्रक्रिया दिखाकर उच्च दामों में निम्न / घटिया स्तर का सामना क्रय करता आ रहा है।
सोशल मीडिया एवं समाचार पत्रों में भी घटिया एवं निम्न स्तर के सामान आपूर्ति की शिकायतें समय समय पर छपती आ रही है।
नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक भारत सरकार (कैग) ने भी अपनी आडिट रिपोर्ट में हार्टिकल्चर टैक्नोलॉजी मिशन  योजना में भारी अनियमितताओं की पुष्टि की है।
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 मीडिया /सोशल मीडिया  की गई टिप्पणियां –
जन संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष श्री रघुनाथ सिंह नेगी जी की रिपोर्ट-
8 January 2021
किसानों को विभागीय लूट से बचाने को ऑनलाइन भुगतान करे सरकार-  मोर्चा
# प्रतिवर्ष करोड़ों रुपए  की होती है सब्जियों व  फूल के बीज की खरीद।
#खरीद एवं वितरण में होता है भारी घोटाला |
#20 हजार से 1 लाख रुपए प्रति किलोग्राम तक है सब्जियों के बीज की कीमत |
#किसानों को घटिया क्वालिटी का बीज थमा कर की जाती है खानापूर्ति |
#किसान दिन-प्रतिदिन हो रहा गरीब, अधिकारी रातों-रात रात बन रहे धन्ना सेठ |
देहरादून -जन संघर्ष मोर्चा अध्यक्ष एवं जीएमवीएन के पूर्व उपाध्यक्ष रघुनाथ सिंह नेगी ने कहा कि उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग द्वारा प्रतिवर्ष करोड़ों रुपए मूल्य के सब्जियों, फूलों के बीज की खरीद की जाती है तथा विभाग द्वारा इन बीजों को प्रदेश के किसानों को निशुल्क वितरित किया जाता है | अगर खरीदे गए बीज की कीमत की बात की जाए तो टमाटर 45-90 हजार प्रति किलोग्राम, फूलगोभी 40-50 हजार, शिमला मिर्च 80- 90 हजार, बंद गोभी 20- 30 हजार, गेंदा फूल बीज 6-20 हजार, ब्रोकली 50-60 हजार, खीरा 40-50 हजार ,हाइब्रिड गेंदा फूल बीज 10- 25 हजार प्रति किलोग्राम तथा अदरक 5-10 हजार प्रति कुंतल की दर से खरीदा जाता है |   नेगी ने कहा कि विभाग द्वारा कागजों में खरीद उच्च क्वालिटी की दर्शाई जाती है तथा इसके विपरीत खरीद बिल्कुल घटिया क्वालिटी की होती है, जोकि बामुश्किल 20-30 फ़ीसदी ही धरातल पर उगती है | इसके साथ साथ वितरण में भी भारी अनियमितता बरती जाती है | अन्य खरीद के मामले में भी विभाग ने बड़े-बड़े कारनामे कर रखें हैं |      इस खरीद एवं वितरण के घोटाले की तुलना कर्मकार कल्याण बोर्ड से की जा सकती है |
मोर्चा सरकार से मांग करता है कि किसानों को बीज के बदले ऑनलाइन भुगतान की व्यवस्था करे,जिससे ये लूट-खसोट बंद हो तथा किसानों को शत-प्रतिशत लाभ मिल सके |
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श्री विजेन्द्र सिंह रावत बरिष्ठ पत्रकार –
उत्तराखंड बागवानी विभाग का कमीशन करिश्मा, घटिया टमाटर के बीज से किसानों की लाखों की मेहनत पर पानी फेरा…!
इसीलिए प्रदेश का कोई भी बागवान अनुदान के बावजूद बागवानी विभाग से नहीं लेता, बीज, खाद व कीटनाशक।
मोटा कमीशन लेकर घटिया कम्पनियों से होती है, करोड़ों की खरीद।
यों लुटता है जनता का पैसा और चौपट होती हैं फसलें।
हिमाचल प्रदेश में सिर्फ नामी और प्रतिष्ठित कंपनियों से होती है खरीद।
लगता है इस सरकारी महा घोटाले के खिलाफ हाईकोर्ट की शरण में जाना पड़ेगा…….और जिम्मेदार अधिकारियों पर ठोका जायेगा किसानों की बर्बादी का करोड़ों का मुकदमा…!
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श्री दिनेश जोशी रुद्रप्रयाग-
तराई क्षेत्र मै जो उधोग कृषियंत्र,दवाईयों रसायनिक के खुले हैं उनकी सारी बिक्री उधान एव कृषि बिभाग को ही होती है, दवाईयों का सैम्पल फर्जी होता है, सैम्पल भी विभाग की लैव मै होता, जिसका मुखिया भी वही होते हैं, जो अनुदान भारत सरकार या प्रदेश सरकार देती है उसका 50% तो दवाई, बीज ,घटिया रसायन मै  ब्यय होता है, कमीशन की बंदर वांट देखो, टैण्डर निदेशालय स्तर पर 20% कमीशन, क्रय जिला स्तर पर 20 से 25% मुख्य उधान या मुख्य कृषि अधिकारी स्तर पर बंदर वाट कर शेष 60% मै 40% फैक्ट्री मालिक का और कास्तकारों को मिला 20%, यह हाल है 2022 तक मोदी और उत्तराखण्ड मै त्रिवैन्द्रम जी की घोषणा थी किसानो की आय दुगनी करना, परन्तु आजकल दोनो  जुमलेबाज कही नही कह रहे कि 2022 तक दुगनी आय, हा यदि सीबीआई जांच हो तो  उधान और कृषि विभाग के निदेशालय, जनपद लेविल के अधिकारियों की आय अवश्य दुगनी 2022 से पहले मिल जायेगी, अव रहा क्लस्टर पर कृषि यंत्र की तो 10% किसान समुह और 90% अनुदान, फर्जी  समुह वना कर एक लाख 10% का एक से जमा करवा कर वाकी 8 लाख का वारा न्यारा दोनो विभाग कर रहे हैं, अरे मूर्ख अन्धभक्तो जव पलायन आयोग की रिपोर्ट वोल रही है कि पौडी, चमोली, रुद्रप्रयाग, टिहरी, उत्तरकाशी एव कुमायू मै पलायन हुआ, पहाड मै 60% खेती, बाग बंजर है तो 100% अनुदान किसको दिया, यदि त्रिवैन्द्रम सरकार जीरो टालरेन्स की बात करती है तो समाजकल्याण विभाग की तरह कृषि और उधान विभाग की जांच सीबीआई या किसी  उच्च न्यायालय के न्यायधीस अथवा समाजकल्याण की तरह एस आईटी वना कर तो लाखो करोड का घोटाला सामने आयेगा तराई की फर्मे एव अधिकारी भागते फिरेगे।
श्री विजेन्द्र सिंह रावत वरिष्ठ पत्रकार (विकास का हम राही)।
14 Desember 2021
बागवानी और कृषि विभाग में देहरादून से लिखी जा रही है करोड़ों के भ्रष्टाचार सबसे घृणित इबादत!
विभाग के करोड़ों के घोटालों के कुछ छोटे कारनामें!
उत्तराखंड का यमुना घाटी में बागवानी का अग्रणी गांव नैणी। किसान ने बागवानी विभाग से लिया सबसे महंगी बिकने वाली पीली शिमला मिर्च का बीज 10 ग्राम बीज की कीमत थी नौ हजार रूपये, बोया तो निकली अचार वाली सस्ती मिर्चें!
– मैंने बागवानी विभाग द्वारा कश्मीर से मंगवाए अखरोट के पेड़ खरीदे, कीमत थी, साढ़े चार सौ रुपए पेड़, सालभर में फल देने का वादा था, पर सात साल बाद भी फल नहीं!
– कोबिट काल में ड्रिप सिंचाई योजना के सिस्टम बांटे गये, कम्पनी को सिस्टम खेतों में स्टाल करके देना था, सौ से ज्यादा सिस्टम सिर्फ  मेरे एक गांव में लगे जिसमें सिर्फ लोगों को पाईप पकड़ा दिए गये, खेतों में फर्जी फोटो खींचे और माल अंदर। लोगों ने भी विरोध इसलिए नहीं किया कि चलो पाइप के टुकड़े तो मिले, फ्री का चंदन घिसे रघुनंदन!
जब एक गांव में इतना घपला तो पूरे प्रदेश में कितना हुआ होगा?
– अभी अभी रेनवाटर हार्वेस्टिंग के लिए वाटर टैंक के लिए बड़े स्तर पर त्रिपाल और बांस के कुछ टुकड़े बांटे गये, मैने कृषि अधिकारी के कहा एक यूनिट लगाकर दिखाओ, इसमें पानी कैसे रूकेगा? बोला साहब यह सब ऊपर से आया है, हमें तो इसको बांटना है। किसी गांव में एक भी यूनिट स्टाल नहीं हुआ।पूरे पहाड़ में कितने बंटे होंगे, लोग उन त्रिपालों में खलियान में बस अनाज सुखा रहे हैं।
– इस समय बागवानी विभाग में अनुदान के टनों मट्टर का बीज खरीदा गया कोई भी प्रगतिशील किसान 50 रुपए किलो का यह बीज खरीदने को तैयार नहीं बल्कि कास्तकार बाजार से विदेशी कम्पनियों का 250 रुपए किलो वाला बीज खरीद रहे हैं। क्योंकि धोखा खाए किसानों को सरकारी बीज पर विश्वास नहीं रहा।
– इस अखबार की खबर देखिए सरकारी टमाटर के बीज बोने से साल भर की मेहनत के बाद गांव वालों के खेत बंजर रहे।
– करोड़ों की इन खरीदों में टेंडर के नाम पर घटिया सामान खरीद कर करोड़ों का घोटाला देहरादून के एसी कमरों में हो रहा।
– भारी अनुदान के बावजूद कोई प्रगतिशील किसान सरकारी सामान नहीं लेता और जो हम जैसे लोग लेते हैं मारे जाते हैं।
– इन दोनों विभागों में खरीद की सीबीआई जांच हो जाए तो जनता के पैसे की बंदरबांट का बड़ा कांड सामने आ सकता है।
– अगर ये जनता के लुटेरे नहीं संभले तो सारे तर्क अदालत के सामने रखकर सीबीआई जांच की मांग अदालत के निर्देश पर करवाने को मजबूर हो जाएंगे। पहाड़ का शोषण अब सीमा के बाहर हो चला है।
– अगर आपके साथ भी इन विभागों से किसी तरह की ठगी हुई तो कमेंट में जरूर लिखें और पोस्ट को शेयर करें ताकि जनता का पैसा लूटने वाले लुटेरे जनता के सामने बेनकाब हो सकें।
प्रधानमंत्री जी को
 शिकायती पत्र-
श्री नरेन्द्र मेहरा जैविक कृषक एवं राज्य ब्यूरो प्रमुख उत्तराखंड एग्रीकल्चर टुडे समूह, गौलापार हल्द्वानी नैनीताल ने माननीय प्रधानमंत्री जी को राज्य में विभागों द्वारा जैविक खेती के क्रियान्वयन के संबंध में शिकायती पत्र लिखा है –
आदरणीय प्रधानमंत्री जी ,
में जैविक प्रदेश उत्तराखंड की जैविक खेती के संबंध में कुछ समस्या एवं सुझाव आपके सम्मुख रखना चाहता हूं। उत्तराखंड में जैविक खेती जादुई आंकड़ौं के बल पर चल रही है। आंकड़ों के जादूगर केन्द्र सरकार की आंखों में धूल झोंक रहे हैं। बड़े कार्यक्रमों में अपनी पीठ थपथपवा रहे हैं। ईमानदारी से देखा जाए तो जैविक खेती की हकीकत और किसान की हालात किसान के खेत खलिहान पर पहुंच कर ही देखी जा सकती है। जरूरत है केन्द्र की एक गोपनीय जांच कमेटी सिर्फ किसानों के बीच जाकर जांच करे तो जैविक खेती की वास्तविकता सामने आजायेगी।
टेहरी जनपद, आगाराखाल के श्री सुरेन्द्र सिंह कन्डारी जी का खराब अदरक बीज के सम्बन्ध में मुख्यमंत्री जी से अनुरोध- दिनांक 18 अगस्त 2021
आदरणीय #पुष्कर सिंह धामी जी ,माननीय मुख्यमंत्री उत्तराखंड सरकार… महोदय निवेदन है कि आगरा खाल क्षेत्र अदरक उत्पादन के लिए अपना विशेष महत्व रखता है   !विगत कई वर्षों से कृषि विभाग द्वारा ग्रामीणों को उपलब्ध कराए जाने वाला अदरक बीच बेहद घटिया गुणवत्ता का है कृषि विभाग अदरक बीज माफियाओं के चंगुल में उलझा हुआ है कृपया संज्ञान लें।

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