उत्तराखंड

योजनाओं में मिलने वाला अनुदान सीधे  कृषकों के खाते में डालने पर की जा रही है हीला-हवाली।

डा० राजेंद्र कुकसाल।
मो० – 9456590999
सचिव कृषि एवं कृषक कल्याण उत्तराखंड शासन ने वित्तीय बर्ष 2021 – 22 से चयनित कृषकों को सभी योजनाओं में अनुदान में मिलने वाली देय धनराशि सीधे बैंक खाते में डालने के निर्देश कृषि एवं उद्यान निदेशकों को दिये है।
अन्य राज्यों उत्तर प्रदेश हिमाचल प्रदेश आदि में यह व्यवस्था बर्ष 2017 से ही लागू है।
पूर्व में भी योजनाओं में अनुदान पर बीज दवा खाद आदि निवेश भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद कृषि शोध संस्थान कृषि विश्वविद्यालय या बीज निगमों से क्रय करने के स्पष्ट निर्देश थे।
किन्तु विभाग निजि कम्पनियों से टैन्डर प्रक्रिया दिखाकर उच्च दामों में निम्न / घटिया स्तर का सामना क्रय करता आ रहा है।
सोशल मीडिया एवं समाचार पत्रों में भी घटिया एवं निम्न स्तर के सामान आपूर्ति की शिकायतें समय समय पर छपती आ रही है।
एक रिपोर्ट –
सचिव कृषि एवं कृषक कल्याण उत्तराखंड शासन के अनु भाग -2 देहरादून के पत्रांक 535 / Xlll-2/ 2021-5(28)/2014 दिनांक 17 मई 2021के अनुसार कृषि एवं कृषक कल्याण विभाग ( कृषि एवं उद्यान विभाग) द्वारा   संचालित समस्त योजनाओं के अंतर्गत समस्त निवेश inputs जो कृषकों को अनुदान पर देय हैं का अनुदान इसी वित्तीय वर्ष 2021 – 2022 से ही प्रदेश के पंजीकृत/चयनित कृषकों को डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (डी०बी०टी०) के माध्यम से कृषकों को बैंक खाते में सीधे आर०टी०जी०एस०के द्वारा  स्थानान्तरित किये जानें के निर्देश कृषि एवं उद्यान निदेशक को हुए हैं।
कृषि एवं उद्यान विभाग की योजनाओं में पारदर्शी व्यवस्था स्थापित करने के उद्देश्य से देर से ही सही किन्तु राज्य सरकार का एक अच्छा फैसला है ।इससे कृषकों को कितना लाभ मिलता है यह आने वाला समय ही बताएगा।
क्या है डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (डी० बी० टी०) –
डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (प्रत्यक्ष लाभ अंतरण) डी० बी० टी०,  केंद्र सरकार द्वारा  शुरू की गई इस योजना के माध्यम से सरकार द्वारा योजनाओं में प्रदान की जाने वाले सब्सिडी (अनुदान) का लाभ , चेक जारी करने, नकद भुगतान या सेवाओं अथवा वस्तुओं पर कीमत छूट प्रदान करने की बजाय सीधे लाभार्थी के खाते में स्थानांतरित यानी जमा  किया जाता है। इसके जरिए लाभार्थियों और जरूरतमंदों के बैंक खातों में सीधे रुपए डाले जाते हैं।
कुल मिलाकर भारत सरकार का एक ऐसा पेमेंट सिस्टम जिसके तहत लोगों के बैंक खातों में सीधे सब्सिडी डाली जाती है।
डी० बी० टी० के माध्यम से योजना का सीधा लाभ योजना से जुड़े लाभार्थी को होता है। DBT योजना का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसमें किसी तरह के धोखाधड़ी की गुंजाईश नहीं रहती है। क्योंकि यहां लाभार्थी के खाते में सरकार सीधे तौर पर पैसे ट्रांसफर करती है । इस प्रकार सरकारी योजना का पूरा फायदा लाभा​र्थी को मिल जाता है। डी० बी० टी ० से जहां एक तरफ नकद राशि सीधे लाभार्थी के खाते में जाती है वहीं गड़बड़ियों पर अंकुश लगता है और दक्षता बढ़ती है।
माननीय प्रधानमंत्री जी का संकल्प है कि किसानों को योजनाओं में मिलने वाला अनुदान सीधे कृषकों के खाते में जमा हो इसी निमित्त
भारत सरकार के कृषि एवं कृषक कल्याण मंत्रालय ने अपने पत्रांक कृषि भवन,नई दिल्ली दिनांक फरबरी,28 2017 के द्वारा कृषि विभाग की योजनाओं में कृषकों को मिलने वाला अनुदान डी वी टी के अन्तर्गत सीधे कृषकों के खाते में डालने के निर्देश सभी राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों के कृषि उत्पादन आयुक्त, मुख्य सचिव, सचिव एवं निदेशक कृषि को किये गये।
उत्तरप्रदेश हिमाचल आदि सभी राज्यों में बर्ष के  2017 से ही कृषकों को योजनाओं में मिलने वाला अनुदान  डी बी टी के माध्यम से सीधे कृषकों के खाते में जा रहा है। इन राज्यों में पंजीकृत/चयनित कृषक  भारत सरकार/राज्य सरकार के संस्थानो /पंजीकृत बीज विक्रेताओं जो कृषि विभाग से पंजीकृत हों से स्वेच्छानुसार एम आर पी से अनधिक दरों पर नगद मूल्य पर क्रय कर क्रय रसीद सम्बंधित विभाग से भुगतान प्राप्त करने हेतु उपलब्ध कराई जाती है सत्यापन के बाद धनराशि कृषकों के बैंक खातों में विभाग द्वारा डाल दी जाती है।
*उत्तराखंड में  बीज ,दवा खाद आदि निवेश आपूर्ति करने वाले एजेंटों ने निदेशालय एवं शासन में बैठे नौकरशाहों से मिल कर इस योजना को राज्य में अभी तक लागू नहीं होने दिया*।
कई पत्र पत्रिकाओं ने अपने पोर्टल एवं  पत्रिका में इस मुद्दे को  प्रमुखता से   प्रकाशित किया था साथ ही कई जागरूक नागरिकों द्वारा भी समय समय पर इस बिषय की मीडिया जगत में चर्चाएं होती रही। जिसका संज्ञान लेते हुए सरकार को शासनादेश करना पड़ा।
उत्तराखंड राज्य में क्या कृषकों को योजनाओं में मिलने वाला अनुदान पारदर्शी ढंग से डी बी टी के माध्यम से उसके खाते में जमा होगा बड़ा प्रश्न चिन्ह है ?
*पूर्व में भी योजनाओं में पारदर्शिता लाने हेतु कई शासनादेश भारत सरकार एवं राज्य सरकार द्वारा समय-समय पर निर्गत किए गए किन्तु राज्य के नौकरशाहों ने कृषकों के हित में किए गए इन शासनादेशों को अपने हित में करने के ही प्रयास किऐ*।
 राज्य बनने के बाद सहकारिता को बढ़ावा देने व सरकारी खरीद दारी में पारदर्शिता आये इस उद्देश्य से राज्य सरकार ने विभागीय खरीद सरकारी संस्थाओं /कोपरेटिब के माध्यम से करने के निर्देश दिए । उद्यान विभाग ने योजनाओं में निवेशौ की खरीद फ्रुट फैड हल्द्वानी, नैफेड रुद्रपुर आदि के माध्यम से करना शुरू किया।  सारे निवेश दलालों के माध्यम से किया जाता था केवल बिल इन संस्थाओं के होते थे संस्थाये इनसे कमिशन लेते थे। जब यह बात सार्वजनिक होने लगी तथा शिकायतें हुईं फिर तराई बीज निगम से खरीद के लिए शासनादेश हुये यहां भी वही हुआ पैड तराई बीज निगम का तथा खरीद दलालों के माध्यम से।
भारत सरकार की योजनाओं में सारे निवेश भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, केन्द्र तथा राज्य के बीज निगम, केन्द्र तथा राज्य के कृषि अनुसंधान संस्थान एवं विश्व विद्यालय से खरीद के आदेश है।  उत्तराखंड राज्य में सारे निवेश निजी संस्थाओं से क्रय किए जाते हैं शिकायतें होने पर दलालों ने निदेशालय तथा शासन में बैठे नौकरशाहों से मिल कर प्रमुख सचिव कृषि से शासनादेश संख्या /xv1-1/13/5(16)/2013 उद्यान एवं रेशम अनुभाग -1 देहरादून दिनांक 26 जुलाई 2013 को आदेश निर्गत करवाये कि मांग एवं उपलब्धता के अन्तर की पूर्ति हेतु निविदा प्रक्रिया के माध्यम से किऐ जाने निर्देश करवा दिए जिसके आधार पर सभी निवेश भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ,कृषि शोध संस्थान ,कृषि विश्वविद्यालय ,भारतीय कृषि बीज निगम आदि सरकारी संस्थाओं से न खरीद कर  टैन्डर प्रक्रिया से निजि संस्थाओं के दलालों के माध्यम से खरीदे जाते हैं।
*इसी प्रकार एक हजार पांच सौ करोड़ रुपए की परम्परागत कृषि विकास योजना  के क्रियान्वयन में नहीं हो रहा भारत सरकार की गाइडलाइंस तथा स्वीकृत कार्ययोजना का अनुपालन*।
-योजना का उद्देश्य  लघु एवं सीमांत क्षेणी के पर्वतीय एवं बर्षा पर आधारित क्षेत्र के कृषकों की आर्थिक मदद कर स्थानीय परम्परागत फसलों को जैविक मोड़ में ला कर  कृषकों की आय बढ़ाना है* ।
-किसानों को स्वयंम जैविक बीज,  खाद व कीट- व्याधि नाशक दवाओं के उत्पादन हेतु प्रेरित करने के प्रयास नहीं किये गये और न ही उन्हें इस कार्य हेतु प्रोत्साहन धनराशि उपलब्ध कराई गई*।
-कृषि/उद्यान विभाग व अन्य सभी कार्य दाई संस्थायें किसानों को खाद ,बीज व अन्य निवेश पर दी जाने वाली सब्सिडी को डायरेक्ट टू बैनिफिट ट्रांसफर (डीबीटी) से किसानों को न देकर
 निजी कम्पनियों से टेन्डर प्रक्रिया दिखा कर निम्न स्तर के निवेश  उच्च कीमतों में क्रय कर किसानों को वांट रहे हैं*।
यदि विभाग को/शासन को सीधे कोई सुझाव/शिकायत भेजी जाती है तो कोई जवाब नहीं मिलता। माननीय प्रधानमंत्री जी /माननीय मुख्यमंत्री जी के समाधान पोर्टल पर सूझाव शिकायत अपलोड करने पर शिकायत शासन से संबंधित विभाग के निदेशक को जाती है वहां से जिला स्तरीय अधिकारियों को वहां से फील्ड स्टाफ को अन्त में जबाव मिलता है कि किसी भी कृषक द्वारा  कार्यालय में कोई लिखित शिकायत दर्ज नहीं है सभी योजनाएं पारदर्शी ठंग से चल रही है।
राज्य में उच्च स्तर पर योजनाओं का मूल्यांकन सिर्फ इस आधार पर होता है कि विभाग को कितना बजट आवंटित हुआ और अब तक कितना खर्च हुआ।
 *राज्य में कोई ऐसा सक्षम और ईमानदार सिस्टम नहीं दिखाई देता जो धरातल पर योजनाओं का ईमानदारी से मूल्यांकन कर   योजनाओं में सुधार ला सके*।
योजनाओं का लाभ लेने हेतु कृषकों  को जागरूक होना होगा तथा अपने हक़ की लड़ाई लड़नी होगी वरन् इस राज्य के कृषक ऐसे ही मृगतृष्णा में जीते रहेंगे।
लेखक- कृषि एवं उद्यान विशेषज्ञ।
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*योजनाओं में मिलने वाले अनुदान का विभाग कैसे दुर्पयोग कर रहे हैं , पढिए मीडिया /सोसल मीडिया  में कृषि एवं उद्यान विभाग पर की गई टिप्पणियां* –
जन संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष श्री रघुनाथ सिंह नेगी जी की रिपोर्ट-
8 January 2021
किसानों को विभागीय लूट से बचाने को ऑनलाइन भुगतान करे सरकार-  मोर्चा
# प्रतिवर्ष करोड़ों रुपए  की होती है सब्जियों व  फूल के बीज की खरीद।
#खरीद एवं वितरण में होता है भारी घोटाला |
#20 हजार से 1 लाख रुपए प्रति किलोग्राम तक है सब्जियों के बीज की कीमत |
#किसानों को घटिया क्वालिटी का बीज थमा कर की जाती है खानापूर्ति |
#किसान दिन-प्रतिदिन हो रहा गरीब, अधिकारी रातों-रात रात बन रहे धन्ना सेठ |
देहरादून -जन संघर्ष मोर्चा अध्यक्ष एवं जीएमवीएन के पूर्व उपाध्यक्ष रघुनाथ सिंह नेगी ने कहा कि उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग द्वारा प्रतिवर्ष करोड़ों रुपए मूल्य के सब्जियों, फूलों के बीज की खरीद की जाती है तथा विभाग द्वारा इन बीजों को प्रदेश के किसानों को निशुल्क वितरित किया जाता है | अगर खरीदे गए बीज की कीमत की बात की जाए तो टमाटर 45-90 हजार प्रति किलोग्राम, फूलगोभी 40-50 हजार, शिमला मिर्च 80- 90 हजार, बंद गोभी 20- 30 हजार, गेंदा फूल बीज 6-20 हजार, ब्रोकली 50-60 हजार, खीरा 40-50 हजार ,हाइब्रिड गेंदा फूल बीज 10- 25 हजार प्रति किलोग्राम तथा अदरक 5-10 हजार प्रति कुंतल की दर से खरीदा जाता है |   नेगी ने कहा कि विभाग द्वारा कागजों में खरीद उच्च क्वालिटी की दर्शाई जाती है तथा इसके विपरीत खरीद बिल्कुल घटिया क्वालिटी की होती है, जोकि बामुश्किल 20-30 फ़ीसदी ही धरातल पर उगती है | इसके साथ साथ वितरण में भी भारी अनियमितता बरती जाती है | अन्य खरीद के मामले में भी विभाग ने बड़े-बड़े कारनामे कर रखें हैं |      इस खरीद एवं वितरण के घोटाले की तुलना कर्मकार कल्याण बोर्ड से की जा सकती है |
मोर्चा सरकार से मांग करता है कि किसानों को बीज के बदले ऑनलाइन भुगतान की व्यवस्था करे,जिससे ये लूट-खसोट बंद हो तथा किसानों को शत-प्रतिशत लाभ मिल सके |
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श्री विजेन्द्र सिंह रावत बरिष्ठ पत्रकार –
उत्तराखंड बागवानी विभाग का कमीशन करिश्मा, घटिया टमाटर के बीज से किसानों की लाखों की मेहनत पर पानी फेरा…!
इसीलिए प्रदेश का कोई भी बागवान अनुदान के बावजूद बागवानी विभाग से नहीं लेता, बीज, खाद व कीटनाशक।
मोटा कमीशन लेकर घटिया कम्पनियों से होती है, करोड़ों की खरीद।
यों लुटता है जनता का पैसा और चौपट होती हैं फसलें।
हिमाचल प्रदेश में सिर्फ नामी और प्रतिष्ठित कंपनियों से होती है खरीद।
लगता है इस सरकारी महा घोटाले के खिलाफ हाईकोर्ट की शरण में जाना पड़ेगा…….और जिम्मेदार अधिकारियों पर ठोका जायेगा किसानों की बर्बादी का करोड़ों का मुकदमा…!
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श्री नीरज उत्तराखण्डी पत्रकार-
20अगस्त 2020 त्यूनी  देहरादून ।
बोलती तस्वीर!
—खराब निकले टमाटर के बीज ने काश्तकारों की मेहनत और उम्मीदों पर पानी फेरा पानी
आसमान  से छूटे खजूर पर अटके ।जी हां ऐसी ही कुछ हालत है टमाटर की फसल खराब हुए किसानों की। उद्यान विभाग की लापरवाही और गैरजिम्मेदारी किसानों  की आजीविका पर भारी पड़  रही है। और  उद्यान विभाग  द्वारा काश्तकारों को निम्न गुणवत्ता का बीज दिये जाने का खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ रहा है।
किसानों ने उद्यान अधिकारी को  ज्ञापन भेजकर उचित मुआवजे की मांग की है ।
जनपद देहरादून के पर्वतीय जनजाति क्षेत्र जौनसार बावर की तहसील त्यूनी के ग्राम पंचायत कुल्हा के विऊलोग तथा मुन्धोल ग्राम पंचायत के चांदनी वस्ती खेड़ा में  एक दर्जन  से अधिक किसानों  ने टमाटर की नगदी फसल की खेती इस उम्मीद  से की थी कि उनकी आर्थिक मजबूत होगी और घर का खर्चा भी चलेगा साथ ही दवा खाद का व्यय भी वसूल होगा । लेकिन  उन्हें  क्या  पता था की उद्यान विभाग ने जो  टमाटर  का  कथित  जैविक बीज उन्हें  उपलब्ध  करवाया है वह निम्न गुणवत्ता का होगा और उनकी मेहनत और उम्मीद पर पानी फेर देगा।
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श्री विजेन्द्र सिंह रावत वरिष्ठ पत्रकार (विकास का हम राही)।
14 Desember 2021
बागवानी और कृषि विभाग में देहरादून से लिखी जा रही है करोड़ों के भ्रष्टाचार सबसे घृणित इबादत!
विभाग के करोड़ों के घोटालों के कुछ छोटे कारनामें!
उत्तराखंड का यमुना घाटी में बागवानी का अग्रणी गांव नैणी। किसान ने बागवानी विभाग से लिया सबसे महंगी बिकने वाली पीली शिमला मिर्च का बीज 10 ग्राम बीज की कीमत थी नौ हजार रूपये, बोया तो निकली अचार वाली सस्ती मिर्चें!
– मैंने बागवानी विभाग द्वारा कश्मीर से मंगवाए अखरोट के पेड़ खरीदे, कीमत थी, साढ़े चार सौ रुपए पेड़, सालभर में फल देने का वादा था, पर सात साल बाद भी फल नहीं!
– कोबिट काल में ड्रिप सिंचाई योजना के सिस्टम बांटे गये, कम्पनी को सिस्टम खेतों में स्टाल करके देना था, सौ से ज्यादा सिस्टम सिर्फ  मेरे एक गांव में लगे जिसमें सिर्फ लोगों को पाईप पकड़ा दिए गये, खेतों में फर्जी फोटो खींचे और माल अंदर। लोगों ने भी विरोध इसलिए नहीं किया कि चलो पाइप के टुकड़े तो मिले, फ्री का चंदन घिसे रघुनंदन!
जब एक गांव में इतना घपला तो पूरे प्रदेश में कितना हुआ होगा?
– अभी अभी रेनवाटर हार्वेस्टिंग के लिए वाटर टैंक के लिए बड़े स्तर पर त्रिपाल और बांस के कुछ टुकड़े बांटे गये, मैने कृषि अधिकारी के कहा एक यूनिट लगाकर दिखाओ, इसमें पानी कैसे रूकेगा? बोला साहब यह सब ऊपर से आया है, हमें तो इसको बांटना है। किसी गांव में एक भी यूनिट स्टाल नहीं हुआ।पूरे पहाड़ में कितने बंटे होंगे, लोग उन त्रिपालों में खलियान में बस अनाज सुखा रहे हैं।
– इस समय बागवानी विभाग में अनुदान के टनों मट्टर का बीज खरीदा गया कोई भी प्रगतिशील किसान 50 रुपए किलो का यह बीज खरीदने को तैयार नहीं बल्कि कास्तकार बाजार से विदेशी कम्पनियों का 250 रुपए किलो वाला बीज खरीद रहे हैं। क्योंकि धोखा खाए किसानों को सरकारी बीज पर विश्वास नहीं रहा।
– इस अखबार की खबर देखिए सरकारी टमाटर के बीज बोने से साल भर की मेहनत के बाद गांव वालों के खेत बंजर रहे।
– करोड़ों की इन खरीदों में टेंडर के नाम पर घटिया सामान खरीद कर करोड़ों का घोटाला देहरादून के एसी कमरों में हो रहा।
– भारी अनुदान के बावजूद कोई प्रगतिशील किसान सरकारी सामान नहीं लेता और जो हम जैसे लोग लेते हैं मारे जाते हैं।
– इन दोनों विभागों में खरीद की सीबीआई जांच हो जाए तो जनता के पैसे की बंदरबांट का बड़ा कांड सामने आ सकता है।
– अगर ये जनता के लुटेरे नहीं संभले तो सारे तर्क अदालत के सामने रखकर सीबीआई जांच की मांग अदालत के निर्देश पर करवाने को मजबूर हो जाएंगे। पहाड़ का शोषण अब सीमा के बाहर हो चला है।
– अगर आपके साथ भी इन विभागों से किसी तरह की ठगी हुई तो कमेंट में जरूर लिखें और पोस्ट को शेयर करें ताकि जनता का पैसा लूटने वाले लुटेरे जनता के सामने बेनकाब हो सकें।
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श्री दिनेश जोशी रुद्रप्रयाग-
तराई क्षेत्र मै जो उधोग कृषि यंत्र,दवाईयों,रसायनिक के खुले हैं उनकी सारी बिक्री उधान एव कृषि बिभाग को ही होती है, दवाईयों का सैम्पल फर्जी होता है, सैम्पल भी विभाग की लैव मै होता, जिसका मुखिया भी वही होते हैं, जो अनुदान भारत सरकार या प्रदेश सरकार देती है उसका 50% तो दवाई, बीज ,घटिया रसायन मै  ब्यय होता है, कमीशन की बंदर वांट देखो, टैण्डर निदेशालय स्तर पर 20% कमीशन, क्रय जिला स्तर पर 20 से 25% मुख्य उधान या मुख्य कृषि अधिकारी स्तर पर बंदर वाट कर शेष 60% मै 40% फैक्ट्री मालिक का और कास्तकारों को मिला 20%, यह हाल है 2022 तक मोदी और उत्तराखण्ड मै त्रिवैन्द्रम जी की घोषणा थी किसानो की आय दुगनी करना, परन्तु आजकल दोनो  जुमलेबाज कही नही कह रहे कि 2022 तक दुगनी आय, हा यदि सीबीआई जांच हो तो  उधान और कृषि विभाग के निदेशालय, जनपद लेविल के अधिकारियों की आय अवश्य दुगनी 2022 से पहले मिल जायेगी, अव रहा क्लस्टर पर कृषि यंत्र की तो 10% किसान समुह और 90% अनुदान, फर्जी  समुह वना कर एक लाख 10% का एक से जमा करवा कर वाकी 8 लाख का वारा न्यारा दोनो विभाग कर रहे हैं, अरे मूर्ख अन्धभक्तो जव पलायन आयोग की रिपोर्ट वोल रही है कि पौडी, चमोली, रुद्रप्रयाग, टिहरी, उत्तरकाशी एव कुमायू मै पलायन हुआ, पहाड मै 60% खेती, बाग बंजर है तो 100% अनुदान किसको दिया, यदि त्रिवैन्द्रम सरकार जीरो टालरेन्स की बात करती है तो समाजकल्याण विभाग की तरह कृषि और उधान विभाग की जांच सीबीआई या किसी  उच्च न्यायालय के न्यायधीस अथवा समाजकल्याण की तरह एस आईटी वना कर तो लाखो करोड का घोटाला सामने आयेगा तराई की फर्मे एव अधिकारी भागते फिरेगे।
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श्री विजेन्द्र सिंह रावत
2 Jan 2021
मुख्य निवेदन- फलों के पौधों के विभागीय खरीदमंत्री जी पर ध्यान दें………………
पहाड़ पर इस सीजन में लगने वाले सेब, अखरोट, नाशपाती,  खुमानी, आड़ू व कीवी आदि के पौधों की खरीद के लिए बागवानी मंत्रालय में घटिया पौधों की खरीद फरोख्त करने वाले दलाल हर साल की तरह घूमने लगे हैं।
अब ये लोग हर साल की तरह मोटी कमीशन देकर विभाग में पौध सप्लाई के ठेका हथिया लेंगे और फिर बेचारे गरीब बागवानों में मत्थे ये पौधे मड़ दिये जाएंगे और उसके खेत सालों बंजर रह जाएंगे।
किसानों को अपनी जमीन के लिए अपनी मर्जी से पौध खरीदने दो, फिर इन पौधों पर उन्हे अनुदान दो, कम ही सही।
मुफ्त में पौधे बांटने और विभागीय खरीद के पीछे घोटाला होता है।
भुक्तभोगी बागवान, अपने विभागीय कड़वे अनुभव जरूर शेयर करें ताकि विभाग की लूट को मुख्यमंत्री व जनता तक पहुंचाकर उन्हे सचेत किया जा सके।
गत वर्ष मैं,मेरे गांव व आसपास के गांव के सैकड़ों बागवान भी मुफ्त में बंटे अखरोट व आड़ू के खटिया विभागीय पौध का शिकार हुआ हूं, अखरोट का एक भी पौधा सफल हुआ, ये जब तक किसानों के पास आए सूख चुके थे!
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Girish Dhariyal
19 Jul 2021
डंके की चोट पर उत्तराखड को घोटालों का प्रदेश कहा जाय तो बुरा नहीं :- भारत सरकार की डी,बी,टी,(डायरेंक्ट बेनीफिट ट्रान्सफर) योजना में कृषि एवं उद्यान विभाग में उच्च स्तर पर महाघोटालों पर एक नजर:-
मित्रो भारत सरकार द्वारा पहाड़ी राज्यों के कृषकों के आर्थिक विकास हेतु वर्ष २०१७ में उक्त अनुदानित योजना कृषि व बागवानी विकास के उदेश्य से चलाई गयी ।उपरोक्त योजना के क्रियान्वयन हेतु भारत सरकार द्वारा जारी गाईड लाईन का अन्य राज्यों (हिंमांचल) की भांति अनुपालन न करते हुए उत्तराखंड में सम्वन्धित विभागीय  निदेशालय एवं शासन स्तर पर बैठे उच्च स्तरीय नौकरशाहों द्वारा व्यक्तिगत फायदे के लिये मनमाना स्वरूप दिया है ।कृषि व उद्यान विभाग टैंन्डर प्रक्रिया दिखाकर योजनाओं में निम्न स्तर के निवेश उच्च दरों पर परचेज कर कृषकों को नि:शुल्क या कम कीमत पर बांट कर योजना की इतिश्री कर देते हैं ।जब कि भारत सरकार की गाईड लाईन के अनुसार अनुदान सीधे कृषकों के खाते में आनी थी ।
मान०प्रधान मंत्री जी का सपना कृषकों की आय दोगुनी करने की मंशा सिस्टम व भृष्ट नौकरशाहों के कारण धरातल पर कृषकों की आय दोगुनी नहीं वल्कि खुले आम नौकरशाह व निवेश आपूर्ति कर्ताओं की आय क ई गुना बढ़ रही है।
प्रति वर्ष करोड़ों रुपयों के शब्जी बीज २० हजार से लेकर एक लाख रुपये प्रति किलोग्राम की दर से उच्च स्तर द्वारा क्रय की जा रही हैं ,इससे किसान तो गरीब का गरीब ही है मगर अधिकारी हो रहे हैं रातों रात धन्नासेठ ।
योजनाओं में इस तरह उच्च स्तर पर करोड़ों के घोटालों से कतिपय ईमानदार अधिकारी व निम्न फील्ड स्तरीय कर्मचारियों की भी जनता में छबि धूमिल हो रही है।इस खरीद एवं वितरण के महा घोटाले की तुलना कर्मकार कल्याण बोर्ड के महा घोटाले  से की जा सकती है ।
इसीलिए इस उत्तराखंड का विकास होने से रहा ।धन्यबाद??
विजेन्द्र सिंह रावत बरिष्ठ पत्रकार विकास का हम राही, दिनांक- 09 जुलाई 2021
उत्तराखंड में बागवानी विभाग की अंधेर नगरी……..
वस्तु की उपयोगिता पर नहीं, कमिशन की राशि पर तय होती है करोड़ों की खरीद………….
हिमाचल प्रदेश की तरह उत्तराखंड में बागवानी, मट्टर, टमाटर, जैविक सब्जियां व जड़ी बूटी उत्पादन जैसी व्यापारिक फसलें पहाड़ की काया कल्प कर सकती है पर विगत बीस वर्षों में विभाग लूट और भ्रष्टाचार ने बागवानी के पैरों पर जंजीरें डाल रखी है।
यह लूट नीचे नहीं बल्कि मंत्रालय से शुरू होती है। आप गांव में जाएंगे तो विभागीय मदद के नाम पर पाईप के बंडल व त्रिपाल सड़ते मिलेंगे।
यह पाईप ट्रिप सिंचाई योजना के हैं, जिन पर एक प्रतिशत ड्रिप भी जमीन पर नहीं है और यहीं से भ्रष्टाचार शुरू होता है।
कम्पनी और विभागीय समझौते के अनुसार कम्पनी को सिस्टम खेत में लगाकर देना होता है पर नब्बे फीसदी उन लोगों को योजना दी जा रही है जिनके पास पानी नहीं है और बस यहीं से भ्रष्टाचार का खेल है।
जितना एक ट्रिप सिस्टम को लगाने में कम्पनी का खर्च आता है उतने पैसे में लोगों को पाईप देकर दस ड्रिप योजनाएं बंट जाती है, नकली फोटो खिंचे जाते हैं, लोग भी फ्री का चंदन घिसे रघुनंदन….यानी भागते भूत की लंगोटी हाथ….समझकर पाइप के टुकड़े लेकर चल पड़ते हैं, पर उन्हें क्या पता कि लूट उनके पैसे की हो रही है।
विभाग द्वारा अनुदान में मिलने वाले अधिकांश खाद, बीज व कीटनाशक बेहद ही घटिया स्तर की होते हैं, यही कारण है कि प्रगतिशील बागवान इन अनुदान की चीजों को छूते तक नहीं हैं।
हिमालय में टाप कम्पनियों की चीजें खरीदी जाती है पर उत्तराखंड में घटिया कम्पनियों से खरीदी जाती है जो भारी कमिशन मंत्री व सचिवों को देती हैं।
यदि करोड़ों की इन खरीदों की सीबीआई जांच हो जाए तो प्रदेश की जेलों में बड़े बड़े सफेदपोश होंगे, आज नहीं तो कल गरीबों के पैसे की इस लूट का खुलासा जरूर होगा। इसलिए प्रदेश के लुटेरों सावधान जनता सब जानती है!!
किसान व बागवान से पूछा जाना चाहिए कि उन्हे किस चीज व ब्रांड की जरूरत है और वही उसे मिले ?
कृषि एवं उद्यान विशेषज्ञ।
देहरादून उत्तराखंड।

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